हमारे अंतर के संवाद -
( रात की बात, खुद के साथ)
आज सुबह जैसे जगा मौसम बदला सा था । घिरे बादलों और वर्षा के कारण घूमने टहलने नहीं जा सका । लगा दिन भर ऐसा ही रहेगा मौसम ।
पर 10 बजे के पहले ही दिन निकल गया । साफ आकाश, चमकीली धूप, हल्की ठंढी हवा । जैसे मौसम बदला वैसे ही मेरा मन भी बदल गया । मौसम के साथ हमारे मन का गहरा संबंध है । इसलिए तो चमकीले धूप के निकलते ही मूड फ्रेश सा लगने लगा ।
आज काम करने को बहुत है और ऐसे मौसम में दुगुना काम होता है । मन खुश हो तो वो खुशी काम में भी दिखाई पड़ती है ।
शाम को फिर तेज हवा चलनी शुरू हुई फिर तेज बारिश । बिजली और ठनके की आवाज । प्रकृति कितना विकराल रूप धारण कर लेती है । और कभी कितनी सौम्य रूप धारण किए रहती है । क्या हमारा व्यक्तिगत जीवन इससे प्रभावित नहीं होता । हमारा व्यक्तित्व या हमारा अंतर्जगत क्या इन सबसे विच्छिन्न रह सकता है ।
कितना सब कुछ है , फिर भी मनुष्य तनाव ग्रस्त रहता है । कई बार मैं खराब मौसम के वजह से रात भर, सो नहीं पाया, कभी बाहरी मौसम का ख्याल भी नहीं रहा । जब रात को शांतिपूर्ण ढंग से सोया तो फिर नई सुबह मुझे मेरा इंतजार करते हुए मिली । मन के कमरे जो किताबें फैली हुई थी उसने सबको नीन्द ने अपने अपने रैक पर सजा दिया हो जैसे ।
यही संवाद , रात में खुद के साथ करते हुए फिर से आँख लग रही है । नीन्द, स्वप्न, दिन , रात, ये प्रकृति, अस्तित्व में हमारा होना सब कुछ सौभाग्य पूर्ण है । ईश्वर ने इतना सब दिया है फिर भी हम अपने ही हाथों स्वंम को दीन हीन समझने की गलती करते रहते हैं । और ईश्वर के प्रति आस्था में उतनी प्रगाढ़ता दिखती नहीं । अपने ही दिमाग से कितने छले जाते हैं हम सब , है ना ।
- Abhishek Kumar "Abhunandan"
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