कहानी की कहानी - ( कहानी की जुबानी )
~=~=~=~=~=~=~=~=~=~=~=~=~एक बार एक जंगल में ख़रगोश और कछुए के बीच रेश हुआ । दोनों अपने अपने गति से भागने लगे, खरगोश लंबी लंबी छलांग लगता हुआ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया । रास्ता लम्बा था । कछुआ उतना तेज तो नहीं भाग पा रहा था पर उसका इरादा पक्का था कि जीतूंगा तो मैं ही । दोपहर हुई, तेज धूप में दौड़ते दौड़ते खरगोश का गला सूखने लगा और उछलते उछलते पैर में दर्द होने लगी थी । कारण ऐसी दौड़ पहली बार हो रही थी, बड़ा जी जान से दौड़ा था, पर अब पानी पीना जरूरी था । थोड़ी दूर पर पानी दिखा ,उसने पानी पी कर जब दूर से देखता है तो उसे वो कछुआ अभी बहुत दूर दिखाई पड़ा । वो आ भी रहा है या नहीं उसे संदेह हुआ । और उसे लगा अब हम इतनी दूर आ ही गए है तो थोड़ा विश्राम कर लें, अब मंजिल 10 कदम ही तो बचा है । उसे नींद आ गई ।
और फिर जंगल के अन्य जानवर जो पूरी प्रतियोगिता को देख रहे थे उन्होंने देखा कि अभी 3 बज चुके हैं पर खरगोश का पता नहीं । कछुआ तो लकीर के एकदम करीब आने को है मगर खरगोश दिख नहीं रहा । बस पांच मिनट हुए कि कछुआ , जीत की लकीर पार कर विजेता बन गया ।
यह घटना पूरे जंगल में फैल गई फिर पूरी दुनिया जान गई और बहुत समय बिता पर यह कहानी खत्म नहीं हुई । कहानी चलती चली गई । और चलते चलते एक लेखक से टकरा गई ।
लेखक बोला "ए कहानी तुम देखकर नहीं चल सकती क्या ।"
कहानी बोली " ऐ लेखक तुम ठीक से चला करो, तुझे नहीं दिखता क्या, चलते हो कहाँ, देखते हो कहाँ ।"
लेखक बोला " तुम्हारी ये हिम्मत , तुम जैसे को बहुत देखा है मैंने"
कहानी बोली "अगर देखकर चलते तो मुझसे नहीं टकराते, ना ही मुझे दोष देते । तुम से भले वो लोग हैं जो देखते है और अपने रास्ते निकल जाते हैं, मुझे तो तुम बड़े अश्लील किस्म के लगते हो"
लेखक बोला" अरे, अरे ये सब मत बोलो, सब लोग क्या कहेंगे, मैं अब सच सच बता देता हूँ कि मैं एक लेखक हूँ, अपने पाठकों के लिए कहानी खोज रहा था । तुम सही कहती हो, मैं किसी कहानी की तलाश में ही था, और जो कहानी मुझे पसंद आई , उससे मिलने जैसे ही मुड़ा की तुम टकरा गई । मैं मानता हूँ, मुझसे थोड़ी गलती हुई है, पर मैं गंदे किस्म का आदमी तो बिल्कुल नहीं हूँ घूरना और देखना में फर्क होता है मैडम, आप कैसे किसी पर क्लेम कर सकते हैं"
कहानी बोली" देखो, मुझे फंसाने का काम मत करो, मैं तेरे से फंसने वाली नहीं ।"
लेखक बोला " देखिए, जो हुआ सो हुआ अब मैं अपनी गलती पर सर्मिन्दा हूँ, और नहीं चाहता कि आपको अपनी पीड़ा सुनाऊ"
कहानी बोली" क्या परेशानी है आपको"
लेखक " नहीं रहने दीजिए, मैं खुद अपनी परेशानी दूर कर लूंगा "
"बताइए तो , मुझसे जितना संभव होगा, आपकी मदद करने की कोशिश जरूर करूँगी" कहानी रिक्वेस्ट करते हुए बोली ।
दोनों उसी चौंक के दो कदम की दूर पर, स्टोर के पास रुके । दोनों बाहर लगे कुर्सी टेबल पर जाकर बैठ गए ।
"कुछ ठंडा या कुछ फल फ्रूट खा लीजिए ।" लेखक अपना कंधे से थैला निकाल कर टेबल पर रखते हुए बोला ।
कहानी इधर उधर देखने लगी, कितने यात्रीआ जा रहे हैं । बोली " देखो तुम्हें जो मंगाना है मंगाओ ,मुझसे मत पूछो । मुझे जल्दी जाना है । मैं ज्यादा देर तुम्हारे पास रुक गई तो फिर मुश्किल हो जाएगी । मेरा काम ही सब लोगों से मिलना जुलना । हाल चाल पूछना । अगर तुम्हारे पास ही बैठी रही तो मेरे पाठक का क्या होगा "
लेखक बोला" आपको भी पाठकों की चिंता है, और मुझे भी तब तो मेरी उलझन आप समाप्त कर सकती हैं । अगर सम्भव हो तो ..। मेरी तो आंखें लिखते पढ़ते, और देखते देखते कमजोर होने लगी है , पर वो जो संकट थी आज तक खत्म नहीं हुई है" (थोड़ा रुक कर)
"मेरी कोई कहानी पूरी नहीं होती , हर बार आधे में जाकर अटक जाती है कभी कभी तो पूरी कहानी लिख कर उसका अंत नहीं कर सका । इसलिए सब अधूरी ही रह जाती है ,क्या कारण है इसका"
कहानी बोली तुम ये सवाल मुझसे क्यों पूछते हो ये तो तुम ही बता सकते हो , पर जब से पैदा हुई उसके बाद से कुछ पूछोगे तो बता सकती हूँ ।"
"अच्छा ठीक है अपने बारे में ही बताओ ।" लेखक बोला
कहानी ने अपनी कहानी बतानी शुरू की" सच तो ये है कि मुझे कभी तुम जैसों से डर लगता है, तुम लोग बड़ी उटपटांग हरकत करते रहते हो, लोगों को उल्लू बनाते हो, होता कुछ है लिखते कुछ और हो, सोचते कुछ और हो । तुम लोगों जैसा दुनिया भर में मैंने फालतू और धोखेबाज नहीं देखा । "
लेखक आवक होकर देखता रह जाता है ऐसे जैसे खूंटी पर कोई पैजामा लटका हो ,
कहानी को उसका चेहरा देखकर हँसी आ जाती है , फिर बोलती है, " इतना सब होते हुए भी भी तुम सब से बहुत प्यार करती हूँ । अगर तुम लोगों में से किसी ने मुझे जिलाया नहीं होता, मेरा उपचार नहीं किया होता तो मैं मर गई होती । तुम सब जिस तरह हमें इज्जत देते हो उसके हम कायल हैं । ये बात बताते हुए मुझे संकोच हो रहा है पर सच सच है,
कुछ पाठक तो मुझे दिल से लगाए रखते हैं । मैं भी यह सोच नहीं पाती की किसके साथ वक्त बिताऊं और अपनी व्यथा सुनउँ । पर इतना है जो दो पल को दिल से बात करते हैं , उनका हाल चाल पूछ लेती, कुछ नेक सलाह दे देती ।
लेखक "तुम अपने बनने की प्रक्रिया के बारे में कुछ बताओ "
कहानी बोली" मैं जैसी दिखती हूँ , हूँ तो वैसी ही इसमें कोई शक नहीं, पर ये मत भूलना कि मेरे अंदर कितनी कितनी कहानी चलती रहती है । मेरे भीतर कई कहानी बिगड़ती बनती रहती है ।जो हवा के झोंको की तरह आती जाती रहती है । जितने लोग यहाँ आस पास देख रहे हो सबके माथे में मैं ही घूम रही हूँ । अखबार और किताब मेरी ही प्रस्तुति है ।
ये तो तुम जैसे लेखक की कृपा है जो मेरी फोटो खींच कर दुनिया वालों को दिखाते रहते हो । मैंने तुमसे कितनी बार कहा , ये लोग नहीं मानेंगे । पर तुम मानते ही नहीं ।
कछुआ और खरगोश की कहानी से परिचित हो ही , पर क्या मालूम है इसके भीतर भी कई कहानी है, पर तुम लोग उसका जिक्र नहीं करते । यहाँ पर मुझे थोड़ी तकलीफ होती है पर कोई बात नहीं ।
उस दिन हुआ ये था कि खरगोश ही जीता था , कछुआ बेचारा हार गया था । पर तुम्हारे जैसा एक लेखक आया और कछुआ को जीता दिया , अपनी मनगढंत किस्सा गढ़ कर । अच्छा तुम ही बताओ ,
कभी कछुआ और खरगोश से बात चीत कर सकते हैं , नहीं करते हैं, क्योकि दोनों की भाषा अलग अलग है । इसलिए मैं कहती हूँ इसे उट पटाँग हरकत । खरगोश - खरगोश भले बात चीत कर सकते हैं, कछुआ कछुआ भले एक दूसरे को अपना दर्द साझा कर सकते हैं । और प्रतियोगिता हुई थी तो खरगोश खरगोश में हुई थी कछुआ और खरगोश में नहीं । पर सदियों से झूठ ही लोग सुन रहे , झूठ ही लोग कह रहे । और मैं भी झूठ झूठ सुनते सुनते झूठ को ही सच समझ कर जीती रही । किसी लेखक ने मुझे बताया तुम तो अमर हो । तुम कभी नहीं मर सकती । जब से यह बात जानी हूँ मेरी दुविधा और बढ़ गई ।
सच बताऊं तो कहानी वह है जो कही नहीं गई जो कही गई वो कहानी नहीं है, वो तो कहानी की कहानी है ।
लेखक बोला "बस करो बस करो, हो गया मेरा समाधान, हो गया मुझे आत्म ज्ञान ।"
कहानी बोली" तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हें जाने दूंगी, मुझे मत बहकाओ, मुझे तो बस अब तुमसे ही शादी करनी है बस । मैं अब घर बसाना चाहती, हमारे भी दो चार चुन्नू मुन्नू हो , और क्या"
लेखक बोला" देखिए मेरा विवाह हो चुका है, मांफ कीजिए, मेरी गाड़ी आ गई, घर पर मेरी पत्नी इंतजार कर रही होगी । अच्छा होगा आप पाठकों में से ही कोई सुयोग्य वर ढूंढ़ लें । अन्यथा मैं आपका नंबर नोट कर लेता हूँ, जैसे ही कोई तारो ताजा कहानी दिखेगा खबर कर दूंगा ।
कहानी बोली, मैंने जो तुम्हें अपने दिल की बात सुनाई है, उसे हो सके तो अपने पाठकों के पास पहुंचा देना ।
लेखक गाड़ी पर सफर करते हुए सोच रहा था, "एक दिन उस कछुए और खरगोश से भी जरूर मिलूंगा, जिसके परिणाम स्वरूप ये कहानी बनी ।"
"कहानी बनी तो बनी मगर ये जो कहानी बनने की प्रक्रिया है क्या वो भी एक कहानी नहीं । एक पाठक क्या जाने एक लेखक कहाँ कहाँ नहीं भटकता , कहाँ कहाँ के उलाहने ताने झेलने पड़ते हैं, एक कहानी के लिए । "
"मैं घर से निकला, हजारों तरह की बातें , देखते सुनते, फिर एक अजनबी महिला से मुलाकात हुई, बड़ी सज्जन महिला थी । मुझसे पता पूछी । मैंने उन्हें थोड़ा गाइड कर दिया । वो धन्यवाद कह चली गई । पर लेखक मन फिर सोचने लगा अगर ये महिला मुझसे कहीं पहले मिली तो नहीं, अगर फिर मिल जाएं तो । अगर मेरी पत्नी के जगह ये ही होती तो शायद इतनी लड़ाई नहीं होती रोज । पर अचानक घर के दरवाजे पर देखता हूँ वो सामने खड़ी है । पुनः घर में खुद पाकर ये हमें कौन बताए कि वो वाली कहानी थी कि ये वाली । या दोनों में से कहानी की कहानी कौन सी है । "
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