रविवार, 25 फ़रवरी 2018

लेखक और लेखन की चुनौतियाँ



लेखक  और  लेखन  की  चुनौतियाँ


किसी फिल्म का पोस्टर कहने के लिए पर्याप्त है, उस फिल्म की कहानी, उस कहानी के भाव, उस कहानी के दृष्टिकोण, मानसिक स्थिति और अन्तः परिस्थितियाँ.

प्रश्न ये है कि हम जो जिन्दगी जी रहे हैं उसमें से कहानी कैसे निकालें ? उस कथाअंश के द्वंद की पहचान कैसे हो? कहानी का यथार्थ भाव क्या हो? जिन परिस्थितियों और कालखण्ड में वे संघर्ष कर रहे थे. या कर रहे हैं उनकी वास्तविक समस्या क्या है? वे किन वजहों से स्वयं को या स्वयं के वातावरण से प्रभावित हो रहे या कितना प्रभावित कर रहे हैं? किसी कहानी या चित्रण का मूल मकसद यही होना चाहिए।
चित्र और शब्द दोनों दो चीज है पर दोनों की आत्मा मानो एक ही है। दोनों की  रचना प्रक्रिया चुनौती पूर्ण है। चित्र बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देता है। शब्द अपनी शक्ति से ऐसे चित्र की रचना कर देता है कि पाठक मंत्रमुग्ध हो जाता है और बिना शब्द के उक्त बातें या भाव चित्र के माध्यम से कहना असंभव लगता है. इस लिए चलचित्र सर्वोत्तम उपाय हो जाता है किसी भी कहानी को कहने का . संवाद और चेहरे के भाव यही बहुत हैं कहने को.  

 फिल्मों से जुड़े सवाल- जवाब
एक बार मैं फिल्म देखने बैठा, मन में सवाल उठा। फिल्म बनाने का मतलब क्या हो सकता है ? इसकी क्या वजह हो सकती है। सबसे बड़ी वजह।
हालांकि मेरे पास कई जवाब हैं । किसी डाइरेक्टर के लिए। अपनी कहानी । अपने अनुभव । अपना जुनून । बस, इतना ही। और कुछ नहीं क्या। मेरे खयाल से एक चित्रकार जो कूची और रंग से चित्र बनाता है। उसे पता होता है कि कहाँ कितना रंग डालना है और क्यों ? और भी बहुत सी बातें कहाँ कौन सा रंग सबसे सटीक तरीके से भरा जाए जिसे वह दिखाना चाह रहा है बनाना चाह रहा है।
फिल्म निर्माण एक उम्दा माध्यम है। विचार को व्यक्त करने का। पर इसमें वही उम्दा काम कर सकता जिसे सब कुछ का उम्दा ज्ञान हासिल हो या उसे उम्दा ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की परख हो तभी वह सभी माध्यम जैसे आडिओ, विडियो, कैमरा, स्पेशल इफैक्ट, कॉस्ट्यूम, मनजेमेंट आदि का सम्पूर्ण ज्ञान रखता हो। इसकी अपनी एक अलग ही भाषा होती है।

फिल्मों से अपेक्षाएँ –
·         राष्ट्रीय सरोकार से जुड़ी हो।
·         वर्तमान समस्या की परख हो।
·         रिस्ते की महक हो प्रेमी-प्रेमिका के आलवे ।
·         जमीन से जुड़ा हो मगर कल्पनाशीलता का पुट हो। ना कि कॉपी पेस्ट ।
·         लार्जर देन लाइफ हो मगर आम लोगों की जिन्दगी का आइना

फिल्म के कुछ डाइलॉग जो हमेशा याद किए जाएं –
  • दुनिया में जीतने भी अच्छे लोग होते है वो अपनी गलती मानकर फ़ोरन माफी मांग लेते हैं। दुनिया में जीतने भी अच्छे लोग होते है वो दूसरों के माफी माँगने पर उन्हें फ़ोरन माफी मांग लेते हैं।
  • इस घर का हर एक रिस्ता प्यार की कड़ी से बंधा है चाहे वो इंसान का हो या मालिक या नौकर का हम नए रिस्तों को बनाने के लिए पुराने रिस्तों को नहीं तोड़ते।
  • यूं तो जिन्दगी के सफर में कई आँधी और तूफानों का सामना करना पड़ता है लेकिन मासूम और अनाथ बच्चे की जिन्दगी में एक तूफान और भी हैं इसकी मजबूरी, लाचारी और अकेलेपन का एहसास.

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