गुरुवार, 3 जून 2021

बहस बहस में

 बहस बहस में

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हेलो,
हाँ हेलो,
आप कौन,
आप कौन बोल रहे हैं ।
आपका कॉल आया था ।
आप कॉल किए और बोल रहे ....।
कहाँ से बोल रहे हैं ।
आप कहाँ से बोल रहे हैं ।
हम वो लाल जी बोल रहे हैं ।
ओहो, आपको पहले बोलना चाहिए । हम तो कुछ और समझ रहे थे ।
क्या समझ रहे थे ।
नहीं छोड़िए, और बोलिए क्या कह रहे हैं ।
वो कह रहे थे कि अगुआ फोन किया था,
चलिएगा लकड़ा देखने ।
चले जाएंगे मगर क्या करता है लड़का ।
कुछ नहीं, अभी तो बेरोजगार है ।
आप कहे थे कि वो लड़का फ्लिपकार्ट कार्ट में है ।
वो तो दूसरा लड़का था । आप जइबे नाय किए उस टाइम ।
तो अभी क्या , होगा । जाने से कुछ फायदा होगा । बोलिए ।
फायदा, कौन चीज का फायदा ।
फायदा देखिए तो बिहा कर पाइएगा ।
अरे बिहा (विवाह) करना है महाराज, क्या बात करते हैं ।
कैसे होगा, आप फायदा खोजते हैं । और पूछते हैं कि लड़का क्या करता है ।
तो क्या नहीं पूछें । काहे नहीं पूछेंगे ।
अच्छा, आप बताइए क्या करते है , बताइए जरा ।
हम...हम....शादी कराते हैं ।
अरे अब ना शादी कराने लगे पहले क्या करते थे ।
आप क्या करते है आप भी तो यहीं काम करते हैं ।
हमरा बात छोड़िए ।
कैसे छोड़ दें, जवानी में जब बेरोजगार थे हमी बिहा करा दिए थे ।
आप का कौन कराया था, भूल गए, आपके बाबू को हमी एडरेस दिए थे ।
इस तरह दोनों घंटों उलझ गए और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप चलता रहा ।

रामपुर । मैं इस इलाके में नया स्कूल में शिक्षक नियुक्त हुआ । बस की सवारी कर, शहर से अब गाँव आ गए ।पर लौडस्पीकर ऑन कर दोनों ने बहस करना जो शुरू किया वो बहस बहस में बढ़ते चला गया । मैंने बगल के यात्री को पूछा "ये कौन आदमी है जो कान पकाए जा रहा है । और स्कूल किस तरफ है । "
दूसरे ने बताया "दोनों को एक दूसरे का हाल पता है। एक संस्कृत का अध्ययन करके पंडित बन गया । दूसरा कर्मकांड कर काफी लोक प्रिय हो गया । दोनों को एक दूसरे से जलन होने लगी । पहले कि आँखें खराब हो गई थी पढ़ते पढ़ते । दूसरा असमय बहरा हो गया । परिणाम स्वरुप दोनों एक दूसरे के निकटवर्ती होते हुए भी बहस किया करते । दोनों अपनी अपनी पंडिताई खूब झाड़ते ।
उपरोक्त संवाद तो एक उदाहरण था जैसे , पूरे गाँव , बाजार, मोहल्ले में बस दो ही थे एक लाल बाबा, एक पिला बाबा । बात कुछ हो दोनों ऐसे उलझ पड़ते जैसे महाभारत अब होने ही वाला है । कोई हार मानने को तैयार ना था ।
कभी कभी बीच चौक पर शास्त्रार्थ शुरू हो जाता । भीड़ इक्कठी हो जाती । मामला घंटे दो घंटे कभी कभी तो 3 घंटे तक दोनों अपने बात पर अड़े रहते ।"
बेरोजगारी कुछ हुनर दे ना बोलने में एक्सपर्ट बना ही देती है । वो भी इतना नेगेटिव की आगे बात बन ही सकती । बेरोजगार तो यही समझते हैं कि सबके पास उतना ही टाइम है, जितना उनके पास होता है । और काम की बात पूछने पर भड़कना स्वाभाविक ही है । कुछ यही सब खुद से बात करता हुआ स्कूल की तरफ चल पड़ा पर जब भी किसी को बहस करते देखता तो लाल बाबा पिला बाबा की याद आ जाती ।

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 फिल्मी ज़िन्दगी

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क्योंकि तुम... ही हो, अब तुम ही हो....
मेरी जि...न्द...गी अब तुम ही हो .
हाँ, उस टाइम यही फ़िल्म रिलीज हुई थी, और.... दिस इज वन ऑफ माय फेवरेट सॉन्ग ।
और तुम्हारा ....?
मैं पोज दे रही हूँ, मेरा स्टिल फोटो सूट हो रहा है ।
और ये है माय फेवरेट कैमरा मैन मिस्टर अभिनव ।
अभिनव ही है ना तुम्हारे स्टुडियो का नाम , जल्दी बोलो, वीडियो कैमरा चालू है ।
ऐ सौर्य, बन्द कर, कैमरा । जब देखो तब कैमरा मेन बन जाता है ।
"मेम ,प्लीज आप अभी कुछ नहीं बोलें, बस स्माइल और अपने पोज को ठीक करें । " कैमरे का फ़्लैश चमकाते हुए उसने कहा ।
"अरे, यार, ये मेम कहना मुझे बन्द करो । और तुम चाहो तो नाम लेकर भी तो बुला सकते हो ।" मैं उसे रिक्वेस्ट करते हुए कही ।
मैंने इनडोर और आउटडोर और कई कॉस्ट्यूम में फोटो शूट करवाई । एक हफ्ता लग गया ये सब करते करते ।
और आ भी गया फोटो निकल कर ।
क्या कमाल की फोटो ग्राफी करते हो तुम । मुझे तो कभी यकीन नहीं हुआ कि मैं भी इतनी ..... ।
"आप है ही इतनी .... "(बोलते हुए रुक गया फिर आवाज आई)
"ब्यूटीफुल । आप का तो पक्का सेलेक्शन हो जाएगा । " वो बोला ।
ऑडिशन दिल्ली में था । मैं गई ऑडिशन में, आने के बाद माँ के पूछने पर मैंने कहा "ठीक ही गया, पर देखते है, आगे क्या होता है । अभी तो कुछ खास पता नहीं"
मां नहीं चाहती थी कि मैं मॉडलिंग करूँ या एक्ट्रेस बनूँ । पर बाद में एग्री हो गई थी पर उसे मेरी शादी की चिंता रहती थी ।
मां पूछी, और वो लड़का जो फोटोसूट करता है । कैसा है ।
ठीक है, "काफी टेलेन्ट है उसमें , दिल्ली के ही एक बड़े फोटोग्राफर से उसने फोटोग्राफी सीखी है ।" मैंने जवाब दिया ।
मां - "तुम्हें पसन्द है वो लड़का ?"
मैं- " मैं अभी शादी नहीं करने वाली"
मां- " तो कब करेगी"
मैं- " मेरा सिलेक्शन होने के बाद ।"
मां - "हमदोनों (मॉम-डैड) गए थे उसके स्टूडियो, चाय पीने ।
आज उसे यहां घर पर बुलाया है ।"
मैं - "क्या"
मां - "हाँ"
मैं समझ गई कि ये काम मेरा छोटा भाई सौर्य के अलावे कोई नहीं कर सकता । छोटा है पर है बड़ा जासूस । इसने ही मेरा व्हाट्सएप चैट और फोटो, मां दिखाई होगी ।
इस खबरीलाल को मैं नहीं छोडूंगी । वो भागा ।
सुन, अब तुझे कहीं नहीं ले जाऊंगी ।

शाम हुई । मैं सोच रही थी कि वो नहीं आए तो ही बेटर । फिर, नहीं, कोई दिक्कत नहीं मुझे । कम से इसी बहाने मेरे घर भी आ जाए । इधर उधर मैं आती जाती रही । इंतजार और इतनी घबराहट । मुझे तो पहले कभी सामना नहीं हुआ था इतना ।

रात हो गई पर नहीं आया वो, मां फोन कर बात की । वो किसी दूसरे प्रोजेक्ट के वजह से नहीं आ सका । अभी दूसरे शहर में हैं । जब सॉरी उसने मांगी तो सुकून मुझे मिला ।
एक सप्ताह पहले उसे जानती तक नहीं थी । और आज जानना नहीं चाहती । कभी कभी प्यार और दुश्मनी एक साथ पनप जाती है । मैं एक साथ गुस्से और प्यार में थी शायद । मैं खुद को कही पहले तो बड़ी कॉंफिडेंट थी आज क्या हो गया ।
जो भी हो एक सफ्ताह जैसे किसी रोमांटिक फ़िल्म की तरह गुजरी । वो फोटो शूट करता रहा और मैं उसके बारे में जानने की दिलचस्पी बढाती गई ।
"मैंने तो नहीं देखा था कभी ऐसा शख्स, जिसे कामुकता जरा भी नहीं छूती हो, मेरा जीप खुला होने पर कितने आराम से कहता है, आपका जीप खुला हुआ है । "
"आइसक्रीम की तरह उसका विहेव । बड़ा कूल बन्दा है वो ।" और ना जाने कितनी देर, उसके बारे में, सोचती रही ।
कई महीने बीते, इस दौरान मैं दो फिल्में करने लगी । मेरा और उसका कांटेक्ट खत्म ही हो गया । मैंने दुबारा कभी उससे बात नहीं की । और उसने भी कभी ये नहीं पूछा कि क्या हुआ । शायद उसके पास ना जाने कितने क्लाइंट आते होंगे । पर वो सारा चैट, बात चीत, तो झूठ नहीं हो सकता है । जिसमें उसने बताया था कि कैसे वो फोटो ग्राफी सीखने के लिए कभी आइसक्रीम काउंटर भी संभाला था । और कहाँ कहाँ नहीं भटका ।
और वो ये सब तो सबसे शेयर नहीं करता होगा ।
फिर उसका लेट नाइट चैट करना क्या ये सब यूँ ही तो नहीं ।
खैर, कुछ साल में ही मेरी जिन्दगी स्पीड के साथ बढ़ती चली गई । उन दो फिल्मों में छोटे से किरदार करने के बाद सीरियल में काम मिल गया । कोलकाता में ही शादी हो गई । पर शादी के कुछ दिन में ही मैं समझ गई जो मेरे ख्वाब में था वो ख्वाब ही रह जाएगा । मेरे पति महोदय का कहना है फ़िल्म वैगरह छोड़ो । और रोमांटिक बातें वो प्यार मोहब्बत सब फिल्मों में ही अच्छा लगता है । रियल लाइफ में वैसा कुछ नहीं ।
पर मुझे तो चाहिए थी फिल्मी लाइफ जो इसके ठीक अपोजिट होने को थी मेरी बाँकी जिन्दगी।
एक दिन अपने ही शहर गई वहीं स्टूडियो की तरफ , पर वहाँ का सीन बिल्कुल चेंज हो चुका था। मालूम हुआ कि वो जो स्टूडियो यहाँ था अब मुम्बई चला गया ।
सोचने लगी...
अब मैं ज़िन्दगी के उस चौराहे पर हूँ जहाँ से ये तय करना मुश्किल है कि जाना किधर है । चुनना क्या है फ़िल्म या ज़िन्दगी, या फिल्मी ज़िन्दगी, या फिर जिन्दगीनुमा फ़िल्म ।

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 हमसफ़र जूता


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हमसफ़र जूता । बहुत अच्छा नाम है सर । आज आपका ब्रांड किसी परिचय का मोहताज नहीं । इतने कम समय में आपने जो ग्रोथ किया है वो काबिलेतारीफ है ।
सबसे पहले ये बताइए कि आपको ये नाम कैसे सुझा मेरा मतलब है कहाँ से इंस्पिरेशन आया ।
पत्रकार, हमसफ़र फुटवियर के मालिक रघु राजन जी से एक इंटरव्यू में पूछा ।
रघु जी- देखिए, मुझे तो ये नहीं मालूम कि नाम कैसे आया पर यहाँ तक जो इसकी एक लम्बी कहानी है । उसे मैं कहे देता हूँ । अगर आप कहें तो । पत्रकार जिज्ञासा पूर्वक कहा- हाँ , हाँ प्लीज कहिए ।
रघु जी - मेरा शुरू से शौक था कि मैं पुलिस बनूँ । या डिफेंस में जाऊं । पर आप तो जानते है उस लड़के को जो बेंच पर सबसे पीछे की सीट पर बैठता है । स्कूल प्रेयर के बाद आप उसे रोज फटे हुए जूते पहने होने के कारण पिटे जाते हुए देखते
। मेरी पढ़ाई लिखाई कस्बाई स्कूलों में हुई जहाँ मेरी खूब पिटाई होती । शरारती तो था ही । और लापरवाह भी । सबको अपने होमवर्क की चिंता होती और मुझे अपने जूते की । मैं सोचता अगर पुलिस बन गया तो दोनों काम हो जाएगा । एक तो पुलिस के जूते मुझे पहनने होंगे दूसरा इन शिक्षकों की भरपूर पिटाई करूँगा ।
(हंसते हुए )
फिर आई बात कॉलेज की वहाँ भी परेशानी कम नहीं हुई । रोटी , घर, कपड़ा , का तो इंतजाम हो जाता मगर जूते की बारी आते आते जेब में से पैसे नदारद हो जाते । बेरोजगारी के दिन । सोचा किसी तरह कॉलेज कंपलीट कर कोई नौकरी ले लूँगा । पर जो लड़का मेट्रिक में घिच तीर कर पास हुआ हो वो लड़का इतनी भीड़ भड़क्का में नौकरी कैसे ले सकता है ।
अब वो दौर शुरू हो गया जिसमें लोग धक्का खाते हैं । ताने सुनते हैं । एड़ी चोटी एक कर देते हैं । पर घिसे हुए जूते के आलावे कुछ नहीं मिलता । ऐसा लगा मेरी ज़िन्दगी भी बिल्कुल इसी तरह घिस गई है ।
मेरे दोस्त लोग मेरा मजाक बनाते क्योंकि मेरे पास जूते तो थे पर ऐसा लगता हड़प्पा सभ्यता के भग्नावशेष से मिला हो । हालांकि अभी बचपन वाली स्थिति नहीं थी । बचपन में मेरे जूते में से अंगूठे तो हमेशा झाँकते हुए पाए जाते । पर बचपन की बात तो और है अब बड़े हो गए थे ।
कॉलेज की खास बात ये होती है आप लिखने पढ़ने में कैसे भी हों कोई बात नहीं मगर आपके पास गर्ल फ्रेंड नहीं है तो आपको डूब मरना चाहिए । क्या करें वातावरण ही ऐसा था । और एक बार तो आखरी पॉइंट तक आते आते एक लड़की हाथ से निकल गई । कारण बस वही । मेरा हमसफ़र जुता । लड़की भी पटे, नौकरी भी ना लगे, और आस पास इज्जत लूटने का डर हो । तो जिन्दगी बोझ लगने लगी ।
पत्रकार- आपके माता पिता ।
रघु जी- माता पिता भी थे पर अब स्वर्ग सिधार गए । पर माता पिता का भी बचपन से खूब आशीर्वाद रहा । जूते मांगने पर तो घर में जैसे भूचाल आ जाता । माता पिता आपस में ही लड़ पड़ते और उस लड़ाई के क्लायमेक्स का विलेन मुझे घोषित कर दिया जाता । जिसके परिणाम स्वरूप कभी जूतों से कभी चप्पल से पिटाई होनी तय थी ।
पत्रकार - ( हंसते हुए ) फिर भी आप बने रहे ।
रघु जी- नहीं, बनते बनते हर बार परिस्थितियों के फिसलन की वजह से मैं कई बार गिरता गया । और लगा कि अब जिन्दगी को अलविदा कहने का समय आ गया है ।
कड़ी धूप, दोपहर का समय, पुल पार करने से पहले मैं वही बैठ गया । और अचानक मैंने एक आदमी से पूछा भाई साहब , मरने के लिए सबसे आसान उपाय कौन सा होगा । पुल से कुद कर, या ट्रैन के नीचे आने पर, या सड़क पर गाड़ी से ।
वो व्यक्ति सज्जन रहा होगा, उनसे डरते हुए कहा, भैया ये तो मुझे एक्सपेरिएंस नहीं है । आप किसी दूसरे से पूछ लीजिए । इतना कहते हुए वो चला गया ।
मैं अकेले पुल की ऊंचाई देखता रहा, इतने में एक आदमी आवाज देता है, ऐ लड़का ... ऐ....
मैंने इशारे से पूछा मुझे। वो बोला और नहीं तो किसे, जल्दी आओ ।
वो आदमी ट्राई साइकिल पर बैठा था । मुझे धक्का लगाने के लिए कहा । पीछे सीट पर लिखा था हमसफ़र । उसने कहा मुझे पुल पार करवा दो । वो ऐसे बोला जैसे वो मुझे पहले से जानता हो । खैर मैं उससे वो बात पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया ।मेरी नजर उसके पैर पर पड़ी । दोनों पैर विकलांग । जुते पहनने का सवाल ही नहीं ।
वो बोलने लगा । आज मेरा बेटा आया ही नहीं । आज काम भी ज्यादा है । और कोई आदमी भी नहीं । जिन्दगी में परेशानी अकेली कब आती है । ऊपर से धूप । बैंक से निकलते निकलते हो गया लेट । पकड़ा गए धूप में । और तुम नहीं आते तो और ना जाने कितना इंतजार करना पड़ता ।
क्या नाम है तुम्हारा । तुम क्या कर रहे हो अभी । मेरा मतलब है कहाँ काम करते हो ।
इतना पूछना था कि मैं घबरा गया । आना कानी करते हुए बात करते हुए चलता गया और उसके दुकान पर पहुंच गया ।
वहाँ पहुंचा तो मैं दंग रह गया कि यह आदमी इस स्टोर का मालिक है । जहाँ मैन्युफैक्चरिंग का भी काम होता है । उसने मुझे अपना वर्कशॉप दिखाया । फिर क्या था ।
मैं बाहर बैठ कर अपने जूते को निहारने लगा । आज मुझे अपने जूते की असली कीमत पता चली । और उसके साथ ही अपने पैर के महत्व का भी पता चला । तब से मैंने उन्हीं को जीवन दे दिया क्योंकि आखिर उसी ने बचाया मुझे । दूसरी बात जो सबसे अद्भुत लगी वो ये की जिस आदमी के पास पैर नहीं । जो आदमी जुता नहीं पहन सकता हो वो पूरे शहर को जूता पहना रहा है ।
अब हम दोनों एक दूसरे के हमसफ़र बन गए । और 'हमसफ़र जूता ' बाजार में आना शुरू हो गया । वो जो उस दिन मैंने जूता पहना था अब सचमुच संग्रहालय में रखे जाने की मांग की जा रही है ।
पत्रकार - अंत में रघु जी आप क्या संदेश देना चाहेंगे युवाओं को ।
रघु जी - हमारे जूते का जो ब्रांड है , उसका टैग लाइन है - its time to move. रुको नहीं । अटके की गए काम से । आगे बढ़ना ही जिन्दगी है । हमारे 'हमसफ़र जूते' पहनें और अपनी मंजिल तक पहुंचें ।
पत्रकार- हमारे इस कार्यक्रम में आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
रघु जी- आपको भी बहुत बहुत शुक्रिया ।

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 हमारे अंतर के संवाद -

( रात की बात, खुद के साथ)


आज सुबह जैसे जगा मौसम बदला सा था । घिरे बादलों और वर्षा के कारण घूमने टहलने नहीं जा सका । लगा दिन भर ऐसा ही रहेगा मौसम ।
पर 10 बजे के पहले ही दिन निकल गया । साफ आकाश, चमकीली धूप, हल्की ठंढी हवा । जैसे मौसम बदला वैसे ही मेरा मन भी बदल गया । मौसम के साथ हमारे मन का गहरा संबंध है । इसलिए तो चमकीले धूप के निकलते ही मूड फ्रेश सा लगने लगा ।
आज काम करने को बहुत है और ऐसे मौसम में दुगुना काम होता है । मन खुश हो तो वो खुशी काम में भी दिखाई पड़ती है ।
शाम को फिर तेज हवा चलनी शुरू हुई फिर तेज बारिश । बिजली और ठनके की आवाज । प्रकृति कितना विकराल रूप धारण कर लेती है । और कभी कितनी सौम्य रूप धारण किए रहती है । क्या हमारा व्यक्तिगत जीवन इससे प्रभावित नहीं होता । हमारा व्यक्तित्व या हमारा अंतर्जगत क्या इन सबसे विच्छिन्न रह सकता है ।
कितना सब कुछ है , फिर भी मनुष्य तनाव ग्रस्त रहता है । कई बार मैं खराब मौसम के वजह से रात भर, सो नहीं पाया, कभी बाहरी मौसम का ख्याल भी नहीं रहा । जब रात को शांतिपूर्ण ढंग से सोया तो फिर नई सुबह मुझे मेरा इंतजार करते हुए मिली । मन के कमरे जो किताबें फैली हुई थी उसने सबको नीन्द ने अपने अपने रैक पर सजा दिया हो जैसे ।
यही संवाद , रात में खुद के साथ करते हुए फिर से आँख लग रही है । नीन्द, स्वप्न, दिन , रात, ये प्रकृति, अस्तित्व में हमारा होना सब कुछ सौभाग्य पूर्ण है । ईश्वर ने इतना सब दिया है फिर भी हम अपने ही हाथों स्वंम को दीन हीन समझने की गलती करते रहते हैं । और ईश्वर के प्रति आस्था में उतनी प्रगाढ़ता दिखती नहीं । अपने ही दिमाग से कितने छले जाते हैं हम सब , है ना ।

- Abhishek Kumar "Abhunandan"

 बारिस का वो दिन

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कुछ माह पूर्व , सर्टिफिकेट वितरण समारोह में एक आई टी इंस्टीट्यूट में मुझे आमंत्रित किया गया । मुख्य अतिथि के तौर पर वहाँ विद्यार्थियों से दो शब्द कहने सुनने का मौका मिला ।
उस दिन की सबसे खास बात थी कि रुक रुक कर लगातार बारिश होती रही । स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में उपस्थित थे, उत्साहित थे । लम्बी दूरी तय कर मैं भी वहाँ पहुंचा था और कार्यक्रम खत्म होते ही वापस निकल पड़ा । गाड़ी से रेलवे स्टेशन तक एक विद्यार्थी के साथ आया ।
मैं रेलवे स्टेशन पर खड़ा हूँ । भीड़ भी काफी है । चारों तरफ से वर्षा हो रही है । बिजली कड़क रही है । घटाटोप बादल घेरे है । तेज ठंडी हवा ऐसे जैसे कि उड़ा कर कहीं पटक दे । भींग तो गया था पूरी तरह पर मन में बड़ी प्रशन्नता थी कि चलो कार्यक्रम अच्छे से हो गया। ऐसे मौसम में भी विद्यार्थी कितने उत्साहित थे । उन सबके पास से होकर आते हुए मुझे ये टेंसन ही नहीं हुई कि बारिश हो रही है । मैं भींग गया हूँ । मेरे भीतर अब भी उत्साह की गर्मी थी । कुछ आसपास के लोग ठिठक कर खड़े थे । मानो उनका पूरा शरीर बोल रहा हो अभी ही बारिश पड़नी थी । बिजली ऐसे कौंध रही है । कहीं हमारे ही सिर पर ना गिर जाए । और उनके डर की मात्रा बढ़ने के साथ साथ बारिश भी अपनी तीव्रता में बढ़ोतरी किए जा रही ।
मूसलाधार बारिश जैसे कह रही हो, आज मैं नहीं छोडूंगी ।सब दिन का कोरकसर आज ले कर रहूँगी । ट्रैन को आने में विलंब था ।
मैं भी एकाएक सोचने लगा , कितने दिनों बाद मैं आज इतनी दूर आया और बारिश को आज ही इतना बरसना था । आधा दूर आ चुका था । अच्छा होता गाड़ी से ही आता पर जानबूझ कर ट्रेन से सफर करना चाहा ।
किसी तरह शाम को अपने स्थान पर पहुंचा । और थकावट तो थी ही । पर सुबह के मोटिवेशन का असर अब भी मुझ पर बरकरार है । यही तो खास बात होती है जब किसी से अच्छी अच्छी बात करते हैं, या दूसरों को किसी प्रकार से थोड़ी सी भी मदद क्यों ना करें । प्रशन्नता बनी रहती है ।
मध्य रात्रि के वक्त से मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही थी । बारिश तो ठीक उसी चाल से हो रही थी जैसे दोपहर के वक्त । कभी कभी रात को मूसलाधार बारिश तो और डरावनी हो जाती है ।
सुबह मेरा स्टाफ दीपक आया । मुझे बेड पर पड़े होने पर पूछा , " सर, आप ठीक तो हैं,
वो छूकर फिर बोला " आपको तो बुखार आ चुका है "
मैंने कहा , हाँ, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है ।
करीब एक सफ्ताह हो गए । आठवें नवमें दिन मैं पुनः ठीक हुआ । अच्छा महसूस करने लगा । मुझे यह महसूस हो चुका था कि उस दिन की बारिश ने मुझे भी सर्टिफिकेट दे दिया कि आपमें बारिश सहने की क्षमता नहीं है । ज्यादा देर भींगे रहना शरीर की क्षमता के बाहर की बात है ।
उस दिन एक और चीज ये लगी कि आप कितना भी मोटिवेटेड , उत्साहित हो जाओ अगर आपमें क्षमता नहीं है ,इम्युनिटी पावर नहीं है तो सफलता संदिग्ध बनी रहेगी ।

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 वो वृद्ध महिला

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एक बच्चा मोबाइल पर कुछ वीडिओज़ शायद कार्टून या अन्य टाइम पास चीजें देख रहा था । एक बड़ा लड़का उसे दिखा रहा था । पास में एक बूढ़ी बैठी है । अत्यंत वृद्धा । वो छोटा बच्चा उस बूढ़ी महिला के बड़े बेटे का पोता है । छोटे बच्चे के टीशर्ट पर स्पीडरमैन लिखा है । और वो बृद्ध महिला पीली साड़ी पहनी है हालांकि वो विधवा है । जो है उसका इस दुनिया में केवल बेटे पोते ।
कुछ माह पूर्व सिन कुछ अलग था । पहले वृद्ध महिला बड़े बेटे के पास रहती थी , अब अपने छोटे
बेटे के पास रहती है । कारण जो हो पर , बड़े बेटे के लड़के की शादी हो गई है और जो लड़की दुल्हन बनकर आई है उसकी चारों ओर खूब चर्चा है । और माँ को जब बेटे ने अपने पास रखने से इनकार किया तो इस बात की भी चर्चा हुई ।
पर उस बूढ़ी महिला को देखकर नहीं लगता कि वो किसी से द्वेष करती है । वो शायद सोचती होगी "सब तो अपने ही हैं किससे लड़ें । और किसको अपनी शिकायत करें । चलो खुद ही कष्ट सह लेती हूँ । एक दिन मैं भी व्याह कर आई थी , मेरे मालिक थे , हम थे । फिर सारा परिवार बढ़ा हम दोनों से ही । पाला पोसा पर अब कहाँ किसी को याद रहता है । वो बस अपना फायदा-फायदा बकता रहता है । रिश्ता और संबंध भी अब फायदे देख ही निभाये जा रहे हैं । सब कुछ सबको मैंने दिया और मुझे ही बेदखल कर दे रहे हैं । क्या आज का हृदय संवेदना शून्य होता जा रहा ।"
वो बूढ़ी शायद इन्ही सब बातों को सोचते विचारते अपना बचा हुआ दिन काट रही हो ।
बूढ़ी कहती है, उस लड़के से जो बच्चे को मोबाइल पर वीडियो दिखा रहा है । "अरे बेटा इसमें राम जी सीता मैया नाय दिखायी देता है । लगा दो हम भी देखेंगे वो हनुमानजी वाला , हमरा पोतवा भी देखेंगे । "
सोचता हूँ, दो पीढ़ी निकल गई, अब तीसरी पीढ़ी आई है । क्या हमारे देश भारत में संस्कार के उच्च आदर्शों की कमी है या स्पाइडर मेन में जो बात है वो हनुमानजी में नहीं । कहाँ कमी रह जाती है । उस बृद्ध महिला के बेटे को क्या राम कथा नहीं मालूम होगा । या उसके पोते ने रामायण सीरियल कभी ना देखा होगा । या ये तीसरी पीढ़ी जो अन्य चीजें देख रही उससे क्या और उम्मीद की जा सकती है । कल वो भी तो अपने पिता को किसी वृद्ध आश्रम में या कहीं अकेला छोड़ दे सकता है ।
ऐसी स्थिति में किसका हाथ है, वृद्ध महिला का, युवा का, वीडियो का या समाज का ।

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 दीवारों की दुनिया ।

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एक राजकुमारी थी । अपने राजा पिता की एकमात्र संतान । माँ बचपन में ही चल बसी थी । राजकुमारी बड़ी हुई । राजा भी वृद्ध हो चला था । अतः उसने सोचा मरने के पहले कुछ यादगार चीज बना कर जाऊं । सभा बुलाई गई । सबों ने एक से बढ़कर एक प्रस्ताव दिया । पर किसी का प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा । एक दिन उसने एक सपना देखा कि वो एक बाग में है । और जहाँ रंग रंग के फूल खिले हैं । वह राजा अति प्रशन्न हुआ । कि उसके सपने में जो दिखाई दिया वो अगर सच में हो जाए तो बहुत अच्छा हों।
दूसरे दिन फिर सभा पुनः बुलाई गई । बाग लगाने का प्रस्ताव तो सबको अच्छा लगा पर ये तो कोई कह नहीं सकता कि कल ये पौधे जीवित रहेंगे या नहीं । उसकी सुरक्षा के लिए और उसकी विशेष पहचान के कारण एक जादूगर की मदद ली । उस राजा ने एक बाग लगवाया । जो कई जादूगरी विशेषताओं से लैस थी । बहुत दिन हुए । प्रसिद्धि फैली और चारों तरफ के दुश्मनों ने सोचा अगर वो बाग हमें प्राप्त हो जाए तो अच्छा होगा । लड़ाई छिड़ी । राजा मारा गया ।

अब राजकुमारी अकेली रहती है एक गुप्त जगह पर जहाँ की जानकारी किसी को भी नहीं । राजा ने इसी सुरक्षा के लिए उसे बनवाया था ।
वो राजकुमारी अकेले रहती । उसके साथ कोई नहीं था । वह जब अपने कमरे की दीवार को देखती तो उसके पूर्वजों की उसे तस्वीर दिखाई देती । कई बार उसके पूर्वज उसके सपने में आते । वे कहते कि हमें मुक्त कर दो । हमें मुक्त कर दो । मैं इस दीवार में अब नहीं रहना चाहता । कई बार वो सोचती रहती कि पूर्वजों के जो चलचित्र दिखाई देते है । वो ऐसा क्यों होता है । कई कई बार उसके जेहन में ये बात इसलिए आती हो कि वो इस भवन से बाहर जाना चाहती है । पर जा नहीं सकती ।
एक बार उसके कमरे में एक चिड़ियाँ घुस गई । चिड़ियाँ बहुत कोशिश करती बाहर जाने की पर नहीं जा पा रही थी । वह जितनी बार उड़ती छत से टकरा जाती । कभी पर्दे से वह उलझ जाती । खिड़की दिख नहीं रही थी उसे । बसे एक बार देखा भी तो रॉड की धारियां उसे निकलने नहीं देती । अगर निकलती तो उसके पंख कट जाते ।
चिड़िया के इस उलझन को देखकर उसे अपनी याद आने लगी ।
तभी चिड़ियाँ उस राजकुमारी से कहती है क्या तुम मुझे यहाँ से निकलने में मेरी मदद कर सकती हो । हाँ, कर सकती हूँ । इतना कहते ही ग्रिल और खिड़की दोनों खोल दी । वो चिड़िया बोली चलो तुम भी मेरे साथ । राजकुमारी बोली मैं अभी नहीं जा सकती ।
आज उसे फिर स्वप्न आया कि वो खुद घर की दीवार में चुन गई है । वह पत्थर में कैद नहीं होना
चाहती । जैसे ही वह यह बात बोली नींद टूटगई ।
वो सोचने लगी स्वप्न का संसार भी अजीब होता है । जो वास्तविक होने पर भी उसका कोई वजूद दिखाई नहीं पड़ता । पर उसे भाव अभी तक मन को आक्रांत किए हुए थे ।
वह सुबह भाग जाने का निर्णय की । और सुबह होने के पहले भाग गई । सबसे बचते हुए तो निकल गई पर वो ऐसे बाग में जा पहुंची जहां हरे घास के पौधे से दीवार बने हुए है । घास के गलीचे हैं । वो पहले से यहाँ खुश है । चारों तरफ हरियाली । फल फूल की कोई कमी नहीं । पर यहाँ रहते हुए उसे कई वर्ष हो गए । इससे भी वो ऊब गई । क्योंकि यहाँ कुछ भी नया नहीं होता । सब कुछ एक जैसा बना रहता । फूल खिलते हवा में हिलते डुलते पर कोई विशेष आकर्षण नहीं रह गया हो जैसे अब उसमें । वो सुबह से शाम तक खोजती रहती , भूख लगता फल तोड़ कर खा लेती । तितली के साथ खेलती । फिर थक कर सो जाता । फिर उठती तो उन्हीं दीवारों से खुद को घिरा पाती । ये कैसी दुनिया है जो खत्म ही नहीं होती । बहुत प्रयत्न कर थकहार कर बैठ गई । वो अब निर्णय करना चाहती है अब वो जिन्दगी भर यहीं रहेगी । इससे शायद बाहर जाने का रास्ता नहीं है । ठीक उसी समय उसे एक चिड़िया की आवाज सुनाई पड़ी । और उसे याद आया यहाँ रहते हुए इतने वर्ष हो गए पर एक भी चिड़ियाँ दिखाई नहीं पड़ी । अभी जो आवाज सुनाई पड़ी वो तो उसी पक्षी का लग रहा है जो वर्षों पहले मेरे महल के कमरे में फंस गई थी । आज फिर वही चिड़ियाँ उसे मिली पर वो घायल है । किसी तरह पत्तियों के रस से उसका उपचार करने पर जान बची । अब पक्षी बोली तुम यहाँ से कैसे आ फंसी । आजतक कोई नहीं यहाँ से जा पाया । यहाँ से निकलने का एक ही रास्ता है अगर तुम वो करोगी तो तुम निकल जाओगी । चिड़ियाँ के कहने पर वो आँख बंद की । बोली मैं जिस तरफ से आवाज दूंगी तुमको उधर ही चलते चलते आना है । बीच में आँख पर लगी पट्टी मत खोलना । और कुछ ही देर में किसी तरफ संतुलन बिठाते बिठाते वो ऐसी जगह पहुंच गई जहाँ बहुत सारे पक्षियों की आवाज सुनाई देने लगी । चिड़ियाँ के कहने पर वो अपने आँख पर लगी पट्टी खोलती है , वह खुद को पाती है कि ऐसे जगह आ गई जहाँ दूर दूर तक कोई दीवार नहीं हैं । यहाँ अब कुछ भी कृत्रिम नहीं । पेड़ पौधे पहले से कहीं ज्यादा खुश और जीवंत । दूर तक फैला समुद्र है , दूर पहाड़ों पर हरियाली दिख रही है । नीला आकाश । खूब सूरत बादलों की आकृति, सूरज की खुशनुमा धूप । सब कुछ कितना सुखद लग रहा पहले की तुलना में । वो पहले इतना बड़ा जगह देखी ही ना । आकाश की विशालता और सुदूर मैदानी इलाके से पहली वह खुशी से नाचने गाने लगी । इतनी खुशी पहले कभी नहीं हुई थी ।
रात हुई । पूर्णिमा की रात थी । आकाश में उड़ते बादलों और चांद की शीतल रोशनी को देखते देखते सो गई । वह स्वप्न देखती है कि वो चिड़ियाँ एक परी है वो उसे अपने परी लोक ले जा रही है । परी लोक से जब पृथ्वी पर झांकती है तो उसे लगता है वो जिस दुनिया से आई है वो तो दीवारों की दुनिया है । पूरी पृथ्वी भी एक अदृश्य दीवार से हवा से घिरी हुई है । और हर पल दृश्य बदल रहे है । सब कुछ जीवंत है पर सबकुछ बंधन में है । पृथ्वी पर होना ही है बंधन में पड़ना । वहाँ स्वतंत्रता है कहाँ । हर तरफ दीवार ही दीवार हैं । सबकुछ बंटा हुआ , बंधा हुआ है ।
अच्छा होता कि मैं भी यही रहूँ परी लोक में ही । राजकुमारी मन ही मन कहती है । परी बोली अभी तुम्हारा समय नहीं आया । जो दूसरों की सेवा में अपना जीवन दे देती है । वह स्वतः इस लोक में आ जाती है । तुम भी इंसानियत की बातों का पालन करोगी, दूसरों की मदद करो । तो तुम्हें भी मनचाहा पद ,जगह, सम्मान मिल जाएगा ।

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 फ्लैट नं०13

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"गली से ये कैसी आवाज आ रही है, रामू जरा खिड़की खोल कर देखना तो " मुरलीधर ने कहा ।
मुरलीधर दर्शनशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं । जो एक कमरे के फ्लैट में अकेले रहते हैं ।
रामू चाय लाकर सामने टेबल पर अखबार के बगल में रखते हुए धीरे से कहा "लगता है आज उसने फिर पी लिया है सुबह सुबह"
रामू गली के तरफ की खिड़की खोल कर देखता है, फिर लगा देता है । दूसरे तरफ की खिड़की खुली है । सामने नीम का पेड़ है । जो पूरी तरह उसी फ्लैट की तरफ झुका हुआ है । प्रोफेसर जब भी उस खिड़की से बाहर की ओर देखते हैं, वही नीम का पेड़ उन्हें दिखाई देता ।
रामू के कहते ही सुबह सुबह, मुरलीधर अपनी कलाई में लगी घड़ी देखते हैं । सुबह के 8 बज कर 13 मिनट हो रहे हैं ।
"गौतम है सर, वही जिसका दो बिल्डिंग बाद घर है । और एक दो आदमी है जो उससे बहस कर रहे हैं " रामू ने कहा ।
मुरलीधर चाय का कप उठा कर कहते हैं," छोड़ो उसे, ये लोग कभी नहीं सुधरेगा; अपना तो शांति से रहता नहीं है दूसरों के जीने में भी खलल डालता है"
मुरलीधर चाय पीते हैं और बोलते हैं," इसमें वो सुगर फ्री नहीं डाले हो क्या"
रामू, "अभी देते हैं , भूल गए...भूल गए थे डालने ।
रामू " तुम अभी से भूलने लगे हो, हम बूढ़े हो गए मगर सब याद है "
रामू समझ गया कि अब इनका रेडियो ऑन हो गया अब इसे बंद करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । आखिर दर्शन शास्त्र में भी कुछ है ।
मगर रामू करे भी तो क्या , ये तो उसका रोज का काम है । सुनाइए सुनाते रहिए, हम सब सुन लेंगे और इस कान से सुनेंगे और उस कान से निकाल भी देंगे ।
"रामू ! "
" हाँ सर"
"क्या बना रहे हो ।"
"कद्दू की सब्जी । "
"देखो ठीक से बनाना , उस दिन कद्दू कड़ा ही रह गया था । तुम जानते हो ,मेरा दांत । कड़ी चीज हमसे खाया ही नहीं जाता ।"
चाय की कप खाली कर रखते हुए मुरलीधर बोले ।
पेपर उठाते हुए रुके फिर, बोले, " एक जमाने में , गौतम बुद्ध हुए । उन्होंने जीवन को जैसे देखा । कोई आज तक देख सका है क्या । नाम से क्या होगा । गौतम , अभी भी कोलाहल शुरू ही है । गौतम बुद्ध जहाँ एक ओर शान्ति ध्यान और ज्ञान की बात करते थे । कौन सुना है उन्हें, कौन पढ़ता है उन्हें ।"
"कल रात, बगल में ही डीजे बज रहा था । कुछ कार्यक्रम होगा । तुम तो खाना पीना बना कर चले गए पर मैं रात भर सो नहीं सका । 2 बजे बाद तक नींद ही नहीं आई , फिर 3 बजे तो जागने का समय हो गया । ये डीजे डीजे क्या है, इतना लाऊड आवाज, आदमी को तो इससे हृदयाघात कभी भी हो सकता है । "
"सब पागल नाच रहे थे, अश्लील गानों पर । कहाँ जा रहा है । समाज, सोसाइटी । पढ़ा लिखा- अनपढ़ सब बराबर । ये तो हाल है, कैसी परंपरा चल पड़ी है क्या कहें "
रामू ठीक इसके विपरीत सोच रहा था और भीतर ही भीतर सब्जी की भांति तलभुज रहा था । मन ही मन कहता है, "क्या करे सब गौतम बुद्ध हो जाए, पत्नी को छोड़ के । जैसे आप छोड़ दिए हैं सबको । "
रामू सोचता है और कई बार तो कोशिश की उनसे उनके परिवार के बारे में पूछें । मगर कोई नहीं जानता ज्यादा उनके बारे में कुछ । बस सबको इतना ही पता है "वे दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके हैं और फ्लैट नंबर 13 में रहते हैं ।"
रामू ने कहा, " क्या कीजिएगा सर, वो सबको बोल भी तो नहीं सकते हैं । बोलने पर तो वे सबके सब झगड़े पर ही उतारू हो जाते हैं । एक दिन एक लड़का हमसे कह रहा था, डीजे के बिना मेरा दिमाग का कम्प्रेसर काम ही नहीं करता ।"
अचानक दरवाजा पीटने की आवाज आती है । मुरलीधर डर जाते फिर संभल कर कहते हैं," कौन हो भाई, इतने जोर से । "
मुरलीधर जैसे ही गेट खोलते हैं, सामने 4- 5 पुलिस खड़ी है ।
"आप ही रहते हैं यहाँ" पुलिस ने कहा
डरते हुए मुरलीधर ने कहा " हां..."
पूरे घर की तलाशी लो, रामू आता है .
ये कौन है । सर , ये किचन घर का काम करता है ।फ्लैट में सभी पुलिस का प्रवेश । दोनों को बिठा कर पूछताछ करने लगा उस दल को लीड करने वाला । उधर अन्य पुलिस पूरे घर की तलाशी लेने लगे । इतने में पुलिस को फोन आता है, और बात करने पर तुरंत सबको आर्डर देता है , फ्लैट नंबर 18 , भागो । बचने ना पाए । हड़बड़ा कर सब भागते हैं । उतने में सब माजरा समझ आ जाता है । थोड़ी ही देर में पूरे एक गाड़ी विदेशी शराब जब्त की गई, दो अपराधी हथियार के साथ गिरफ्तार किए गए । साथ में गौतम को भी सड़क पर पकड़ कर लाया जा रहा है । उसी के यहाँ ये सब अवैध काम होता था ।
ये सब मुरलीधर उसी निम पेड़ वाली खिड़की से सब देख रहे थे । वो ये समझ नहीं पा रहे थे कि मेरा कोई ग्रह गोचर में तो प्रॉब्लम नहीं चल रही, या इस फ्लैट में कोई प्रॉब्लम है क्या । 3 माह हो गए और हर तीसरे या चौथे दिन कुछ न कुछ लफड़ा हो ही रहा है । या ये कॉलोनी ही वैसी है । मुझे तो शक इसका भी है ये पुराने से जर्जर मकान भी कब धरासायी हो जाए, कहा नहीं जा सकता । लगभग 70 - 80 साल तो हो ही गए होंगे मेरी तरह । हमारे पास भी अब टाइम कितना है कौन जानता है । कि कब मौत आए और गिरफ्तार कर मुझे लेकर चल पड़े ।

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C-7a: Pedagogy of social science [ B.Ed First Year ]

1. माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आपके द्वारा चुने गए विषय का क्षेत्र क्या है ? उदाहरण सहित व्याख्या करें। माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए हम...