बहस बहस में
*********हेलो,
हाँ हेलो,
आप कौन,
आप कौन बोल रहे हैं ।
आपका कॉल आया था ।
आप कॉल किए और बोल रहे ....।
कहाँ से बोल रहे हैं ।
आप कहाँ से बोल रहे हैं ।
हम वो लाल जी बोल रहे हैं ।
ओहो, आपको पहले बोलना चाहिए । हम तो कुछ और समझ रहे थे ।
क्या समझ रहे थे ।
नहीं छोड़िए, और बोलिए क्या कह रहे हैं ।
वो कह रहे थे कि अगुआ फोन किया था,
चलिएगा लकड़ा देखने ।
चले जाएंगे मगर क्या करता है लड़का ।
कुछ नहीं, अभी तो बेरोजगार है ।
आप कहे थे कि वो लड़का फ्लिपकार्ट कार्ट में है ।
वो तो दूसरा लड़का था । आप जइबे नाय किए उस टाइम ।
तो अभी क्या , होगा । जाने से कुछ फायदा होगा । बोलिए ।
फायदा, कौन चीज का फायदा ।
फायदा देखिए तो बिहा कर पाइएगा ।
अरे बिहा (विवाह) करना है महाराज, क्या बात करते हैं ।
कैसे होगा, आप फायदा खोजते हैं । और पूछते हैं कि लड़का क्या करता है ।
तो क्या नहीं पूछें । काहे नहीं पूछेंगे ।
अच्छा, आप बताइए क्या करते है , बताइए जरा ।
हम...हम....शादी कराते हैं ।
अरे अब ना शादी कराने लगे पहले क्या करते थे ।
आप क्या करते है आप भी तो यहीं काम करते हैं ।
हमरा बात छोड़िए ।
कैसे छोड़ दें, जवानी में जब बेरोजगार थे हमी बिहा करा दिए थे ।
आप का कौन कराया था, भूल गए, आपके बाबू को हमी एडरेस दिए थे ।
इस तरह दोनों घंटों उलझ गए और एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप चलता रहा ।
रामपुर । मैं इस इलाके में नया स्कूल में शिक्षक नियुक्त हुआ । बस की सवारी कर, शहर से अब गाँव आ गए ।पर लौडस्पीकर ऑन कर दोनों ने बहस करना जो शुरू किया वो बहस बहस में बढ़ते चला गया । मैंने बगल के यात्री को पूछा "ये कौन आदमी है जो कान पकाए जा रहा है । और स्कूल किस तरफ है । "
दूसरे ने बताया "दोनों को एक दूसरे का हाल पता है। एक संस्कृत का अध्ययन करके पंडित बन गया । दूसरा कर्मकांड कर काफी लोक प्रिय हो गया । दोनों को एक दूसरे से जलन होने लगी । पहले कि आँखें खराब हो गई थी पढ़ते पढ़ते । दूसरा असमय बहरा हो गया । परिणाम स्वरुप दोनों एक दूसरे के निकटवर्ती होते हुए भी बहस किया करते । दोनों अपनी अपनी पंडिताई खूब झाड़ते ।
उपरोक्त संवाद तो एक उदाहरण था जैसे , पूरे गाँव , बाजार, मोहल्ले में बस दो ही थे एक लाल बाबा, एक पिला बाबा । बात कुछ हो दोनों ऐसे उलझ पड़ते जैसे महाभारत अब होने ही वाला है । कोई हार मानने को तैयार ना था ।
कभी कभी बीच चौक पर शास्त्रार्थ शुरू हो जाता । भीड़ इक्कठी हो जाती । मामला घंटे दो घंटे कभी कभी तो 3 घंटे तक दोनों अपने बात पर अड़े रहते ।"
बेरोजगारी कुछ हुनर दे ना बोलने में एक्सपर्ट बना ही देती है । वो भी इतना नेगेटिव की आगे बात बन ही सकती । बेरोजगार तो यही समझते हैं कि सबके पास उतना ही टाइम है, जितना उनके पास होता है । और काम की बात पूछने पर भड़कना स्वाभाविक ही है । कुछ यही सब खुद से बात करता हुआ स्कूल की तरफ चल पड़ा पर जब भी किसी को बहस करते देखता तो लाल बाबा पिला बाबा की याद आ जाती ।
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