कोई अपना सा
एक सवाल उठा,
जैसे धुआँ हो गुबार सा,
हाँ, सांसें भी रुक सी गई।
एक जिन्दगी ही सही,
जैसे बाकी सब करते रहे गलतियाँ।
ना जान पाये हम कभी,
सजा जो हमें मिलती गई।
एक खुशी की खातिर,
जैसे चारों तरफ बिछी हो कांटियाँ।
मुस्कुराहटें दी हमने सभी को,
पर किसी को मेरी खातिर एक आँसू ना आई।
एक धुन बजी,
जैसे कि एक लहर
दिल को छू कर चली गई।
एक आवाज आई,
जैसे एहसासों के वे पल।
यादों के झोंके आई और चली गई।
एक दर्द जो जगा गई।
जैसे कोई अपना सा,
चला गया हो दूर कहीं।
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