पर्वों के बहाने कुछ बातें
27 अक्टूबर 2017

एक
तरह से देखा जाए तो ये उत्सव, त्योहार, पर्व आदि बाजार और समाज दोनों के लिए अच्छा है। इन त्योहारों की अधिकता से
बाजार में रौनकता बनी रहती है। अलग अलग
त्योहार में अलग अलग चीजों की माँग बढ़ती है। हमारे व्रत त्योहार इस तरह से सजे हुए
हैं कि जिस मौसम में जो फल आदि या आहार हमें ग्रहण करना चाहिए बताते हैं। अतः हम
कह सकते हैं कि भारतीय समाज के त्योहार की इस तरह से व्यवस्था की गई है कि मानव
चतुर्मुखी विकास हो।
जितने भी व्रत–त्योहार
हैं सबमें किसी न किसी देवी- देवताओं के पूजा–अर्चना का विधान है। वे देवता हमारी
रक्षा करें। हमारे जीवन को सफल बनावें। वे हमपर अपनी कृपा – अनुकम्पा बनाए रखें।
लोग ऐसी मनोकामना और प्रार्थना करते हैं। कृष्णा अष्टमी – भगवान श्री कृष्ण के पृथ्वी पर अवतरण की पूजा, तो रामनवमी में भगवान राम की आराधना
। गणेश चतुर्थी में भाग्य के देवता गणपती की पूजा होती है तो वहीं साल के प्रारम्भ
में वसंत ऋतु में माता सरस्वती जो ज्ञान–विज्ञान गीत-संगीत की आधीष्ठात्री हैं, पूजा अर्चना बड़े श्रद्धा भाव से किया
जाता है। शिव रात्री में महाकाल देवधिदेव भगवान भोले नाथ की पूजा होती है। यूं तो
सावन का महिना उन्हीं को समर्पित है। मार्च का महिना तो रंगोत्सव का है। होलिका
दहन का है। होलिका दहन में लोग, पुरानी चीजों और जो कुछ भी जर्जर समान होता है उसे आग के हवाले कर देते हैं। हिन्दू
धर्म में प्रकृति के मूल श्रोत्रों की पूजा का विधान है। प्रकृति ही नहीं यहाँ
पशुओं और पौधों की भी पूजा होती है।
हिन्दू संस्कृति में एक
बहाव है जो नदियों सा कल कल बहता रहता है। हमारी परम्परा – पर्व – त्योहार उत्सव
सब कुछ इस तरह से है हमारे जीवन में शामिल है जैसे इन्द्र धनुष के रंग (ग्राडिएंट
ऑफ कलर)|
ना जाने कितने रंग,
ना जाने कितने देवी देवता, ना जाने कितने उत्सव, ये सब के सब अपने आप में सम्पूर्ण होते हुए भी; एक ही में नहीं रमे रहने की प्रेरणा नहीं देते। समय की
तरह हमें भी गतिमान रहना चाहिए।
मानो वे कहते है कि अपनी
मनोवृति परिवृति सब कुछ बदल डालो पर वृत में रहो। चित्त वृत में रहो। चित्त वृत का
तात्पर्य भी यही है कि जितनी भावनाएं हैं सब का चक्र पारी पारी से चलता रहता है और
इन्सान इसी सब से खुद को उलझा हुआ पाता है पर ये उलझन ही उसके विकास और उन्नति का
कारण जरूरत है उसके सही तत्व को पहचानने की। जरूरत है सही दिशा में मस्तिष्क को
संलग्न करने की उन विचारों को जीवन में उतार कर परिणत करने की।
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