मैं
मैं एकांत हूँ,
इसलिए मैं स्वतंत्र हूँ.
मैं मौन हूँ,
मैं स्वं ही मुग्ध–मंत्र हूँ।
रचनात्मक हूँ
यद्द्पि मैं जीर्ण शीर्ण हूँ.
मैं खुश हूँ,
क्योंकि मैं सम्पूर्ण हूँ.
मैं प्यार हूँ,
मैं पानी की धार हूँ,
मैं प्रकाश हूँ,
मैं जिन्दगी की आश हूँ।
मैं हंसी हूँ,
मैं मज़ाक हूँ।
मैं सबकुछ हूँ
और मैं ही खाक हूँ।
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