रविवार, 25 फ़रवरी 2018

वेलेंटाइन दिवस
14 फरवरी 2017 
वेलेंटाइन डे मतलब सबके लिए अलग-अलग हो सकता है किन्तु समांतया कुछ वर्षों से प्रेम दिवस, प्रणय दिवस के रूप में प्रथा ज़ोरों से चल पड़ी है। इस दिन कुछ गृहस्थ लोग मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तो वहीं देश भक्त जन ने इस दिन शहीद दिवस के तौर पर भगत सिंह को श्रद्धांजली देते हैं। इसे आधुनिक युग में इस पर्व को बाजार की तरफ से वेलेंटाइन डे के तौर पर ज्यादा तवज्जो दिया जाता है। टीवी और सोशल साइट्स पर तो इस प्रेम दिवस के बारे में कहना ही क्या। वो तो आप पहले से अवगत हो ही।
मेरी मानें तो इश्क़ से बढ़कर देश भक्ति का नशा अच्छा है। कम से कम शान से जीना तो आ जाता है और शहीद होना, ये तो सिर्फ सौभाग्य की बात है; और रही प्रेम की बात तो यथार्थ यही है कि जगत में माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं हो सकता है। बाकी तो सारे प्यार कि बातें हैं वो भी खोखली और झूठी । हालांकि इतना सभी जानते है और मानते भी। किन्तु एक  सत्य यह भी है कि ज़्यादातर युवा व वयस्क फिल्मों के प्रेमी जोड़े को देख कर उन्हें रियल लाइफ में भी अप्लाई करना चाहता है।
            रसिया लोग इस पर्व को मनाना चाहते हैं पर चोरी छिपे । उनका मानना है ये प्यार का पर्व है। आशिक़ी का उत्सव है। दिल वालों के लिए प्रेम प्रकट करने का महोत्सव है, जिसे पूरी विधि – विधान से मनाने का रिवाज है। इस पर्व के जानकारों के अनुसार हर दिन एक खास आइटम व आजमाइस का प्रावधान है। पेमी – प्रेमिका किसी भी सूरत में हो ऐसे दिन नहीं भूलते और पूरे साल कि कसर इस सप्ताह में निकाल देते हैं। उनका फिल्मी रोमांस में अपार श्रद्धा होती है जिसे बड़े भाव से हकीकत से रूबरू होते हैं।  आखिर उनकी सब्र का इम्तेहान भी तो है, और दोनों तरफ से इसकी तैयारी में लंबे अरसे से हो रही थी। ऐसे महान पर्व में कई तरह कि कहानियाँ बन भी जाती है और कोई कहानियाँ बनाने चूक जाते हैं। जो चुके वो समझो बहती गंगा में हाथ धोने से रहे। क्योंकि भाई प्यार करने के लिए जिगर चाहिए। बजरंग दल और न जाने कितने तरह के दलदल; प्रेमी-जोड़ो पर कीचड़ उछालने कि जुगत में रहते हैं। बड़े घबराए हुए से प्रेत्येक प्रेमी जन प्रतीत होते हैं। कि कहीं उन्हें देख न लें कोई। कई तरह के व्हात्सप्प विडियो वायरल हुए है जिसमें प्रेमी की पिटाई हो रही है। जहां ये पिटाई कार्यक्रम चल रहा होता है। वह लगे हाथ दूसरे लोग भी अपना हाथ आजमाने से नहीं चूकते और मीडिया की क्या जरूरत । आज के डेट में तो सारे सिटिज़न एक जुर्नलिस्ट हैं सो अपना स्मार्ट फोन से लगे फोटो और विडियो बनाने और एक सेकेंड नहीं हुआ वायरल हो गया। इस तरह आधुनिक काल की परिस्थितियों को सेल्फ़ी सभ्यता और वायरल संस्कृति से नवाजा अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बॉय फ्रेंड बनने की अनिवार्य शर्त यह है कि पॉकेट गरम होना चाहिए और बाइक तो पान के साथ ज़र्दा का काम करता है। ऐसे लड़के अक्सर लड़कियों को बेवकूफ समझने कि भूल कर बैठते हैं। कई दफे लड़कियां भी ऐसी गलतियाँ कर देते हैं। सारे के सारे लोग अपनी गोटी सेट करने कि फिराक में रहते हैं। लड़की दिखी नहीं की पूरी जिन्दगी के सपने एक पल में देख डाले। लड़की पट भी गई। माने गोटी सेट भी हो गई। और फिर लगे एक दूसरे को आबाद करने। ये खयाल ही नहीं रहता कि कौन किसको यूज कर रहा है। जो भी हो बड़ा इंट्रेस्टिंग सा खेल बन जाता है। बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बनाने और झलने के दौरान। लाइफ से किसी के किसी वजह से चले जाने आत्म ज्ञान होता हुआ मालूम  पड़ता है।

देखिए आप प्रयास करते रहिए, इसमें कोई हर्ज नहीं मगर किस्मत और वक्त अपना काम करते रहेंगे। आशा करना, सब्र करना, प्यार के सपने देखना, मन ही मन चाहना, प्यार कि बातें कहना सुनना देखना, ये सब अच्छा है, बहुत अच्छा है। इतना सा चलेगा। वरना सुनने में तो बहुत कुछ आता है। जैसे प्यार का एक उफान आया और फ़ोरन उतर भी गया। और इसका परिणाम । सब कुछ खो बैठे। नींद, चैन, वक्त रुपए, आजादी, सब कुछ जो अपना था वो सब गिरवी रख दिया। क्योंकि प्यार का मतलब ही होता है – देना और सिर्फ देना।
फिल्मी गानों से तो आप वाकिफ ही होंगे। ज़्यादातर विद्यार्थी जिनके कानों में ईयर फोन लगे रहते हैं। अगर ईयर फोन  नहीं तो समझ लीजिए। वह पक्का प्रेमी नहीं है। हाँ पढ़ाकू हो सकता है। इन गानों का असर इतना हो गया है कि हर क्लास के बच्चे किसी अभिनेताओं के अनुयायी अवश्य होंगे। और उन्हीं कि तरह अपनी जोड़ी किसी के साथ लगा रखते हैं ये अलग बात है कि एक तरफा होता है अकसर।  कोई इसे जाहीर कर देता है तो कोई त उम्र नहीं करता। किन्तु बुढ़ापे तक इस वालेंटाईन दिवस के प्रति एक अबूझ और अतृप्त लालसा बनी रहती है। वो पुराने खत या तस्वीर जरूर निकाल कर याद ताजा करते हैं।
अंत में एक प्रश्न रख रहा हूँ- आज प्रेम –प्रसंग की जगह अंग- प्रत्यंग पर ध्यान ज्यादा दिया जा रहा है? मन की बजाय तन को क्यों प्राथमिकता दिया जा रहा है? सच्चा स्नेह के बजाय वासना और तृष्णा में ही सारे प्रवृत्त हैं, क्यों?
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