सोमवार, 26 फ़रवरी 2018


शब्द – रचना

           शब्द की शक्ति अनन्त है। शब्द में इतनी शक्ति है जितनी हमारी आत्मा में। शब्द आत्मअनुभूति का एक सशक्त साधन है और पर्याय भी। शब्द कभी खत्म नहीं होते किन्तु ये संभव है शब्द परिस्थिति या भाव वश अपना रूप बदल ले। शब्द हमारी आत्मा की आवाज है। हमारी भावनाओं का प्रवाह है। शब्द हमारे विचारों का श्रोत है। शब्द रंग है, कशीदा है, कलाकारी है। शब्द जिन्दगी के चादर का धागा है। धागा के बिना ना चादर है और ना शब्द के बिना ना जिन्दगी ना ये संसार। शब्द एक विज्ञान है, प्रकृति के, प्रवृति के, प्रेरणा के, अनुभूति के, कल्पना के और तमाम रहस्यों के प्रकटीकरण का। शब्द के मूल में ही सृष्टि है, सृजन है और विनाश भी। शब्द के कई विषय हैं और सारे विषय शब्दों में ही पंक्तिबद्ध हैं। शब्द में समय संचित हैं।

            शब्द के प्रकटीकरण के कई तरीके है। किन्तु मुख्य रूप से दो हैं एक आवाज के जरिए तो दूसरा लिखावट के जरिए। दोनों की अपनी महत्ता है। एकरूप में तरंग - गीत है तो दूसरे में  मूक- संगीत। एक सूरज के किरणों सा चमकता है तो दूसरा बारिश में भिंगने का एहसास देता है। सचमुच लिखना या पढ़ना बारिश होने के जैसा है जिसमें विचारों की अनगिनत बुँदे लगातार गिरने से सुखी धरती को जलमग्न कर देती है। वैसे ही विचार हमारे प्यासे मन- मस्तिष्क को तृप्ति मिलती है, अनुभूति मिलती है। आनंद मिलता है, उत्साह जागता है। प्रेरणा के कमल खिलने लगते हैं जैसे बादलों के दलदल से बिजली चमकने लगती है। किसी भावनाओं की अभिव्यक्ति करना किसी विचार को लिपि बद्ध करना सागर से मोती चुनकर उससे माला बनाना सरीखा है। ये कला और विज्ञान से परे की साधना और अनवरत अंत हिन संघर्ष।

               कोई भी रचना हो। उस रचना में मौलिकता उसकी आत्मा है। तर्क बौद्धिकता को दर्शाता है। तथ्य रचना को सारगर्भित बनाता है और प्रमाण उस रचना को पठनीय । रचना की भाषा जितनी सरल, सहज और स्वाभाविक होगी वह उतनी ही पाठक को रुचिकर लगेगी। पाठक उसी रचना से रस लेंगे। उसी का अनुकरण करेंगे और उसी की बात भी करेंगे। वैसी ही रचनाओं की पत्र / पत्रिकाएँ या पुस्तक / पुस्तिका खरीदेंगे हाथों हाथ लेंगे।

               आज मनुष्य स्वयं  को पारंपरिक की बजाय आधुनिकता या कहें डिजिटलायजेसन को अधिक तबज्जो दे रहा है। वह ऑनलाइन ही समाचार पत्र / मनोरंजन पत्रिका / कॉमिक्स / उपन्यास एवं छोटी – बड़ी कहानियाँ पढ़ रहा है। उसके पास मनोरंजन और सूचनाओं कोई अन्य सुलभ साधन उपलब्ध हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोगों को ज्यादा लुभा रहा है। साहित्य बीते दिनों की बात प्रतीत होती है। अगर साहित्य की बात होती भी है कहीं तो नॉवेल अँग्रेजी शब्द का प्रयोग किया जा रहा है और अँग्रेजी के ही रायटर जैसे चेतन भगत, अमिश शर्मा और ना जाने कितने। जो भी व्यक्ति साहित्य में रुचि रखता है वह अँग्रेजी की तरफ अनायास ही आकर्षित हो रहा है। वैसे भी भारतीय जन मानस में इस तरह पठनीयता की कमी काफी लंबे समय से हैं। शहरी या मेट्रो सिटी के लोगों को अँग्रेजी की रचनाओं की तरफ रुझान ज्यादा है तो वही ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का रुझान धार्मिक पुस्तक रामचरित मानस / महाभारत / या अन्य धार्मिक पुरानी साहित्य में ही रामा सा प्रतीत होता है। कुछ शिक्षित मध्यम वर्गीय परिवार को छोडकर लोग व्हात्सप्प / फ़ेसबुक के कामचलाऊ, मिडियाई, बल्गर, अप्रामाणिक, बातों में ही लगे हैं। जो समय की बर्बादी मात्र है। ये एक बम की तरह शक्तिशाली  है इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए। और अनावश्यक बातों से बचना है तो पुस्तक से ही दोस्ती करनी होगी प्ले बुक से नहीं। लेखकों के लिए भी यह एक चुनौती है कि वे अधिक से अधिक अपने पाठक को कैसे आकर्षित कर सकते हैं।      

प्रश्न – पुस्तक का नाम क्या हो ? कैसे उस कहानी या किताब का नाम निर्धारित करें?
उत्तर- मुख्य रूप से दो प्रकार के शीर्षक हो सकते हैं पहला पात्र का नाम या जगह का नाम या उसका कहानी की मुख्य चर्चा। प्रेमचन्द्र की रचनाएँ लीजिए, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान। शीर्षक अंत से लिया गया है, कहानी का मूल उद्देश्य व शिक्षा और मुख्य घटना ।
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