रविवार, 25 फ़रवरी 2018

पहाड़ और प्रगति
               
               पहाड़ छोटा हो या बड़ा हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहा है। पहाड़ प्रकृति का सभी प्राणियों के लिए अनूठा वरदान व अनुदान सा है। सभी प्रकार के प्राणी, अमीर गरीब, साधू- डाकू, प्रेमी – दुश्मन, पशु- पक्षी इत्यादि अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पहाड़ की तरफ पलायन करते हैं। अमीरों के लिए पिकनिक स्थल तो गरीबों के लिए दर्शनीय स्थल। साधू के लिए आस्था का केंद्र तो डाकू के लिए शरणस्थली, प्रेमी के लिए क्रीडा स्थल तो दुश्मन के लिए दुर्गम क्षेत्र, पशु के लिए उत्कृष्ट वातावरण तो पक्षियों के लिए सुव्यवस्थित घोंसला।
             
              इस प्रकार हम देखते हैं कि पहाड़ हम सभी प्राणियों के लिए उपयोगी है। या फिर उपयोगी बना दिया गया है। प्रकृति ने जो हमें अनुदान दिया उसे कलाकारों और वास्तुकारों ने उसे सजाया – सवारा तो वहीं हमारे पूर्वजों ने आस्था और धर्म से जोड़ कर, एक नई परम्परा या पर्व त्योहार की शुरुआत की जो वर्तमान और भविष्य में ये परंपरा पर्व त्योहार और मेला में परिणत हो गई। वहीं ऋषि और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार उन तमाम पर्वत जो हम आज देख सुन रहें हैं उनका आध्यात्मिक महत्ता जान कर हमें आश्चर्य और हल्की-फुल्की अनुभूति होती है। यहा हल्की – फुल्की अनुभव से मेरा तात्पर्य है, इन प्रतिस्ठानों का बाजारीकरण एवं  धार्मिक अंधानुकरण । धर्म के नाम पर ढोंग व पाखंड । इन सबसे मिलकर आध्यत्मिकता के महत्व को गौण कर दिया है।  जहां धर्म की सही चर्चा। व्याख्या होनी चाहिए वही जान साधारण वेकार की पूजा अर्चना एक छोटे बच्चे के गुड्डे गुड़ियों के खेल के सदृश हो गया है। किन्तु इन सब बाह्य आडंबर के कारण भी हिंदुओं में जो भीतरी आस्था, ईश्वर के प्रति जो भाव है वो कम नहीं है।

                यही हिन्दुओं की विशेषता भी है उन पर कोई भी कितनी भी वाह्य शक्ति आ जाय, पर उस पर पूर्ण रूप से हावी नहीं हो सकता। उनके हृदय की आस्था बेमिशाल है पर मन की संकीर्णता उन्हें जड़ बनाए रखती है। उसे अपने बंधन से मुक्त नहीं होने देती। भारत यकीनन आज भी इतनी गरीबी में जी रहा है जो शहरी आबादी बेतहाशा बढ्ने के वाबजुद भारत आज भी गाँवों का देश है। गाँव के ही लोग नेता हो चुनते हैं। गाँव के युवा ही देश का प्रतिनिधित्व करते हैं किन्तु गाँव की स्थिति आज भी दयनीय है। इसके मूल में शिक्षा की और सरकार की अनदेखी व यहाँ के नागरिकों के दोगले रवैये है। यहाँ के बिचौलिये गरीबों को उठने नहीं देते, यहाँ की स्थिति सुधरने नहीं देते, आज भी सबकी स्थिति लगभग सभी क्षेत्र जैसे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी में पिछड़ा है। किन्तु बदली सामाजिक स्थितियों एवं विचारों से स्थिति में परिवर्तन की किरण दिखती है पर अभी बहुत कार्य व प्रगति करने को शेष है।      
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