सोमवार, 26 फ़रवरी 2018



हम ही हैं रास्ता


हम ही हैं रास्ता,
हम ही है राही।
इस जीवन की मंजिल,
है क्या ? बता तो सही।

काम काम और काम,
क्या यही है जिन्दगी का नाम।
ढूंढ रहा हूँ पद चिन्हों को,
किस ओर गए हैं मेरे राम।

तत्पर हूँ ताज त्याग करने को,
सहज तैयार हूँ वन गमन करने को।
उत्सुक हूँ, सत्य की रक्षा के लिए,
बता कहाँ शेष है, आग लगाने को।

जीतना जानता हूँ,
फिर भी स्वयं को अनभिज्ञ मानता हूँ।
यही तो रहस्य है जीवन का,
बता तो जरा, मैं जो सोचता हूँ।

हम ही हैं रास्ता,

हम ही है राही।
इस जीवन की मंजिल,
है क्या ? बता तो सही।






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कोई अपना सा

एक सवाल उठा,
जैसे धुआँ हो गुबार सा,
हाँ, सांसें भी रुक सी गई।


एक जिन्दगी ही सही,
जैसे बाकी सब करते रहे गलतियाँ।
ना जान पाये हम कभी,
सजा जो हमें मिलती गई।

एक खुशी की खातिर,
जैसे चारों तरफ बिछी हो कांटियाँ।
मुस्कुराहटें दी हमने सभी को,
पर किसी को मेरी खातिर एक आँसू ना आई।

एक धुन बजी,
जैसे कि एक लहर
दिल को छू कर चली गई।

एक आवाज आई,
जैसे एहसासों के वे पल।
यादों के झोंके आई और चली गई।


एक दर्द जो जगा गई।
जैसे कोई अपना सा,
चला गया हो दूर कहीं।





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मैं


मैं एकांत हूँ,
इसलिए मैं स्वतंत्र हूँ.
मैं मौन हूँ,
मैं स्वं ही मुग्ध–मंत्र हूँ।

रचनात्मक हूँ
यद्द्पि मैं जीर्ण शीर्ण हूँ.
मैं खुश हूँ,
क्योंकि मैं सम्पूर्ण हूँ.

मैं प्यार हूँ,
मैं पानी की धार हूँ,
मैं प्रकाश हूँ,
मैं जिन्दगी की आश हूँ।

मैं हंसी हूँ,
मैं मज़ाक हूँ।
मैं सबकुछ हूँ
और मैं ही खाक हूँ।



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जो तेरा रूप है.

सोना सा,
ये जो धूप है.
भाए मुझे,
जो तेरा रूप है.

यादें...
जैसे ठंडी हवाएँ.
आए – जाए,
कभी हँसाए ये कभी रुलाये.

वो अदायें, हाय ....
गुस्साना और मान जाना तेरा.
तू पास नहीं तो क्या...
रहूँगा हमेशा, दीवाना तेरा.


कभी बातें न करके ,
अन्दर ही अन्दर तड़पावे तू.
मुझसे दूरियाँ बनाके,
हाँ बता जरा, खुद को भी क्यूँ तड़पावे तू.

जाने न कोई,
दिल मेरा क्या कह रहा.
हाँ तू ही मेरी,
किस्मत जो ऊपर वाला लिख रहा.

सोना सा,

ये जो धूप है.
भाए मुझे,
जो तेरा रूप है.




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हमारी लाइफ

             हमारी लाइफ, आपकी लाइफ, हम सबकी लाइफ । ये बड़ी अजीब पहेली है इसे समझना बड़ा मुश्किल है और ये कह दें कि इसे 100% समझना ना मुमकिन है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हाल ही में जो मैंने फील किया है दो चार बातें हैं। -
पहला-
जैसा व्यवहार, कर्म या विचार आप करते है वैसा ही आपके साथ होता है चाहे समय कुछ परिस्थिति कोई भी होता अवश्य है। अतः कर्म करते वक्त सचेत रहें क्योंकि भविष्य निर्माण इन्हीं कर्मों का परिणाम है।
दूसरा –
हमारे जीवन को प्रभावित करने में इच्छा शक्ति बहुत बड़ा कारक है। हम जो भी जिस चीज के बारें में चिंतन मनन करते हैं, या फिर उस चीज की कामना करते हैं वो चीज, वो बातें स्वतः एक ना एक दिन हमारे साथ घटित हो जाती है। शायद किसी ने ठीक ही कहा है- मिलता उन्हीं को है जो धैर्य के साथ जीते हैं।
तीसरा –
जिन्दगी की अपनी चाल होती है उसकी अपनी रफ्तार होती उसकी अपनी लय होती है। वह किसी के अनुसार नहीं चलती उसकी लय होती है। वह किसी के अनुसार नहीं चलती उसकी रूप रेखा स्वतंत्र है शायद यही कारण है कोई उसकी एकदम सटीक तरह से जानकारी इकट्ठा नहीं कर सकती। जीवन या भविष्य का सही सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है हाँ आंशिक रूप से संभावनाओं को समझा जा सकता है।
चौथा-
किसी लक्ष्य, कार्य या वस्तु का चयन करें तो दिल से करें । चयन करते समय किसी ना किसी चीज से समझौता करना ही पड़ता है मगर समझौता करने की भी एक हद होती है। दिल को जो करना है वो तुमसे करवा ही लेगा और तुम उसमें जीत हासिल कर ही लोगे ये निश्चित है। हाँ, चुनाव दिल से होना चाहिए। मजबूरी में किसी के दबाव में चुनाव मत करो।

 हम जीवन को ऐसे जीते हैं जैसे हम सबकुछ कर सकते हैं पर वास्तविकता ये है कि हम जीवन में सिर्फ और सिर्फ एक ही कार्य करने आए हैं।  एक ऐसा कार्य जो हमारे अलावे हमारे तरीके से कोई कर ही नहीं सकता। हम समय की अपने परिस्थिति और मनोस्थिति की तीव्र वेग में बहते चले जा रहे हैं। मेरा यहाँ समय से मतलब है हमारी आज की दुनिया में जो कुछ हो रहा है या भविष्य में जो परिवर्तन होने को है और परिस्थितियों से है।


                हमारी वर्तमान पारिवारिक / सामाजिक / आर्थिक स्थिति और मनोस्थिति से तात्पर्य है वैसे तमाम विचार जो कई वर्षों से लगातार हम सोचते समझते देखते जीते चले आ रहे हैं। हमें मालूम नहीं होता कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते और ये भी कि हम आगे क्या करने वाले हैं। इस पल जो कुछ कांसस और सब-कांसस माइंड से कर रहे हैं। भविष्य में भी हम यहीं कर रहे होंगे और इसी के परिणाम हमें मिलेंगे। हमारे परिणामों से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता।  जीवन कि रोमांचकता तो इसी में है कि हम भविष्य को कितना अदभूत तरीके से लेते हैं सोचते हैं और अनभिज्ञ भी रहते हैं।

             वर्तमान ही जीवन है। परिवर्तन ही जीवन है। इस प्रकार कह सकते हैं। परिवर्तनशील वर्तमानपल ही जीवन है जिसे हमें पूरे हृदय से जीना चाहिए। कोई भी समय पर्फेक्ट नहीं होता क्योंकि परफेकसन पाने या होने कि प्रक्रिया ना चाहते हुए भी जाने अनजाने जारी रहती है।  

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शब्द – रचना

           शब्द की शक्ति अनन्त है। शब्द में इतनी शक्ति है जितनी हमारी आत्मा में। शब्द आत्मअनुभूति का एक सशक्त साधन है और पर्याय भी। शब्द कभी खत्म नहीं होते किन्तु ये संभव है शब्द परिस्थिति या भाव वश अपना रूप बदल ले। शब्द हमारी आत्मा की आवाज है। हमारी भावनाओं का प्रवाह है। शब्द हमारे विचारों का श्रोत है। शब्द रंग है, कशीदा है, कलाकारी है। शब्द जिन्दगी के चादर का धागा है। धागा के बिना ना चादर है और ना शब्द के बिना ना जिन्दगी ना ये संसार। शब्द एक विज्ञान है, प्रकृति के, प्रवृति के, प्रेरणा के, अनुभूति के, कल्पना के और तमाम रहस्यों के प्रकटीकरण का। शब्द के मूल में ही सृष्टि है, सृजन है और विनाश भी। शब्द के कई विषय हैं और सारे विषय शब्दों में ही पंक्तिबद्ध हैं। शब्द में समय संचित हैं।

            शब्द के प्रकटीकरण के कई तरीके है। किन्तु मुख्य रूप से दो हैं एक आवाज के जरिए तो दूसरा लिखावट के जरिए। दोनों की अपनी महत्ता है। एकरूप में तरंग - गीत है तो दूसरे में  मूक- संगीत। एक सूरज के किरणों सा चमकता है तो दूसरा बारिश में भिंगने का एहसास देता है। सचमुच लिखना या पढ़ना बारिश होने के जैसा है जिसमें विचारों की अनगिनत बुँदे लगातार गिरने से सुखी धरती को जलमग्न कर देती है। वैसे ही विचार हमारे प्यासे मन- मस्तिष्क को तृप्ति मिलती है, अनुभूति मिलती है। आनंद मिलता है, उत्साह जागता है। प्रेरणा के कमल खिलने लगते हैं जैसे बादलों के दलदल से बिजली चमकने लगती है। किसी भावनाओं की अभिव्यक्ति करना किसी विचार को लिपि बद्ध करना सागर से मोती चुनकर उससे माला बनाना सरीखा है। ये कला और विज्ञान से परे की साधना और अनवरत अंत हिन संघर्ष।

               कोई भी रचना हो। उस रचना में मौलिकता उसकी आत्मा है। तर्क बौद्धिकता को दर्शाता है। तथ्य रचना को सारगर्भित बनाता है और प्रमाण उस रचना को पठनीय । रचना की भाषा जितनी सरल, सहज और स्वाभाविक होगी वह उतनी ही पाठक को रुचिकर लगेगी। पाठक उसी रचना से रस लेंगे। उसी का अनुकरण करेंगे और उसी की बात भी करेंगे। वैसी ही रचनाओं की पत्र / पत्रिकाएँ या पुस्तक / पुस्तिका खरीदेंगे हाथों हाथ लेंगे।

               आज मनुष्य स्वयं  को पारंपरिक की बजाय आधुनिकता या कहें डिजिटलायजेसन को अधिक तबज्जो दे रहा है। वह ऑनलाइन ही समाचार पत्र / मनोरंजन पत्रिका / कॉमिक्स / उपन्यास एवं छोटी – बड़ी कहानियाँ पढ़ रहा है। उसके पास मनोरंजन और सूचनाओं कोई अन्य सुलभ साधन उपलब्ध हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोगों को ज्यादा लुभा रहा है। साहित्य बीते दिनों की बात प्रतीत होती है। अगर साहित्य की बात होती भी है कहीं तो नॉवेल अँग्रेजी शब्द का प्रयोग किया जा रहा है और अँग्रेजी के ही रायटर जैसे चेतन भगत, अमिश शर्मा और ना जाने कितने। जो भी व्यक्ति साहित्य में रुचि रखता है वह अँग्रेजी की तरफ अनायास ही आकर्षित हो रहा है। वैसे भी भारतीय जन मानस में इस तरह पठनीयता की कमी काफी लंबे समय से हैं। शहरी या मेट्रो सिटी के लोगों को अँग्रेजी की रचनाओं की तरफ रुझान ज्यादा है तो वही ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का रुझान धार्मिक पुस्तक रामचरित मानस / महाभारत / या अन्य धार्मिक पुरानी साहित्य में ही रामा सा प्रतीत होता है। कुछ शिक्षित मध्यम वर्गीय परिवार को छोडकर लोग व्हात्सप्प / फ़ेसबुक के कामचलाऊ, मिडियाई, बल्गर, अप्रामाणिक, बातों में ही लगे हैं। जो समय की बर्बादी मात्र है। ये एक बम की तरह शक्तिशाली  है इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए। और अनावश्यक बातों से बचना है तो पुस्तक से ही दोस्ती करनी होगी प्ले बुक से नहीं। लेखकों के लिए भी यह एक चुनौती है कि वे अधिक से अधिक अपने पाठक को कैसे आकर्षित कर सकते हैं।      

प्रश्न – पुस्तक का नाम क्या हो ? कैसे उस कहानी या किताब का नाम निर्धारित करें?
उत्तर- मुख्य रूप से दो प्रकार के शीर्षक हो सकते हैं पहला पात्र का नाम या जगह का नाम या उसका कहानी की मुख्य चर्चा। प्रेमचन्द्र की रचनाएँ लीजिए, ईदगाह, पंच परमेश्वर, गोदान। शीर्षक अंत से लिया गया है, कहानी का मूल उद्देश्य व शिक्षा और मुख्य घटना ।
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रविवार, 25 फ़रवरी 2018

वेलेंटाइन दिवस
14 फरवरी 2017 
वेलेंटाइन डे मतलब सबके लिए अलग-अलग हो सकता है किन्तु समांतया कुछ वर्षों से प्रेम दिवस, प्रणय दिवस के रूप में प्रथा ज़ोरों से चल पड़ी है। इस दिन कुछ गृहस्थ लोग मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाना चाहते हैं। तो वहीं देश भक्त जन ने इस दिन शहीद दिवस के तौर पर भगत सिंह को श्रद्धांजली देते हैं। इसे आधुनिक युग में इस पर्व को बाजार की तरफ से वेलेंटाइन डे के तौर पर ज्यादा तवज्जो दिया जाता है। टीवी और सोशल साइट्स पर तो इस प्रेम दिवस के बारे में कहना ही क्या। वो तो आप पहले से अवगत हो ही।
मेरी मानें तो इश्क़ से बढ़कर देश भक्ति का नशा अच्छा है। कम से कम शान से जीना तो आ जाता है और शहीद होना, ये तो सिर्फ सौभाग्य की बात है; और रही प्रेम की बात तो यथार्थ यही है कि जगत में माता-पिता के प्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं हो सकता है। बाकी तो सारे प्यार कि बातें हैं वो भी खोखली और झूठी । हालांकि इतना सभी जानते है और मानते भी। किन्तु एक  सत्य यह भी है कि ज़्यादातर युवा व वयस्क फिल्मों के प्रेमी जोड़े को देख कर उन्हें रियल लाइफ में भी अप्लाई करना चाहता है।
            रसिया लोग इस पर्व को मनाना चाहते हैं पर चोरी छिपे । उनका मानना है ये प्यार का पर्व है। आशिक़ी का उत्सव है। दिल वालों के लिए प्रेम प्रकट करने का महोत्सव है, जिसे पूरी विधि – विधान से मनाने का रिवाज है। इस पर्व के जानकारों के अनुसार हर दिन एक खास आइटम व आजमाइस का प्रावधान है। पेमी – प्रेमिका किसी भी सूरत में हो ऐसे दिन नहीं भूलते और पूरे साल कि कसर इस सप्ताह में निकाल देते हैं। उनका फिल्मी रोमांस में अपार श्रद्धा होती है जिसे बड़े भाव से हकीकत से रूबरू होते हैं।  आखिर उनकी सब्र का इम्तेहान भी तो है, और दोनों तरफ से इसकी तैयारी में लंबे अरसे से हो रही थी। ऐसे महान पर्व में कई तरह कि कहानियाँ बन भी जाती है और कोई कहानियाँ बनाने चूक जाते हैं। जो चुके वो समझो बहती गंगा में हाथ धोने से रहे। क्योंकि भाई प्यार करने के लिए जिगर चाहिए। बजरंग दल और न जाने कितने तरह के दलदल; प्रेमी-जोड़ो पर कीचड़ उछालने कि जुगत में रहते हैं। बड़े घबराए हुए से प्रेत्येक प्रेमी जन प्रतीत होते हैं। कि कहीं उन्हें देख न लें कोई। कई तरह के व्हात्सप्प विडियो वायरल हुए है जिसमें प्रेमी की पिटाई हो रही है। जहां ये पिटाई कार्यक्रम चल रहा होता है। वह लगे हाथ दूसरे लोग भी अपना हाथ आजमाने से नहीं चूकते और मीडिया की क्या जरूरत । आज के डेट में तो सारे सिटिज़न एक जुर्नलिस्ट हैं सो अपना स्मार्ट फोन से लगे फोटो और विडियो बनाने और एक सेकेंड नहीं हुआ वायरल हो गया। इस तरह आधुनिक काल की परिस्थितियों को सेल्फ़ी सभ्यता और वायरल संस्कृति से नवाजा अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बॉय फ्रेंड बनने की अनिवार्य शर्त यह है कि पॉकेट गरम होना चाहिए और बाइक तो पान के साथ ज़र्दा का काम करता है। ऐसे लड़के अक्सर लड़कियों को बेवकूफ समझने कि भूल कर बैठते हैं। कई दफे लड़कियां भी ऐसी गलतियाँ कर देते हैं। सारे के सारे लोग अपनी गोटी सेट करने कि फिराक में रहते हैं। लड़की दिखी नहीं की पूरी जिन्दगी के सपने एक पल में देख डाले। लड़की पट भी गई। माने गोटी सेट भी हो गई। और फिर लगे एक दूसरे को आबाद करने। ये खयाल ही नहीं रहता कि कौन किसको यूज कर रहा है। जो भी हो बड़ा इंट्रेस्टिंग सा खेल बन जाता है। बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बनाने और झलने के दौरान। लाइफ से किसी के किसी वजह से चले जाने आत्म ज्ञान होता हुआ मालूम  पड़ता है।

देखिए आप प्रयास करते रहिए, इसमें कोई हर्ज नहीं मगर किस्मत और वक्त अपना काम करते रहेंगे। आशा करना, सब्र करना, प्यार के सपने देखना, मन ही मन चाहना, प्यार कि बातें कहना सुनना देखना, ये सब अच्छा है, बहुत अच्छा है। इतना सा चलेगा। वरना सुनने में तो बहुत कुछ आता है। जैसे प्यार का एक उफान आया और फ़ोरन उतर भी गया। और इसका परिणाम । सब कुछ खो बैठे। नींद, चैन, वक्त रुपए, आजादी, सब कुछ जो अपना था वो सब गिरवी रख दिया। क्योंकि प्यार का मतलब ही होता है – देना और सिर्फ देना।
फिल्मी गानों से तो आप वाकिफ ही होंगे। ज़्यादातर विद्यार्थी जिनके कानों में ईयर फोन लगे रहते हैं। अगर ईयर फोन  नहीं तो समझ लीजिए। वह पक्का प्रेमी नहीं है। हाँ पढ़ाकू हो सकता है। इन गानों का असर इतना हो गया है कि हर क्लास के बच्चे किसी अभिनेताओं के अनुयायी अवश्य होंगे। और उन्हीं कि तरह अपनी जोड़ी किसी के साथ लगा रखते हैं ये अलग बात है कि एक तरफा होता है अकसर।  कोई इसे जाहीर कर देता है तो कोई त उम्र नहीं करता। किन्तु बुढ़ापे तक इस वालेंटाईन दिवस के प्रति एक अबूझ और अतृप्त लालसा बनी रहती है। वो पुराने खत या तस्वीर जरूर निकाल कर याद ताजा करते हैं।
अंत में एक प्रश्न रख रहा हूँ- आज प्रेम –प्रसंग की जगह अंग- प्रत्यंग पर ध्यान ज्यादा दिया जा रहा है? मन की बजाय तन को क्यों प्राथमिकता दिया जा रहा है? सच्चा स्नेह के बजाय वासना और तृष्णा में ही सारे प्रवृत्त हैं, क्यों?
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लेखक और लेखन की चुनौतियाँ



लेखक  और  लेखन  की  चुनौतियाँ


किसी फिल्म का पोस्टर कहने के लिए पर्याप्त है, उस फिल्म की कहानी, उस कहानी के भाव, उस कहानी के दृष्टिकोण, मानसिक स्थिति और अन्तः परिस्थितियाँ.

प्रश्न ये है कि हम जो जिन्दगी जी रहे हैं उसमें से कहानी कैसे निकालें ? उस कथाअंश के द्वंद की पहचान कैसे हो? कहानी का यथार्थ भाव क्या हो? जिन परिस्थितियों और कालखण्ड में वे संघर्ष कर रहे थे. या कर रहे हैं उनकी वास्तविक समस्या क्या है? वे किन वजहों से स्वयं को या स्वयं के वातावरण से प्रभावित हो रहे या कितना प्रभावित कर रहे हैं? किसी कहानी या चित्रण का मूल मकसद यही होना चाहिए।
चित्र और शब्द दोनों दो चीज है पर दोनों की आत्मा मानो एक ही है। दोनों की  रचना प्रक्रिया चुनौती पूर्ण है। चित्र बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह देता है। शब्द अपनी शक्ति से ऐसे चित्र की रचना कर देता है कि पाठक मंत्रमुग्ध हो जाता है और बिना शब्द के उक्त बातें या भाव चित्र के माध्यम से कहना असंभव लगता है. इस लिए चलचित्र सर्वोत्तम उपाय हो जाता है किसी भी कहानी को कहने का . संवाद और चेहरे के भाव यही बहुत हैं कहने को.  

 फिल्मों से जुड़े सवाल- जवाब
एक बार मैं फिल्म देखने बैठा, मन में सवाल उठा। फिल्म बनाने का मतलब क्या हो सकता है ? इसकी क्या वजह हो सकती है। सबसे बड़ी वजह।
हालांकि मेरे पास कई जवाब हैं । किसी डाइरेक्टर के लिए। अपनी कहानी । अपने अनुभव । अपना जुनून । बस, इतना ही। और कुछ नहीं क्या। मेरे खयाल से एक चित्रकार जो कूची और रंग से चित्र बनाता है। उसे पता होता है कि कहाँ कितना रंग डालना है और क्यों ? और भी बहुत सी बातें कहाँ कौन सा रंग सबसे सटीक तरीके से भरा जाए जिसे वह दिखाना चाह रहा है बनाना चाह रहा है।
फिल्म निर्माण एक उम्दा माध्यम है। विचार को व्यक्त करने का। पर इसमें वही उम्दा काम कर सकता जिसे सब कुछ का उम्दा ज्ञान हासिल हो या उसे उम्दा ज्ञान रखने वाले व्यक्ति की परख हो तभी वह सभी माध्यम जैसे आडिओ, विडियो, कैमरा, स्पेशल इफैक्ट, कॉस्ट्यूम, मनजेमेंट आदि का सम्पूर्ण ज्ञान रखता हो। इसकी अपनी एक अलग ही भाषा होती है।

फिल्मों से अपेक्षाएँ –
·         राष्ट्रीय सरोकार से जुड़ी हो।
·         वर्तमान समस्या की परख हो।
·         रिस्ते की महक हो प्रेमी-प्रेमिका के आलवे ।
·         जमीन से जुड़ा हो मगर कल्पनाशीलता का पुट हो। ना कि कॉपी पेस्ट ।
·         लार्जर देन लाइफ हो मगर आम लोगों की जिन्दगी का आइना

फिल्म के कुछ डाइलॉग जो हमेशा याद किए जाएं –
  • दुनिया में जीतने भी अच्छे लोग होते है वो अपनी गलती मानकर फ़ोरन माफी मांग लेते हैं। दुनिया में जीतने भी अच्छे लोग होते है वो दूसरों के माफी माँगने पर उन्हें फ़ोरन माफी मांग लेते हैं।
  • इस घर का हर एक रिस्ता प्यार की कड़ी से बंधा है चाहे वो इंसान का हो या मालिक या नौकर का हम नए रिस्तों को बनाने के लिए पुराने रिस्तों को नहीं तोड़ते।
  • यूं तो जिन्दगी के सफर में कई आँधी और तूफानों का सामना करना पड़ता है लेकिन मासूम और अनाथ बच्चे की जिन्दगी में एक तूफान और भी हैं इसकी मजबूरी, लाचारी और अकेलेपन का एहसास.

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पहाड़ और प्रगति
               
               पहाड़ छोटा हो या बड़ा हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रहा है। पहाड़ प्रकृति का सभी प्राणियों के लिए अनूठा वरदान व अनुदान सा है। सभी प्रकार के प्राणी, अमीर गरीब, साधू- डाकू, प्रेमी – दुश्मन, पशु- पक्षी इत्यादि अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पहाड़ की तरफ पलायन करते हैं। अमीरों के लिए पिकनिक स्थल तो गरीबों के लिए दर्शनीय स्थल। साधू के लिए आस्था का केंद्र तो डाकू के लिए शरणस्थली, प्रेमी के लिए क्रीडा स्थल तो दुश्मन के लिए दुर्गम क्षेत्र, पशु के लिए उत्कृष्ट वातावरण तो पक्षियों के लिए सुव्यवस्थित घोंसला।
             
              इस प्रकार हम देखते हैं कि पहाड़ हम सभी प्राणियों के लिए उपयोगी है। या फिर उपयोगी बना दिया गया है। प्रकृति ने जो हमें अनुदान दिया उसे कलाकारों और वास्तुकारों ने उसे सजाया – सवारा तो वहीं हमारे पूर्वजों ने आस्था और धर्म से जोड़ कर, एक नई परम्परा या पर्व त्योहार की शुरुआत की जो वर्तमान और भविष्य में ये परंपरा पर्व त्योहार और मेला में परिणत हो गई। वहीं ऋषि और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार उन तमाम पर्वत जो हम आज देख सुन रहें हैं उनका आध्यात्मिक महत्ता जान कर हमें आश्चर्य और हल्की-फुल्की अनुभूति होती है। यहा हल्की – फुल्की अनुभव से मेरा तात्पर्य है, इन प्रतिस्ठानों का बाजारीकरण एवं  धार्मिक अंधानुकरण । धर्म के नाम पर ढोंग व पाखंड । इन सबसे मिलकर आध्यत्मिकता के महत्व को गौण कर दिया है।  जहां धर्म की सही चर्चा। व्याख्या होनी चाहिए वही जान साधारण वेकार की पूजा अर्चना एक छोटे बच्चे के गुड्डे गुड़ियों के खेल के सदृश हो गया है। किन्तु इन सब बाह्य आडंबर के कारण भी हिंदुओं में जो भीतरी आस्था, ईश्वर के प्रति जो भाव है वो कम नहीं है।

                यही हिन्दुओं की विशेषता भी है उन पर कोई भी कितनी भी वाह्य शक्ति आ जाय, पर उस पर पूर्ण रूप से हावी नहीं हो सकता। उनके हृदय की आस्था बेमिशाल है पर मन की संकीर्णता उन्हें जड़ बनाए रखती है। उसे अपने बंधन से मुक्त नहीं होने देती। भारत यकीनन आज भी इतनी गरीबी में जी रहा है जो शहरी आबादी बेतहाशा बढ्ने के वाबजुद भारत आज भी गाँवों का देश है। गाँव के ही लोग नेता हो चुनते हैं। गाँव के युवा ही देश का प्रतिनिधित्व करते हैं किन्तु गाँव की स्थिति आज भी दयनीय है। इसके मूल में शिक्षा की और सरकार की अनदेखी व यहाँ के नागरिकों के दोगले रवैये है। यहाँ के बिचौलिये गरीबों को उठने नहीं देते, यहाँ की स्थिति सुधरने नहीं देते, आज भी सबकी स्थिति लगभग सभी क्षेत्र जैसे सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी में पिछड़ा है। किन्तु बदली सामाजिक स्थितियों एवं विचारों से स्थिति में परिवर्तन की किरण दिखती है पर अभी बहुत कार्य व प्रगति करने को शेष है।      
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पर्वों के बहाने कुछ बातें
27 अक्टूबर 2017 
 आज छठ पर्व का समापन हो गया। पर्वों का भी सिलसिला अब थम गया। गणेश चतुर्थी से जो पूजा का कार्यक्रम शुरू होता है लगातार चलते रहता है। कोई ना कोई व्रत त्योहार का आना जाना लगा रहता है। ये व्रत–त्योहार हमें अपने रंग में रंग कर, एक नये एहसास, एक नयेपन का बोध कराते हुए चले जाते हैं । भारतीय समाज ही ऐसा है जहाँ एक भी दिन कोई विशेष पूजा या अर्चना ना हों । यहाँ सब दिन पूजा–पाठ का कार्यक्रम है पर सबों का उतना महत्व नहीं है फिर भी व्रत त्योहारों की इतनी संख्या है कि लोग काम कम और इन त्योहारों को मनाने में ज्यादा लगे रहते हैं।

            एक तरह से देखा जाए तो ये उत्सव, त्योहार, पर्व आदि बाजार और समाज दोनों के लिए अच्छा है। इन त्योहारों की अधिकता से बाजार में रौनकता बनी रहती है।  अलग अलग त्योहार में अलग अलग चीजों की माँग बढ़ती है। हमारे व्रत त्योहार इस तरह से सजे हुए हैं कि जिस मौसम में जो फल आदि या आहार हमें ग्रहण करना चाहिए बताते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि भारतीय समाज के त्योहार की इस तरह से व्यवस्था की गई है कि मानव चतुर्मुखी विकास हो।
               जितने भी व्रत–त्योहार हैं सबमें किसी न किसी देवी- देवताओं के पूजा–अर्चना का विधान है। वे देवता हमारी रक्षा करें। हमारे जीवन को सफल बनावें। वे हमपर अपनी कृपा – अनुकम्पा बनाए रखें। लोग ऐसी मनोकामना और प्रार्थना करते हैं। कृष्णा अष्टमी – भगवान श्री  कृष्ण के पृथ्वी पर अवतरण की पूजा, तो रामनवमी में भगवान राम की आराधना । गणेश चतुर्थी में भाग्य के देवता गणपती की पूजा होती है तो वहीं साल के प्रारम्भ में वसंत ऋतु में माता सरस्वती जो ज्ञान–विज्ञान गीत-संगीत की आधीष्ठात्री हैं, पूजा अर्चना बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है। शिव रात्री में महाकाल देवधिदेव भगवान भोले नाथ की पूजा होती है। यूं तो सावन का महिना उन्हीं को समर्पित है। मार्च का महिना तो रंगोत्सव का है। होलिका दहन का है। होलिका दहन में लोग, पुरानी चीजों और जो कुछ भी जर्जर समान होता है उसे आग के हवाले कर देते हैं। हिन्दू धर्म में प्रकृति के मूल श्रोत्रों की पूजा का विधान है। प्रकृति ही नहीं यहाँ पशुओं और पौधों की भी पूजा होती है।
              हिन्दू संस्कृति में एक बहाव है जो नदियों सा कल कल बहता रहता है। हमारी परम्परा – पर्व – त्योहार उत्सव सब कुछ इस तरह से है हमारे जीवन में शामिल है जैसे इन्द्र धनुष के रंग (ग्राडिएंट ऑफ कलर)|
              ना जाने कितने रंग,  ना जाने कितने देवी देवता, ना जाने कितने उत्सव, ये सब के सब अपने आप में सम्पूर्ण होते हुए भी; एक ही में नहीं रमे रहने की प्रेरणा नहीं देते। समय की तरह हमें भी गतिमान रहना चाहिए।
              मानो वे कहते है कि अपनी मनोवृति परिवृति सब कुछ बदल डालो पर वृत में रहो। चित्त वृत में रहो। चित्त वृत का तात्पर्य भी यही है कि जितनी भावनाएं हैं सब का चक्र पारी पारी से चलता रहता है और इन्सान इसी सब से खुद को उलझा हुआ पाता है पर ये उलझन ही उसके विकास और उन्नति का कारण जरूरत है उसके सही तत्व को पहचानने की। जरूरत है सही दिशा में मस्तिष्क को संलग्न करने की उन विचारों को जीवन में उतार कर परिणत करने की।   

  

C-7a: Pedagogy of social science [ B.Ed First Year ]

1. माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आपके द्वारा चुने गए विषय का क्षेत्र क्या है ? उदाहरण सहित व्याख्या करें। माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए हम...