मंगलवार, 27 सितंबर 2016

बेगुसराय के बिल्लू बार्बर



बेगुसराय के बिल्लू बार्बर


सैलून, जहाँ कैंची और म्यूजिक दोनों साथ साथ एक ही लय में चलते हैं. जहाँ नए - नए आशिक और प्यार में धोखा खाए मजनुओं की मजलिश लगती है. जहाँ कुछ राजनितिक बहसें भी उस्तुरों की भांति कभी कभी लोगों को नुकसान पहुंचाती है. उस मजलिश के अध्यक्ष और कोई नहीं, हाथों और जुबान दोनों से कैंची चलाने वाले गुमनाम शख्स सैलून मास्टर होते हैं. यहाँ हर तरह केश की सुनवाई की जाती है और मुक्कमल हल भी आपको मिल सकता है. हेयर डिज़ाइन करवाना हो या सिरदर्द कम करना आप सैलून की तरफ रुख कर सकते हैं.

जाने से पहले पेश है बातचीत के कुछ अंश...



(सैलून में इंट्री लेते हुए)

मैं- “क्या हाल है? फुर्सत में हैं ?”

बिल्लू - “बिलकुल फुर्सत में हैं. अभी तक तो ठीक ही आप सबके कृपा से.....”

यहाँ गौर करने वाली बात है कि सन्डे को सारा सैलून व्यस्त हो जाता है. उनके कहने का मतलब - बीजी इज इक्वल टू फुरसत.

शीशे के सामने, फिटकरी के बगल में रखे Nokia 1st gen का वो मोबाइल फोन घरघराने - थरथराने (vibretion
) लगता है.

बिल्लू फोन उठाते ही कहते हैं- “हेल्लो”, हाँ कुछ सुनने के बाद हाँ जी. हाँ बिलकुल फ्री हैं आइए. हाँ... हाँ.....

सब हो जायेगा. आइए तो......; हाँ तो कितनी देर में आ रहे हैं? क्या. एक घंटे में. ठीक .ठीक है. फोन पुनः यथा स्थान रख दिया जाता है, बाल के छोटे-छोटे टुकड़ों से सने हाथों द्वारा.



मैं- “ये कब का फोन है? नया क्यों नहीं लेते?”

बिल्लू- “महाराज ! हम गरीब लोग. आपके ऐसा एंड्राइड कहाँ से आएगा.”

मैं- “सैलून इतना चमक रहा है तो फिर एक चमकने वाला फोन रखिए. इतना तो सस्ता- सस्ता मोबाइल मार्केट में मिल रहा है.”

बिल्लू- “जी आप सही कह रहे हैं. मुझे इस मोबाइल से प्यार है. ये मेरे साथ तभी से है जब मैंने इस सैलून की शुरुआत की थी.”

मैं- “क्या बात है. बहुत बढ़िया. क्या आप काम से कभी उबते नहीं हैं?”

बिल्लू- “नहीं, बिल्कुल नहीं उबता. हाँ जब बैठा रहता हूँ तो उब जाता हूँ.”

मैं- “आप कितने पढ़े- लिखे हैं? क्या फेसबुक यूज़ करते हैं?”

बिल्लू- “मेरे पास आपके तरह मोबाइल कहाँ है जो फेसबुक यूज़ करेंगे. एक साल पहले एक लड़का बना दिया था मेरा account पर नहीं पता उसका passward.”

मैं- “आप पढाई कितने तक किये है?”

बिल्लू – “सरकारी स्कूल . पांचवी पास फिर मन नहीं लगा. कलम चलाने में सो कैंची पकड़ लिए.”

मैं- “तो अखवार मंगाते क्यों हैं?”

बिल्लू- “थोड़ा बहुत पढ़ लेता हूँ. हीरो हिरोहीन की फोटो देख लिया हो गया.”

मैं- “आप तो बाल बड़ा अच्छा काट लेते हो ? किसी बड़े आदमी का बाल काटें हैं?”

बिल्लू- “जी हाँ. सपने में, कहा था एक बार शाहरुख़ खान का.”

मैं- “तो मुंबई क्यों नहीं गए?”

बिल्लू- “जाता पर मेरी शादी हो गई. फिर दो बच्चे. बूढ़े माँ- बाप. तो इन जिम्मेवारियों को पूरा करता था सपनों को.”

अब आखिरी सवाल मैंने चुटकुले और रोमांचक ढंग से पूछा.

मैं- “एक लड़की थी दीवानी सी. बहुत प्यार करती थी मुझे हमेशा फोन किया करती थी. पर दो माह से उसका फोन आना बन्द हो गया है क्यों...”

बिल्लू- “हँसते हुए. फँस गई होगी साली दुसरे के साथ.”

उनके रिएक्शन सुनकर मैं हंसने लगा.

दोस्तों ! हमारे मकान में जैसे नींव होती है. वैसे ही पेपर वाला, दूध वाला,चाय वाला, बार्बर, कोब्लर या चाहे फूटपाथ पर गुपचुप बेचने वाला शख्स ये सब ही हमारे सामाजिक ढांचे के महत्वपूर्ण इकाई और नींव हैं. अगर हम इनके काम को सम्मान नहीं देंगे. तो इनका कभी उत्थान नहीं होगा. और जिस समाज का निचला हिस्सा जितना उन्नत होता है वह समाज उतना ही सभ्य, सम्पन्न और समृद्ध होगा.

हम बड़ा काम नहीं कर सकते लेकिन बड़े काम करने वाले छोटे छोटे लोगों के साथ हम अपना वर्ताव तो सही कर सकते हैं. उन्हें कम से कम एक स्माइल तो दे ही सकते हैं सेल्फी के बहाने.



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