आदमी और
कुत्ता
दो चार लोगों में
कुत्तों के रोगों को लेकर काफी चर्चाएँ हो रही थी. मैंने भी सोचा अपनी तरफ से कुछ
कह दूँ. तो बिना सोचे समझे मैंने अपना विचार उन मित्रों के सामने रख दिया. मैंने
कहा “आदमी और कुत्तों में काफी समानताए दिखने लगी है.यहाँ समानता से मेरा अभिप्राय
भोंकने से है.अगर आप वफादारी की बातें सोच रहें हैं तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता
हूँ कि कुत्ते और आदमी में वफ़ादारी में समानता की बात करना मुर्खता होगी.” इतनी ही
बात मैं कह पाया था की मेरा मोबाइल जोर जोर से बजने लगा.फोन पर बात करने के बाद किसी
कारण से मुझे वहां से प्रस्थान करना पड़ा.
मुझे लगा की मुझे उन
लोगों के समक्ष कुछ ऐसी बातें करनी चाहिए जो बेमतलब हो. सच पूछिए तो लोगों को
फिजूल की बातें में बड़ा आनन्द आता है किन्तु जैसे ही कुछ सामजिक बातें या सूझबूझ
भरी बातें किए फिर तो आप की खैर नहीं नहीं. आप बिल्कुल उस मेमने की तरह महसूस
करेंगे जो चारों तरफ आवारा कुत्तों से घिरा हो. जब मैं वहां से आ रहा था तो मुझे
कुत्तों का झुण्ड दिखाई पड़ा जो सब के सब एक दूसरे पर भौंक रहे है. मैं उस गली से
दूसरी गली की तरफ मुड़ गया. क्योंकि मैं कुत्तों से बहुत डरता हूँ.

मैं शहर में नया तो
नहीं हूँ. फिर भी ना जाने क्यों, हवा बदली हुई सी लग रही है. हर दूसरा आदमी
भूखा,बदहवास सा हांफता हुआ बिलकुल कुत्तों जैसा दिख पड़ता है. कुछ आदमियों में
आंशिक कुछ में पूर्ण रूप से कुत्तों के गुण सॉरी अवगुण ट्रांसफर हो गए हैं. उदाहरण
स्वरूप- शहर के मुख्य मार्ग के किसी भी गली के मुख्य मोड़ पर, आप को एक पोल (खम्भा)
दिख जायेगा. पहले उस पोल पर कुत्तों का राज था वे वहीँ बड़े इत्मिनान से, अपनी एक
टांग को 45 डिग्री पर उठाते हुए; मूत्र विसर्जन किया करते थे. किन्तु अब वह हर पोल
आदमियों का हो कर रह गया है, क्योंकि कभी कोई पोल खाली मिलता ही नहीं. कोई ना कोई
वहां अपनी बैचनी शांत कर रहा होता है. पोल के आस –पास का एरिया भी कैप्चर कर लिया
गया है. उन लोगों द्वारा जो कुत्तों की अनुवांशिक गुण के शिकार हो गए हैं. बेचारे
कुत्ते भी क्या करे वह इन्तजार में खड़ा रहता है कि मेरी बारी है वो सोचता होगा वो
भी क्या दिन थे. उस ज़माने में हर कुत्ते का अपना एक पोल रिजर्व हुआ करता था. उस
पोल पर सिर्फ एक ही कुत्ते का अधिकार हो सकता है. ऐसे नियम थे तब. अब तो कोई किसी
की सुनता तक नहीं. कि तपाक से दूसरा
व्यक्ति आ धमकता है. वो उदास और बेबस हो कर वहां से चल पड़ते हैं. सामने दिवार पर
एक फ़िल्मी पोस्टर चिपका था,जिसे निहारते ही अचानक उसके चहरे पे मुस्कान तैरने लगी.
वो कुत्ता अपनी
सामाजिक जिन्दगी से त्रस्त तो था ही पर मेरी समझ में ये बात नहीं आ रही थी. वो
इतना खुश क्यों है. उसकी ख़ुशी का मुझे ज्ञान तब हुआ जब मैंने अपने मित्र के पास
किसी काम से गया. वे कुत्तों के अनुसन्धान कार्यक्रम से जुड़े थे इसलिए कुत्तों के
बारे में भी पूछ ताछ कर लिया. उस अनुसन्धान करने वालों का काम था कुत्तों के बारें
में जानकारी इकट्ठा करना. और ये पता लगाना कि आदमी और कुत्तों में क्या समानता और क्या-क्या
भेद है.
एक दिन मैं अख़बार पढ़
रहा था. मेरी नज़र एक छोटे से कॉलम के मोटे शीर्षक पर रुक गई. लिखा था- शहर में
आवारा कुत्तों की संख्या में बढ़ोतरी. मैं कन्फ्यूज हो गया ये किनकी बात कर रहे
हैं. उन जानवर रूपी कुत्तों की या आदमी के रंग रूप वाले.
साहब ! अब वो जमाना
चला गया जब लोग विनम्रता के साथ एक दुसरे के साथ पेश आते है. उनमें संवेदनाएं थीं.
उनमें एक दुसरे को सहानभूति और प्रोत्साहित करने की प्रकृति थी. अब तो ज्यादातर
लोग ऐसे मिलेंगे जैसे किसी पागल कुत्ते ने काट लिया हो. वे बोलते नहीं भोंकते हैं.
खबरिया चनेलों पर हो रहे विचार विमर्श या संसद इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हो सकते हैं.
हाँ तो शुरू मैंने
कुत्ते पालने की अपनी रूचि के बारे में आपको बता रहा था. एक सुबह मोरनिंग वाक के
लिए निकला. ठीक उसी वक्त वो मित्र (कुत्तों के विशेषज्ञ) मिल गए. मैंने उनसे हाल
पूछते हुए कहा क्या सब ठीक है ना ?उन्होंने शब्द को रस्सी की तरह खीचतें हुए कहा-
ठीई............क है. उनके चेहरे से खीज और झुंझलाहट साफ दिख रहा जिसे वे ढकने का
प्रयास कर रहे थे.फिर मैंने अपने काम के बारे में पूछा.वे इतने जोर से मुझपर बिगड़
पड़े. जिससे मेरा सुबह तो ख़राब हुआ ही सारा दिन भी बेकार गया.
ऐसी परिस्थिति से आप
का भी कभी ना कभी सामना हुआ होगा. आप सोच में होंगे कि आखिर मैंने तो कुछ गलत नहीं
कहा फिर उसके गुस्सा होने की वजह? होता ये है कि कई ऐसे आदमी आपको मिल जाते जो अपने
सिर पर इतना कचरा लिए घूमते हैं जिसका अंदाजा उन्हें खुद नहीं होता.वे किसी अन्य
जगह का frustration या tension रूपी कचरा किसी दुसरे पर फेंकने की जुगाड़ में रहते
हैं. जिसका ना आपको पता चल पता है की सामने वाला कचरा लिए घूम रहा है. ऐसे
झुंझलाने वाले लोगों को भी मालूम नहीं चल पाता कि वे ऐसा रियेक्ट क्यों कर रहे
हैं.
कभी कभी तो मेरे व्यवहार
में भी गुस्सा के परत देखे जा सकते है. मैंने इस पर चिंतन कर पाया कि हम जब गुस्से
में किसी से बात कर रहे होते हैं तो आप की उर्जा तो खपत होती ही है रिश्ते भी ख़राब
हो जाते हैं. इस लिए मैं एक ट्रेंड कुत्ता खरीदने चल पड़ा ताकि वो सदा मेरे पास रहे
और मुझे याद दिलाता रहे कि भौंकने का काम हम कुत्तों का है आप जैसे नेक आदमी का
नहीं. कुत्ता पालने के कई फायदे हैं जो आदमी आप पर भौंके उनपर आप अपने कुत्ता को
छोड़ दीजिए उनसे वार्तालाप करने. आप उनपर प्रतिक्रिया ना दे और ना कोई कमेंट,
बिल्कुल इसी तरह जिस तरह इस रोचक लेख को पढ़ कर नहीं देने वाले हैं.
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एक सवाल आपके लिए
छोड़ रहा हूँ.
पोल से बेदखल होकर
भी वो कुत्ता खुश क्यों था?
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