मास्टर
जी का कुर्ता
कपड़ा
केवल हमारे शरीर को ढकने की चीज ही नहीं है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को निखारने में
हमारे कपड़े का महत्वपूर्ण स्थान है।
किसी व्यक्ति का पोशाक उसकी पहचान होती है। हर
प्रांत या समुदाय के लोग अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार वस्त्र धारण करना पसंद
करते हैं । भारतीय समाज में भी कुर्ता एक जाना पहचाना और लोकप्रिय पहनावा है।
हमारा
देश धर्मनिरपेक्ष है। यहाँ विभिन्न धर्म के लोग निवास करते हैं। इन्हीं कारणों से
हमारे देश की एक अलग पहचान पूरे विश्व मे स्थापित है। कमाल की बात ये है कि सभी
धर्मों के लोग कुर्ता पहनना बड़े गर्व कि बात समझते हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तथा
असम से गुजरात तक सारे भारतवासी कुर्ता पहनने के दीवाने और शौकीन है। हो सकता है
कि कोई कुर्ता के साथ बंडी या पजामा पहना पसंद करे तो कोई कुर्ता के साथ धोती
और सिर पर टोपी। सीख - पंजाबी, मुस्लिम हो या हिन्दू सभी कुर्ते को
अलग-अलग रंग-ढंग से पहना पसंद करते हैं । कोई रेशम का कोई खड़ी का,
कोई और किसी किस्म का पहनना चाहते हैं तो किसी को रंग-बिरंगा कुर्ता अच्छा लगता
है। कई लोग तो मोटे या महीन चेक (चकोर धारीदार)
पहनकर इतराते हैं। ये तो रही सामाजिक बातें, अगर हम राजनीतिक क्षेत्र कि तरफ चलें
तो वहाँ हमें सिर्फ सफ़ेद कुर्ते धारण किए हुए नेता मिलेंगे।
आधुनिक
युग कुछ बदलाव हुए हैं परंतु कुर्ता का महत्व कम नहीं हुआ है। महात्मा गाँधी के
युग में तो भारतीय की पहचान और
क्रांतिकारियों की पोशाक कुर्ता ही था। कुर्ता पहन कर जब हमारे देश
के वीर क्रांतिकारी वंदे मातरम का उद् घोष करते थे
तो अंग्रेजों के मन में डर समा
जाता था। वे सोचते थे
कि ये कुर्ताधारी क्रांतिकारी हमारे कंपनी
को कुचल डालेंगे। हाथों में तिरंगा लिए वीर
बलिदानी और सिने पर गोलियां खाई और अंतिम साँसों तक वे लड़ते रहें। उनके कुर्ते खून
से रंग गए फिर भी उन्होने हार नहीं मानी। अंत में क्रांतिकारियों की जीत
हुई और हमारा देश आजाद हुआ।
तमाम
मुसीबतों के बावजूद हमारा देश लगातार प्रगतिशील
है । हमारा देश हर क्षेत्र में तरक्की
कर रहा परंतु हम भारतीय को चोट तब पहुँचती जब हमारे चुने हुए नेता भ्रष्टाचार
में लिप्त पाये जाते हैं । सफ़ेद कुर्ते
में छिप कर देश के साथ गद्दारी कर उन
शहीदों का केवल अपमान ही नहीं करते बल्कि हम
भारतीय युवाओं का भविष्य की अनदेखी
करते हैं।
कुदरत
कि सर्वश्रेष्ठ कलाकृति मनुष्य है और अगर मनुष्य कि तमाम
कारीगरी या आविष्कारों कि गिनती करें तो हमारे पोशाक भी उनमें
अभिन्न स्थान रखते हैं।
ग्लोबलायजेशन के इस दौर में हमारे कपड़ों में भी परिवर्तन आया है किन्तु भारतीय
लोगों में कुर्ते के पहनावे के प्रति अब भी उतनी ही इज्जत है जितना पहले
हुआ करती थी। कोई धार्मिक कर्मकाण्ड हो, जैसे
विवाह, यज्ञ
एवं अन्य अनुष्ठान या कोई पर्व त्योहार जैसे होली
दिवाली इत्यादि। यहाँ तक कि स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र
दिवस के उपलक्ष्य पर लोग कुर्ता पहनने पर अधिक ज़ोर
देते है क्योंकि कुर्ता पहनकर व्यक्ति खुद को
अधिक सुसंस्कृत और सभ्य महसूस करता है। लोगों कि दृष्टि में
कुर्ता पहनने वाला व्यक्ति सदाचारी समझा जाता है। हमारे देश में लगभग सभी
महापुरुषों, महात्माओं,
समाजसेवकों, स्वतन्त्रता सेनानियों, सभी कि मुख्य
पोशाक कुर्ता ही तो था। उन्होने हमारे समाज में जो
आदर्श स्थापित किए वही आदर्श हमारे बोली विचार रहन सहन, पहनावा – ओढ़ावा में परिलक्षित होता है । सदा जीवन – उच्छ
विचार का प्रतिनिधित्व तो भारतीय वस्त्रों में कुर्ता ही सर्वप्रथम हमारे
सामने उपस्थित होता है। इसी
कुर्ता से जुड़ा एक रोचक किस्सा सुनता हूँ ।
मास्टर
जी आज बहुत खुश हैं। इस खुशी से उनकी बोली में अत्यधिक मधुरता का
समावेश हो गया। वे अपने प्रत्येक कार्य बड़ी
दिलचस्पी से कर रहे हैं। यूं तो वे सारा कार्य नियत
समय पर करते और उनकी खास बात यह है कि हर कार्य करने का उनका अपना तरीका है। वे
सदा खुश रहने वाले व्यक्ति है परन्तु आज कुछ ज्यादा खुशी उनके
चहरे से छलकती नजर आ रही है। इस खुशी का डबल कारण है
एक नया कुर्ता सिलवाना है , दूसरा
15 अगस्त आने वाला है। जाने–अनजाने हर व्यक्ति
के साथ ऐसा हो ही जाता है कि जब वह नया वस्त्र धारण करे और उसके चेहरे
पर खुशी आ ही जाती है। वे खुद समझ नहीं पा
रहे थे कि आखिर मुझे आज का दिन ज्यादा अच्छा क्यों लग रहा है फिर भी
वे अंदर ही अंदर एक सुकून- संतुष्टि का अनुभव कर रहे थे। मास्टर जी को
दो चीजों से उन्हें बड़ा
प्रेम है । पहला किताब और दूसरा कुर्ता। उन्हें किताबें
पढ़ने और सहेज कर रखने का बड़ा शौक है, वहीं
कुर्ता पहनने के बचपन से ही शौकीन है। कोई
किताब हो उसपर जिल्द लगाना नहीं भूलते ठीक वैसे ही इस्तरी किया हुआ कुर्ता ही
अक्सर पहना करते। मास्टर जी का कुर्ता इस्तरी किया हुआ ना हो ऐसा नहीं हो सकता।
अगर उन्हें कहीं जाना हो तो और किसी
कुर्ते में इस्तरी नहीं किया हुआ हो तो वे खुद इस्तरी करने लग जाते । उन्होने कई
तरह के इस्तरी खरीद लिए है। जैसे-जैसे समय गुजरता गया वैसे वैसे इस्तरी भी बदलते
गए।
पहले
कोयला वाला, फिर
लकड़ी वाला, फिर एलेक्ट्रिक
वाला। वे कुर्ता को अक्सर कमीज कह कर संबोधित किया करते हैं। उनके
कमीज में कॉलर नहीं होता है और आज कल तो कई तरह के मीज मे कुर्ते कि
नकल किया जाने लगा है। उनका मानना है कि
कॉलर तो गले का फंदा है । कॉलर आदमियों के नहीं जानवरों के गले में होना चाहिए। कॉलर
लगाने कि प्रथा तो अंग्रेजों कि है जिसका उपयोग गले में टाई बांधने के लिए करते
है।
कुछ
दिन बाद 15 अगस्त यानि
स्वतन्त्रता दिवस है। मास्टर जी के पास कई कुर्ते हैं। परन्तु वे नए कुर्ते में झंडोत्तोलन
करना चाहते हैं। स्वतन्त्रता दिवस के दो सप्ताह पूर्व ही योजना बनाकर तैयारियों
में जुट जाते हैं। मास्टर जी ने अपने गाँव के एक कुशल दर्जी श्याम को कुर्ता सिने को
दे दिये ।
कुछ
दिनों बाद- मास्टर जी दर्जी के पास गए। वे श्याम से पुछे “क्या
मेरा कुर्ता तैयार हो गया है?”
“आपका
कुर्ता तो मैंने दे दिया” उसने
जबाब दिया।
मास्टर
जी ने चौकते हुए पूछा – क्या?
“
कुर्ता आपको मिल चुका है” दर्जी
एक बार एक बार अपनी नजर उठाकर कर कह
दिया। फिर मशीन चलाने में मशगूल हो गया।
“तुमने
कब और किसे मेरे कुर्ते दिये ” मास्टर
जी ने घबरा कर पूछा ।
श्याम
ने अपने यहाँ काम करने वाले दिनू को पुछकर कहा- “वही
दो – तीन दिन हो रहे हैं”
इसी
वक्त आप यहाँ आए थे और अपना कुर्ता ले गए। मास्टर जी बड़े असमंजस मे पड़
गए। उनकी याददस्थ में कुछ कमी थी ये जग-जाहीर
था। वे सोचने लगे .... मैं यहाँ
से कब कुर्ता ले गया । मुझे तो अपने कामों से आज फुर्सत मिली है।
फिर उन्होने सोचा चलो पहले घर में पूछ लेता हूँ। घर आकर सभी सदस्यों
से पुछने पर कोई पता नहीं चला। उनकी समझ में बिलकुल नहीं आ रहा था। कि कुर्ता गया
तो आखिर गया कहाँ? उन्होने कुर्ते के मूल्य से ज्यादा 15
अगस्त को नए कुर्ते के मूल्य से ज्यादा 15 अगस्त को नए कुर्ते न पहले जाने कि चिंता थी।
सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी। सारे चीजों का बंदोबस्त हो चुका था। केवल कुर्ता
ही समय पर नहीं मिल पाया था। फिर उन्होने अपने पिछले
दिनो आए गए रिस्तेदारों से फोन पर पूछा कि मेरा कुर्ता तो तुम लोगों के साथ तो नहीं
चला गया है? पर वहाँ से भी निराशा हाथ लगी। रिस्तेदारों को भी बड़ा अजीब
लगा उन्होने कहा- नहीं, यहाँ कोई कुर्ता नहीं आया है ।
मास्टर
जी अब थोड़े चिंतित हो गए। शाम को अपने घर से घूमने बाहर निकले। रास्ते में उनकी
मुलाक़ात उनके मित्र से हुई। उन्होने उदासी का कारण पूछा
तो मास्टर जी अपने कुर्ते ना मिलने कि व्यथा सुनाई। व्यथा की
बातें पूरी होते ही मास्टर जी के मित्र ने
बोलना प्रारंभ किया। “श्याम दर्जी के बारे में मत कहिए । सारा इलाका उसके
व्यवहार से परिचित है। उसने कई व्यक्तियों के साथ इसी तरह का धोखा धड़ी किया है ।
उसने तो एक बार मेरी कमीज नाप से छोटी सील दिया था। दूसरे बार जब मैं उसके यहाँ
सिलवाने गया फिर मैंने कान पकड़ लिया साथ ही खुद से
वादा किया की अब कभी भी नहीं जाना सिलवाने उसके यहाँ । दूसरी बार में तो उसने हद ही पर कर दी। उसने मेरे फूल हत्थे की जगह
हाफ हत्था वाला कुर्ता सील
दिया था”।
इतने में तीसरा मित्र ने भी कई और त्रुटियाँ गिना दी ।
रात हुई मास्टर जी फिर सोचने लगे। मेरा कुर्ता दिनु
ने ही गायब किया होगा। वह झूठ बोल रहा है।
उसे तो मजा चखाना ही पड़ेगा वरना ऐसे नहीं सुधरेगा।
दिन निकला वे अपना कम निपटा का श्याम दर्जी के पास
चल दिये । मास्टर जी ने दिनु के पास पहुँच कर अपने कुर्ते देने की बात दुहराई।
श्याम ऐसे कह रहा था मानो वह कुर्ते के बारे में कुछ जनता ही नहीं । मास्टर जी ने
बातें खीच कर अपने घर की तरफ चल निकले। मास्टर जी को लागने
लगा कि अब वह कुर्ता मिलने वाला
नहीं है सो पुराने कुर्ते से ही कम चलाना पड़ेगा। अब मास्टर जी कुर्ते के प्रति
चिंता नहीं थी क्योंकि उन्हें जो कहना था कह दिया था और जो करना था वे कर चुके थे।
अपने पुराने कुर्ते को अच्छी तरह धो कर सूखने दिया।
फिर शाम को उन्होने उस कुर्ते में इस्तरी कर दी। कल पहन कर जाना है।
सवेरा होते ही प्रभात फेरी का जयघोष सुनयी देने
लगा। मास्टर जी तो पहले से तैयार थे। बच्चों के हाथों में तिरंगा देखकर और जुबां
पर भारत माता की जय
सुनकर काफी अच्छा लग रहा था। बच्चों की लम्बी कतार जो आगे चलती चली जा रही है, देखना बड़ा गौरवान्वित सा लग रहा था। झंडोतोल्लन के
लिए पंचायत सभा की ओर से आमंत्रित किया था। वे समय पर पहुँच कर झंडोत्तोंलन किए। सभी लोग उनके भाषण और उनके कुर्ते की तारीफ
कर रहे थे। फिर अंत में उनके एक मित्र ने पूछा “श्याम ने आपका कुर्ता कैसे दिया?”आखिर आपने उससे क्या कहा?
मास्टर जी ने मुसकुराते हुए कहा मैंने केवल इतना
कहा कि “मैं कल अपने नए कुर्ते पहन कर भाषण देता लेकिन जब कुर्ता नहीं मिलेगा तो फिर उस
भाषण में तुम्हारा नाम और काम सभी के सामने
लाऊँगा। सभा में
तुम्हारी बेईमानी और काली करतूत सभी के सामने आ जाएगी। इससे तुम्हारे
पास कोई नहीं आएगा। तुम्हारी
दुकान बंद हो जाएगी।”
शायद इसी डर से उसने तड़के ही कुर्ता पहुंचा दिया और मुझसे माफी
मानते हुआ कहा “मैं अपनी गलती पर शर्मिंदा हूँ , आगे ऐसी गलती नहीं करूंगा ”
फिर उसे मैंने समझाया गलत तरीके से कमाया हुआ धन बिल्कुल नहीं फलता फूलता है, इसलिए आज तक तुम गरीब के गरीब हो । ईमानदारी से ही हमारी तरक्की होती है ।
इसी सीख को लेकर श्याम को आज एक साल से भी अधिक हो गए। उसने
मास्टर जी को एक कुर्ता भेंट स्वरूप दिया क्योंकि आज उसके दुकान से उसकी कई गुणी अधिक तरक्की हो
रही है। मास्टर जी इस घटना को सुनाते नहीं
थकते।
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