रविवार, 15 जुलाई 2018

रचनात्मक संसार @ फिल्मी –बातें



नैतिकता के साथ समझौता करने का अंजाम 
: बी॰ ए॰ पास 

माँ – बाप का एक हादसे में गुज़र जाना एक हादसे जैसा नहीं लगता एक धोखे जैसा लगता है । इस फिल्म का उक्त पहला डायलोग कुछ ऐसा ही है। जो चंद शब्दों में बड़ी बात कह देता है। अगर हम स्वयं अपनी या आँय किसी शक्स के हादसे की बात करें, चाहे वो हादसा किसी भी प्रकार का क्यों न हो । हर एक हादसा धोखा होता जो हमारी ज़िंदगी खुद हमें धोखा दे जाती है । ज़िंदगी किसने किसी की कब सुनी वह तो अपने मन से चलने वाली है।

फिल्म के मुख्य पात्र मुकेश कुछ इसी तरह के हादसे का शिकार हो जाता है। उसकी दो छोटी बहने हैं । सभी कॉलेज के विद्यार्थी हैं । तीनों अपनी बुआ के घर में रहते हैं। पर ये सिलसिला ज्यादा दीनो तक नहीं चलता । दो बहनों को प्रायवेट  होस्टल भेज दिया जाता है। और बुआ उससे घर के छोटे काम काज में उलझाते रहती है। बुआ को अपनी सहेलियों के साथ वही घर पर ही पार्टी मनाने का खूब शौक है। और इस पार्टी का सारा काम काज इसे ही करना पड जाता है। वो सबके जूठे प्लेट ग्लास उठाता है । 

उन्हें सर्व करता है। मुकेश इस तरह से उब चुका था। और खीज आकर उसकी मनोवृति भाँप कर उसकी बुआ उसे घर से निकाल देती है । 

ज़्यादातर स्टूडेंट्स जब वो ग्रेजुएशन में होता है तो उसे जिन्दगी का दांव पेंच मालूम नहीं रहता । फिर भी मुकेश काम से कम शतरंज का दाँव पेंच मालूम था। वो बचपन से ही सतरंज खेलने का शौकीन था। इसी खेल ने उसे एक मित्र से मिलवाया। वह मित्रा डेड बॉडी बॉक्स का काम करवाता था। केवल दोस्ती से जिन्दगी नहीं चलती। ज़िंदगी जीने के लिए सबसे जरूरी चीज है पैसा । ऐसा सबलोग कहते हैं किन्तु कुछ दोस्त ऐसे होते हैं जो जिन्दगी सँवार देते और कुछ दोस्ती वह भी लड़कियों से हो सकता है जिन्दगी खत्म कार्वा दे। पीआर उस भोले भले लड़के जो बी ए के सभी छात्रों का एक तरह से प्रतिनिधि चेहरा है। उसे भी एक लड़की ने अपने सेक्स का शिकार बना लिया। वह लड़की शादी शुदा होते हुए भी अपने पति से संतुष्ट नहीं है। दर्शकों के लिए दिलचस्प बात यह होती है जब वे जानते हैं कि यह लड़की ऐसे कितने लड़कों का यूज कर रही है। साथ उसे वेश्या वृत्ति के काले धन्धे में फंसा रही थी। 

पहले सेक्स फिर गुस्सा फिर नशा फिर हत्या । यही तो होता आया है इस तरफ चले गए लोगों का और इस कहानी में भी यही हुआ पहले किसी और इस कहानी में भी यही हुआ पहले किसी और कि हत्या फिर बाद में अपनी स्नातक कक्षा में लड़के जवानी के उफान पर रहते हैं और अगर इस उफान को नियंत्रित कर अपना ध्यान ज़िंदगी के लक्ष्य पर होना चाहिए सतत उसे पाने के लिए किए गए प्रयास से आनंद लेना चाहिए। लेकिन ये तो फील्म  है यहाँ तो वही होता है जो नहीं होना चाहिए। अगर किसी ने इस दौरान जरा सी चूक कि तो उसका कहीं अता पता नहीं रहता। 

बिना लगाम के घोड़ा कैसे कोई रुकावट नहीं देखता ठीक यही होता है सेक्स की दुनिया में। ये एक ऐसा दरिया है जिसमें आप बहते चले जाते हैं और आप को पता नहीं चलता । सेक्स सबसे बड़ा शत्रु है, यही इस फिल्म का संदेश है। वेश्या वृत्ति के जल से जकड़ा हुआ इंसान कभी बाहर नहीं निकल सकता यही तभी संभव है जब उसकी मौत आए। और कुत्ते की मौत देना इस धन्धे का बड़ा प्रमुख सगल रहा है। मुकेश के साथ भी कुछ ऐसी ही ट्राज्ड़ी आई एक तरफ पुलिस उसके पीछे थी एक तरफ इस धन्धे में वह मुजरिम भी बन चुका था। वह यह सब गलत काम पैसे के लिए ही कर रह था किन्तु पैसे न मिलने की वजह से वह उस मैडम का ही खून कर देता है जिसे उसने इस धन्धे में उतारा था। न उसे पैसा मिला। न उसे तृप्ति मिली। न वह अपने ज़िंदगी में कुछ कर ही पाया अब उसे फैसला लेना था कि अपने दो बहनों के सामने काले चेहरे लिए कैसे जाएगा या फिर इस ज़िंदगी में कैसे सांस ले पाएगा जब हर जगह से दुर्गंध आ रही है। 

बी ए पास सिनेमा जो की एक घंटे 35 मिनट की फिल्म है जिसे कई सारे अवार्ड मिले हैं। जिसमें प्रमुख है - Filmfare Critics Award for Best Actress, Screen Award for Best Villain, Screen Award for Best Story जिसके डाइरेक्टर है अजय बहल और यह फिल्म आधारित है लेखक मोहन सिक्का के एक कृति जिसका नाम है 'एक रेलवे आंटी'।

जहां तक इस फिल्म के कास्ट पर बात करें तो मुख्य रूप से चार किरदार हैं इस फिल्म में। 

सारिका ,मुकेश, खन्ना, जोनी जिसका रोल क्रमशः अदा किया है शिल्पा सुकला,राजेश शर्मा, देवेन्दु भट्टाचार्य ने । 

इस फिल्म की मुख्य अदाकारा शिल्पा सुक्ला जो बिहार से है जिन्होंने चक दे इण्डिया फिल्म में भी अपनी आदाकारी का परचम लहराया है। इनकी आँय फिल्में -भिंडी बाजार , क्रेज़ी कुक्कड फॅमिली फ्रमुख हैं। 

मुकेश का किरदार निभाया है सहदाब कमाल ने , जिनकी अन्य फिल्में हैं मेरठिया गंगस्टर और हर हर ब्योमकेश

अनुला नव्लेकर और शिखा जोसी ने छोटा सा किरदार निभाया है । शिखा जोशी अंधेरी मुंबई से ताल्लुक रखने वाली ये एक्ट्रेस का 2013 में अज्ञात कारणो से निधन हो गया। अनुला नव्लेकर दिल्ली से है जो येल यूनिवरसिटि ऑफ आर्ट अँड ड्रामा की छात्रा हैं । 2016 मे आई ब्रहम नमन फिल्म में उन्होने काम किया है। 

राजेश शर्मा की आप कई सारे फिल्म देख चुके होंगे लव सब ते चिकेन् खुराना, रसे 3, द dirty पिक्चर आदि । ये न सिर्फ हिन्दी फिल्मों में बल्कि बांग्ला फिल्म में काम करते आ रहे हैं। जिन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड भी मिल चुका है। डिबयानशु भट्टाचार्य जो फिल्म देव D से ख्याति अर्जित की थी।



एक गाना होते हुए भी फिल्म कहीं से उबाऊ नहीं लगता । शुरू से अंत तक आप केरेक्टर से जुड़े रहेंगे किन्तु आज कल के फिल्मों में कोई पात्र संघर्ष के उच्च  स्तर तक नहीं पहुँच पाता। ज्यादा तर फ़िल्मकार या लेखक पात्र के आत्म हत्या पर अपने कहानी को समाप्त कर देते हैं । फिल्म जिस मुद्दे की बात करती है उसे और अधिक गंभीरता से पड़ताल का प्रस्तुत करनी चाहिए। 

- अभिषेक कुमार 

- abhnandan246@gmail।com 

- रचनात्मक संसार @ फिल्मी –बातें

- (19.10.2013)



प्रतिबद्धता से भयग्रस्त आज का इंसान : शुद्ध देशी रोमान्स (रचनात्मक संसार @ फिल्मी –बातें)


प्रतिबद्धता से भयग्रस्त आज का इंसान : शुद्ध देशी रोमान्स

फिल्म की कहानी और रिव्यू

आदमी जिस  परिवेश वातावरण में रहता है उसका पहनावा- ओढ़ावा, रहन- सहन, बात – विचार उसी के अनुरूप हो जाता है। बहुत कम लोग लीक से हट कर सोच पाते हैं। इसके कई कारण हैं । सबसे बड़ा कारण है कि समाज ने हमने विभिन्न प्रकार के नियम कानून से बांध रखा है। हम जिन्दगी भर सोचते रहते हैं कि हम आने वाले समय में स्वतंत्र हो कर जिएंगे पर ऐसा कहाँ हो पता है । बचपन में पढ़ाई और उसमें अव्वल आने का दबाव। तो कॉलेज के बाद नौकरी ढूँढने और कैरियर सेट करने का दवाब । फिर शादी करने का दबाव ।


शादी करने की बारी आए तो उसमें भी अपनी मर्जी नहीं, सामाजिक रीति रिवाज का दबाव । इन्हीं दबावों कि वजह से हम कन्फ़्यूजन में जीते हैं। डाऊट कभी हमारा पीछा नहीं छोडता। लाइफ सेटेलमेंट, बोले तो दाए हाथ में नौकरी और बाएँ हाथ में छोकरी। कौन सी नौकरी करूँ और कौन सी छोकरी से ब्याह करूँ? ये दोनों प्रश्न से शायद ही कोई इंसान बच पाया हो।
इस कहानी का पात्र रघुराम की  जिन्दगी, कुछ इसी उधेरबुन में है। रघुराम विदेशी लोगों को इंस्ट्रक्ट करता है यानि वो गाइड का काम करता है। मात्र यही नहीं हैं उसके काम दूकानदारों से कमीशन खाना भी  है । उनकी महंगी सामान बेचवा कर । साथ ही साथ शादी के सीजन में पेशेवर बाराती बनकर पैसे कमाता है।
वह सच्चे प्यार के लिए शादी करना चाहता है किन्तु शादी के बाद सच्चा प्यार मिलेगा या नहीं इसी कन्फ़्यूजन की वजह से वह अपनी शादी से भाग जाता है और किसी दूसरी लड़की (गायत्री) से ईश्क में पड़  जाता है। इन दोनों की मुलाक़ात एक शादी में हुई थी, जिसमें दोनों पेशेवर बाराती बनाकर गए थे। अब गायत्री भी आम लड़की की तरह नहीं है। उसे लगता है कि प्यार – व्यार मन का  खयाली पुलाव है। सच्चा  प्यार जिन्दगी में मिलता ही नहीं है। बस धोखे ही धोखे हैं इस जीवन में।
किन्तु,  रघु के उलझे बातों और भोलेपन स्वभाव के कारण गायत्री भी बड़े कन्फ़्यूजन में पड़  जाती है । किसी तरह बात आगे बढ़ते-बढ़ते दोनों एक दूसरे से शादी के लिए तैयार हो जाते हैं। किन्तु इस बार गायत्री शादी से भाग जाती है । अब रघु भी अजीबोगरीब सिचुएसन से गुजर रहा होता है । उसे कभी लगता है पहली शादी ही ठीक थी। फिर गायत्री से मैं शादी करना क्यों चाहता था। कभी लगता है कि गायत्री को मैंने ही मनाया था। इसके लिए गलती मेरी ही थी । फिर अचानक जिस लड़की तारा  को शादी में छोड़ कर भागा था  उसी से मुलाक़ात हो जाती है। फिर रघु  तारा  में फिल्मी रोमांस शुरू हो जाता है । इस रोमांस मे ब्रेक तब लगता है जब एक दिन रघु गायत्री से टकराता है इस दौरान सावित्री भी साथ होती है  । फिर रघु अनमने से रहने लगता है फिर तारा भी छोड़ कर चली जाती है।
रघु और गायत्री फिर से एक दूसरे के करीब आते हैं। दोनों में बातों का सिलसिला होता है। इतना सब हो जाने के बाद भी रघु को ये समझ नहीं आ रहा था कि  दोनों में से किसे चुने ?
शुरू से अंत तक दर्शकों को यही कन्फ़्यूजन का मामला सीट से बांधे रखता है । अंत में रघु और गायत्री को लगता है कि वे वास्तव में एक दूसरे से प्यार करते हैं। वहीं तारा को लगता है कि रघु उसे मिले न मिले पर, उसके  दिल में सदा रघु के लिए प्यार रहेगा। वहीं रघु को भी तारा  के लिए कहीं न कहीं यादें रहेंगी क्यों कि आदमी को ये याद नहीं रहता कि उसे एक दूसरे से प्यार कब हुआ बलिक उसे इस बात का हमेशा ख्याल रहता है कि उसको जो प्यार था किसी से वो कब छूटा था।
शादी के लिए भाड़े के बाराती, झूठी हँसी, दिखावटी सजावट और साजो सामान या ढेर सारे ताम- झाम कि क्या जरूरत है। शादी का मूल उद्देश्य तो सच्चा प्यार ही है तो फिर इस प्यार को शादी जैसे ठप्पे की क्या जरूरत है? तो इस कहानी की अपील है कि लीव इन रिलेसन शिप में जियो न यार । जोड़ी जम गई तो ठीक नहीं तो, तो भी ठीक। शादी करो, न करो क्या फर्क पड़ता है और शादी को लेकर घबराना कैसा? सच्ची बात तो यह है कि हमारा मन बड़ा चंचल है । उसका काम ही है कनफ्यूज रहना।
तो बात पते की ये है कि मन को नियंत्रित करने कि जरूरत नहीं है न ढील छोडने की। जो दिल करे कर डालो और सिर्फ यही सोचो की जो होगा वो देख जाएगा।6 सितंबर 2013 को रिलीज हुई ये फिल्म जिसका निर्देशन किया है मनीष शर्मा ने। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तो कमाल किया ही साथ ही कई अवार्ड भी अपने नाम किए। मनीष शर्मा को इस फिल्म के लिए फिल्म फेर अवार्ड से नवाजा गया है।
इस फिल्म में गायत्री का किरदार निभाया है परिनीति चोपड़ा ने, रघु का शुशान्त सिंह राजपूत ने, तारा का रोल अदा किया है वाणी कपूर ने, गोयल जो शादी का एक तरह से ठीकेदार का काम करता था उसका रोल अदा किए है ऋषि कपूर ने। एवं आँय किरदारों ने खूब अच्छा काम किया है।
 इस फिल्म के गाने भी हिट रहे हैं । बैक्ग्राउण्ड ट्रैक भी काफी अच्छा है। इस फिल्म के बेहतरीन म्यूजिक का श्रेय जाता  है सचिन जिगर को। इस फिल्म  मे कुल नो गाने हैं जिसमें मुझे 'गुलाबी' सॉन्ग बहुत अच्छा लगा।
 – अभिषेक कुमार, रचनात्मक संसार @ फिल्मी –बातें
डेट- 20.10.2013


शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

क्या हैं डायरी लिखने के फायदे और तरीके ?





      डायरी लेखन : 

        क्यों लिखें, क्या लिखें और कैसे लिखें?
  • डायरी लिखने से मानसिक बोझ कम होता है ।
  • डायरी लिखने से योजना बनाने और सही समय पर उपयुक्त कार्य करने में मदद मिलती है ।
  • इससे जो कार्य पूरे करने हैं उनकी रूपरेखा एवं उद्देश्य स्पष्ट होती है
  • डायरी लिखने से हमारे मस्तिष्क के कार्य करने की शक्ति दो गुणी बढ़ जाती है ।
  • डायरी लेखन से स्मरण शक्ति बढ़ती है ।
  • लम्बे समय – अन्तराल पर हमारा मस्तिष्क बहुत कुछ भूल सकता है, इस लिए उसे लिखना जरूरी होता है
  • कई बार हमारे दिमाग में बहुत अच्छे विचार आते हैं, उसे तुरन्त नोट कर लेना चाहिए । अन्यथा वे विचार गायब हो जाते हैं।
  • अपनी समस्या को डायरी में लिखने से मन हल्का और तनाव मुक्त हो जाता है ।
  • रुचि पूर्वक डायरी लेखन से समाधान परक विचार व नए आइडिया दिखने लगते हैं ।
  • किसी भी समस्या को हल करने के लिए मस्तिष्क का दबाव मुक्त होना जरूरी है, इसके लिए
  • डायरी लेखन बेहतरीन दवा है ।
  • सोने से पूर्व डायरी लेखन से नींद अच्छी आती है ।
  • डायरी लिखने से अकेलापन और अवसाद दूर होते हैं साथ ही साथ लेखन कला का विकास होता है ।  


अपनी डायरी में क्या – क्या लिखें ?
  • भविष्य की योजना
  • अतीत के अनुभव
  • वर्तमान में चल रही परिस्थितियों का विवरण
  • अपने दिनचर्या की समीक्षा
  • अपने कार्यों का लेखा – जोखा
  • अपने मनपसंद लेखकों के प्रेरणादायी विचार
  • अपनी भावनाओं को लिखकर विश्लेषण करें
  • कुछ नए आइडिया
  • कुछ नया करने के संकल्पों की चर्चा
  • देश- विदेश के घटना क्रमों पर अपनी  राय विचार
  • पढ़ रहे पुस्तक या ब्लॉग  के लेखक को कोई सुझाव


अपनी डायरी कैसे लिखें?
  • अपनी डायरी को अपना दोस्त समझें, और पूरे दिल से अपनी बात बिना संकोच के साथ लिखें ।
  • रात को सोने के पूर्व लिखें या फिर दिन का कोई भी समय जब आप फ्री हों ।
  • आप एक सुंदर सी डायरी में या खुले कागज पर लिख सकते हैं
  • आप ऐप्स के जरिए अपने कम्प्युटर , मोबाइल या टैब पर डायरी लेखन कर सकते है। 
  • सेल्फी में  विडियो भी बना सकते हैं या फिर केवल औडियो रेकॉर्ड कर सकते हैं।


शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

विवेकानन्द साहित्य सारांश


विवेकानन्द साहित्य सारांश

विवेकानन्द साहित्य नामक पुस्तक को जब मैंने अपने हाथों में लिया, तब सर्वप्रथम मैंने स्वयं से सवाल किया कि इस पुस्तक का नाम विवेकानन्द साहित्य क्यों रखा गया?
स्वामी विवेकानन्द विलक्षण योगी, सिद्ध सन्यासी, प्रखर एवं अतिप्रतिभा शाली दार्शनिक, वेदान्त के महाविद्वान, मातृभूमि के तेजस्वी देशभक्त, ओजस्वी एवं अलौकिक गुणों से अभिभूत साहित्यों एवं कविताओं के प्रणेता, दैवी-शक्ति से अनुप्राणित वक्ता थे। वे एक सच्चे धार्मिक एवं आध्यात्मिक पुरुष थे। वे श्री रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे, जिन्होंने शिकागो में विश्व- विख्यात वेदान्त संदेश एवं प्रेरणादायी भाषण दिया था। इन तमाम विशेषणों से ज्ञात होता है कि स्वामी जी के सम्पूर्ण संदेशों को साधारण मनुष्यों को समझ पाना असंभव सा प्रतीत होता है; हालांकि विवेकानन्द जी की वाणी और प्रयुक्त शब्द, गूढ रहस्यों एवं अनमोल विचारों को बड़ी सरलता से प्रस्तुत करते हैं। विषयों को समझने कि उनकी शैली सर्वोत्तम है। कठिन से कठिन श्रुतियों को वे इस तरह समझ देते हैं जैसे कोई बच्चों कि मनोरंजक कथा सुना रहे हो। उनके बताए हुए निर्देशों और आदर्शों को हमें समझने में उतनी कठिनाई नहीं हुई क्योंकि पढ़ते वक्त हमें मालूम नहीं होता कि हमपढ़ रहे हैं या कोई वीडियो देख रहे हैं।
जो संदेशों को सरलता पूर्वक सर्वसाधारण को समझने में समर्थ हो साहित्य कहलाता है शायद इन्हीं कारणों से पुस्तक का नाम विवेकानन्द साहित्य बिलकुल सटीक है। यह हो सकता है कि अगर इस पुस्तक का नाम योग सूत्र, वेदान्त दर्शन अथवा आध्यात्मिक प्रवचन रखा गया होता तो ज़्यादातर लोग इसे इसलिए नहीं पढ़ते क्यों कि वे समझते कि यह पुस्तक तो योगियों, सन्यासियों के लिए उपयुक्त हैं। इस प्रकार कि धारणा से वे विवेकानन्द के विशाल हृदय और महान विचारों को आत्म ग्रहण करने से वंचित रह जाते।
प्रकाशक विभाग केवल प्रशंसा के पात्र ही नहीं हैं बल्कि वे अनन्त पुण्य के भागी हैं केवल इसलिए नहीं कि उन्होने विवेकानन्द के विचारों को अनगिनत व्यक्तियों तक पहुंचाया है बल्कि इसलिए कि उन्होने सम्पूर्ण संदेशों को मात्र 10 खंडों में पिरो कर अमूल्य धरोहर स्वरूप उपलब्ध कराया है।
प्रथम खंड के भूमिका में बताया गया है भारत सरकार ने 1984 ई0 से 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा करते हुए कहा इस बात को महसूस किया गया कि स्वामी जी के सिद्धान्त और वह आदर्श जिनके लिए वह जिये और काम किया, भारतीय युवकों के लिए महत्वपूर्ण प्रेरणा श्रोत्र बन सकते है

जिस समय स्वामी विवेकानन्द ने अपनी मातृभूमि के दिव्य संदेशों कों पूरे विश्व में फैलाने उस समय हमारा देश परतंत्र था। गुलामी कि बेड़ियों से जकड़े हुए राष्ट्र में उन्होने जामलिया, तमाम झंझावातों के बीच अध्ययन किया, अपने गुरु दिवि ज्ञान प्राप्त कर सत्य का साक्षात्कार किया इतना सबकुछ हासिल करने के बावजूद उन्हें अपनी मातृभूमि की दुर्दशा देखकर सहन नहीं कर पाये और चल पड़े सम्पूर्ण मानवता को झकझोरने, जगाने के लिए। ताकि मनुष्य बेहोशी और अज्ञान रूपी नींद में अपना अनमोल जीवन नष्ट न करे। उन्होने आह्वान किया – हे आर्य पुत्र !हे ईश्वर की संतानों ! उठो जागो और तबतक चलते रहो, जबतक तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाय।
प्रत्येक मानव जीवन का लक्ष्य मुक्ति और सत्य एवं परमानंद की प्राप्ति । इसलिए सारी ज़िम्मेदारी स्वयं तुम अपने कंधे पर लो। यहाँ कोई कार्य असम्भव नहीं। कठिन से कठिन कार्य को तुम कर सकते हो क्योंकि परम पिता परमेश्वर ने तुम्हें वे सारी शक्तियाँ दे रखी है, सिर्फ स्वयं को पहचानने की देर भर है कि तुम सर्वशक्तिमान हो क्यों कि तुममें वही ईश्वर अव्यक्त रूप में विद्यमान है ।
20वीं शताब्दी के आरंभ में जब स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष चल रहा था, हमारे सभी राष्ट्रीय नेताओं ने स्वीकार किया कि स्वामी जी के भाषण तथा कृतियों ने उन्हें मातृभूमि की सेवा और स्वतन्त्रता के लिए तन और मन से समर्पित होने की प्रेरणा दी है। उदाहरणतया वे अपने भाषण में कहते हैं कि एक वयोवृद्ध अध्यापक द्वारा पढ़ाई गयी एक सदाचार की पुस्तक में से हमें एक पाठ कंठस्थ कराया गया था, जो मुझे आज तक स्मरण है।

गाँव की भलाई के लिए मनुष्य अपने कुल को छोड़ दे,
देश की भलाई के लिए मनुष्य अपने गाँव को छोड़ दे
मानव–समाज की भलाई के लिए मनुष्य अपने देश को छोड दे।
विश्व की भलाई के लिए मनुष्य अपना सर्वस्व छोड़ दे।
जिन आदर्शों को स्वामी जी ने सदा ऊंचा रखा, जिन संदेशों को स्वामी जी ने सम्पूर्ण विश्व को समझाया, जिन विचारों से स्वामी जी ने अतुल्य भारत के नैतिकता की नींव रखी और सत्य, शांति, समन्वय एवं सेवा की महत्ता पर जिन धार्मिक सामाजिक और बौद्धिक दृष्टि कोण से प्रकाश डाला है वह विश्व मानवता और मातृभूमि के अदम्य प्रेम को दर्शाता है। उन सबसे भारतीय जनमानस को अभिसिंचित करना परम आवश्यक है स्वामी विवेकानन्द सच्चे आदर्श स्वरूप खासकर युवाओं के लिए महान मार्ग दर्शक स्थापित हैं। जरूरत सिर्फ इतनी है कि उनके समन्वयता–संतुलन रूपी मंत्र को आत्मसात कर साहसपूर्वक अपना कर्म करें। हमारे कर्म स्वार्थ रहित हो और हम सहिष्णु बने रहने के लिए प्रयत्नशील रहें।
आगे हम स्वामी जी को लेकर इस बात कि चर्चा करेंगे कि उनका उद्देश्य लक्ष्य क्या था? उन्होने किन किन से कार्य किया? मानव–समाज को उन्होने किया दिया? उनकी दर्शनिकता आधुनिक परिपेक्ष्य में किन किन दृष्टिकोण से उपयोगी है और क्यों उपयोगी है? उनके विचारों का हम किन-किन क्षेत्रों में उपयोग कर सकते हैं ? उनकी भाषण शैली कैसी थी ? उनके भाषण से विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा? विवेकनन्द से भारत ने क्या क्या प्राप्त किया? उनका छोटे, बड़े और समकक्ष के प्रति कैसा आचरण व मनोभाव था? उनके पत्रों को पढ़कर किन-किन पर चिंतन करने की आवश्यकता है ? दूसरों को समझाने, बतलाने के क्रम में उनकी मनोदशा कैसी रहती थी? देश के अंदर या बाहर उन्हें किन किन हालतों से गुजरना पड़ा ? उन्होने जीवन में संघर्षों पर विजय कैसे प्राप्त किया? अब जबकि हमलोगों ने उनके साहित्यों को पढ़ लिया है, हमारा क्या दायित्व है ? हमें किन किन बातों का चिंतन कर उसे योजना और कार्यों में परिणत करना चाहिए?

अपने गुरु श्री राम कृष्ण की अनुभूतियों के परिपेक्ष्य में वेदान्त के भव्य सन्देश का प्रचार करना उनके जीवन का उद्देश्य था। इसके साथ ही प्राचीन परम्पराओं और अंतर्निहित प्रतिभागियों के अनुरूप अपनी मातृभूमि को पुनः सशक्त करना भी उनका ध्येय था।
चार योगों के बारें में तथा अपने लेखों, पत्रों, संभावनाओं, काव्य- कृतियों आदि में धर्म, धार्मिक मान्यताएँ, वेदान्त के उत्कृष्ट विचार एवं दार्शनिक चिंतन सभी लोगों को समान रूप से अमूल्य ज्ञान – विज्ञान दान दिया है। उनकी रचनाएँ भावी- पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर छोड़ राखी है।
भारत एवं विदेशों में अपनी साधुता, स्वदेश- भक्ति, सम्पूर्ण, मानव जाति के आध्यत्मिक उत्थान एवं प्राच्य तथा पाश्चात्य के मध्य भ्रातृ भाव के सार्वभौमिक सन्देश देकर समन्विता का पाठ पढ़ाया। वर्तमान कृतियों या रचनाएँ जिसमें उनके अमृतमय विचार विद्यमान हैं उन ग्रन्थों का समग्र अध्ययन की आवश्यकता के साथ साथ समयान्तर के परिपेक्ष्य लगातार संशोधन- सम्पादन की आवश्यकता है । साथ ही यह परम आवश्य है कि अभी तक उनके बारे में जीतने साक्ष्य मिले, उनके विचारों कि मूल प्रति के साथ साथ अनुवादित संस्करणों को संग्रहीत कर एक विश्वस्तरीय संग्रहालय एवं पुस्तकालय कि स्थापना  कि जय । इन विचारों को और आगे बढ़ते हुए यह सोचने कि बात है क्यों न सम्पूर्ण भारत और विश्व से मेधावी युवकों को चुनकर उन्हें स्वामी विवेकानन्द के विचारों एवं आदर्शों का चिंतन मंथन तथा अनुसंधान करने के लिए प्रेरित किया जय। सिर्फ इसी लिए नहीं कि उन युवकों का कल्याण हो, वेदान्त के विचार जिंदा रहेंगे।
बल्कि इसलिए सामान्य – साधारण लोग जो जिस व्यापार या व्यवसाय में संलग्न हैं उन्हें उत्कृष्ट चिंतन मिले, जीवन संघर्ष पर विजय प्राप्त कर सके, एवं समस्त मानवता सेवा, सद्भाव, समन्वयता एवं स्वतन्त्रता के मार्ग पर चल सके । विवेकानन्द सदृश्य वे वीर युवक इस महान कार्य का नेतृत्व करें।
स्वामी विवेकानन्द के विचारों और वक्तव्यों से जिस सर्व्भोमिक सिद्धांतों कि सुगंध मिलती है केवल उसी से दुखित एवं दुर्बल मानव को सुख और शांति की प्राप्ति हो सकती है । व्तव में वेदान्त के विचार ही मनुष्य मात्र का कल्याण कर सकते हैं ।
आधुनिक युग प्रगति शील प्रतियोगी राष्ट्र वादी एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त है । आधुनिक वैज्ञानिक आविष्कारों का दौर न्यूटन की पीढ़ी से प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम उन्होने ही भौतिक सिद्धांतों को दैनिक जीवन से जोड़कर नए दार्शनिक विचारधारा जिसका प्रमाण गणितीय सोच ने मात्र 4000 वर्षों की यात्रा की किन्तु वैदिक विचार तो कई युग के पूर्व से ही प्रचलित है । हिन्दुत्व दृष्टिकोण दोनों रूपों में (बहिर्मुखी- अंतर्मुखी) सम्पूर्ण विश्व में अग्रणी रहा है। सारी विचारधाराएँ वेदों में सन्निहित है । दूसरे पता चलता है कि प्राचीन कल में भारत सभी विद्याओं ज्ञान और विज्ञान में सर्वोच्च पद पर आसीन था। किन्तु क्या वजह रही उसके पतन का? यह सर्वविदित है कि परिवर्तन संसार का साश्वत नियम है । आर्यों को वेदों का ज्ञान प्राप्त होने पर उन्होने केवल अंतरात्मा कि प्रगति कि ओर ध्यान दिया। बाह्य प्रगति कि ओर नहीं । साथ ही वह अपने नैतिक सिद्धांतों के वजह से दबा रहा । वह चाह कर भी बहिर्जगत में रंग नहीं भर सका। धार्मिकता पर ध्यान देना और सामाजिकता से दूर भागना उन्हें महँगा पड़ा। इसी एक पक्षीय प्रगति के कारण पूर्व और पश्चिम के लोग अपूर्ण हैं और जब आज नवीन आविष्कारों से संसार का आईना बदल चुका है और संभवतः उसका चेहरा भी । इस विश्वव्यापी विघटनशील वातावरण में हिन्दू धर्म को आवश्यकता थी एक ऐसी चट्टान की। जहां वह लंगर डाल सके, एक ऐसी प्रामाणिक वाणी की, जिसमें वह स्वयं को पहचान सके। इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द हिन्दू धर्म के लिए वरदान तो हैं ही साथ ही जो उन्होने हिन्दूवादी सोच को साहसपूर्वक संसार के सामने रखा वह अभूत पूर्व है। भारतीय लोगों के प्रति जो पाश्चात्य लोगों की धारणा थी स्वामी जी ने उस सोच को ना केवल उखाड़ फेंका वरन जिस पाठ पर वे लोग अग्रसर है उसका अंजाम बटलकर उन्हें अपने विचारों पर पुनः मंथन करने को विवश कर दिया । पाश्चात्य नैतिक आचरण, खान-पैन, पहनावा – ओढ़वा पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। हालाँकि अधिकांश लोग स्वामी जी के संदेशों से सहमत और प्रवचनों से प्रभावित और प्रेरित हुए फिर भी कुछ मंदमती लोगों ने स्वामी जी को मूर्तिपूजक एवं पाश्चात्य संस्कृति का आलोचक समझा। स्वामी जी को विदेशों मे अनेक कष्टों के साथ लोगों के हँसी – मज़ाक का पात्र बनना पड़ा। इनतु जब लोगों ने उनकी विशुद्ध एवं विद्वतापूर्ण वाणी को सुना तो सभी स्तब्ध रह गए। सभी मौन हो गए। सभी नतमस्तक हो गए। इसे वेदान्त के दिव्य सत्य का प्रभाव कहिए जिसमें सभी धर्मों एवं सभी उपदेशों को अपने में समाहित करने का सामर्थ्य है या मातृभूमि के तेजस्वी पुत्र जो भारतीय नैतिकता, सेवापरायता, बुद्धिमत्ता,(जिसमें दार्शनिक – वैज्ञानिक – राजनीतिक तीनों विचार का अद्भुत संयोजन) का प्रभाव कहिए। उनके संवादो की शैली सर्वोत्तम है इसके कई कारण है- जैसे वेदों के शब्द, शब्द ही नहीं, बल्कि सत्य की प्राप्ति के सूत्र है ठीक उसी तरह विवेकानन्द  के शब्दों या उनके अर्थों से समझा जा सकता है की उनकी बातें व्यक्त और अव्यक्त विचारों को बड़ी सरलता – सरसता पूर्वक रखते थे।हिन्दुत्व में पूरे विश्व को प्रतिनिधित्व की क्षमता है ये विवेकानन्द चरित्र से सिद्ध है।
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C-7a: Pedagogy of social science [ B.Ed First Year ]

1. माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आपके द्वारा चुने गए विषय का क्षेत्र क्या है ? उदाहरण सहित व्याख्या करें। माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए हम...