सोमवार, 27 अगस्त 2018


रक्षा बन्धन : पर्व विशेष और इसकी प्रासंगिकता

रक्षा बन्धन अर्थात भाई बहन के प्यार का पर्व । किन्तु क्या प्रेम का कोई बन्धन होता है । प्रेम तो स्वतन्त्रता का दूसरा नाम है । हमें जीवन का मतलब ही प्यार करना सिखलाया जाता है । जिस जीवन में प्रेम नहीं है उसे जीवन नहीं कहा जा सकता । प्यार के बिना तो जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती । जैसे कि हम एक दीपक हो और उससे निकालने वाला प्रकाश हमारा प्रेम । यही है इस पवित्र बन्धन का तात्पर्य ।

रक्षा बन्धन हमारे संकल्पों से जुड़ा हुआ विषय है । हम जिस कार्य को सिद्ध करना चाहते हैं उसके पूर्व हमें संकल्प लेना पड़ता है । यह संकल्प ही हमें अपने लक्ष्य से जोड़े रखता है । जब हम पूजा – पाठ, धर्म – कृत्य, कर्म – कांड इत्यादि करते हैं तब रक्षा शूत्र बांधने की  परंपरा है । क्योंकि हम ये अनुभव कर सकें की ईश्वर से हमारा सम्बन्ध अटूट है । उन्होने हमारा हाथ थाम रखा है और जिस महान कार्य को हमें करना उसके साथ हमारी निष्ठा, लगन और समर्पण बनी रहे ।

संस्कृति और समय अपने प्रवाह से चलता रहा और युद्ध का दौर शुरू हो गया । सत्य – असत्य, धर्म – अधर्म, परोपकार – अन्याय तमाम विपरीत परिस्थितियों से जब संघर्ष शुरू हुआ तब महिला भी उससे वंचित नहीं रही। अपनी रक्षा, देश की रक्षा, धर्म की रक्षा के लिए बहनों ने अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा । साथ ही साथ बहनों ने ईश्वर से प्रार्थना की, हमारा भाई सदा विजयी हो । भगवान सदैव हमारे भाई की रक्षा करें । महान प्रेम और अटूट श्रद्धा –विश्वाश से सिंचित यह पर्व हमारी परम्परा और विरासत से प्रेरित यह पर्व हमरी परम्परा और विरासत बन गई । जिसे संभाला और निर्वहन करना हमारा कर्तव्य है ।


आज रक्षा पर्व है । यहाँ मैंने राखी या रक्षा बंधन नहीं कहा । क्योंकि आजकल अधिकतर शब्द प्रदूषण के शिकार हो गए हैं । राखी पवित्र धागों के सम्बोधन के लिए प्रयुक्त होता है किन्तु राखी नामक युवती ग्लैमर की चकाचौंध में अपनी मर्यादा भूल जाए अपना नाम राखी रखे तो फिर उस शब्द की गरिमा धूमिल हो जाती है उसका महत्व कम हो जाता है।

किसी भाई को अपनी बहन का इंतजार है तो किसी बहन को अपने भाई के आने की प्रतीक्षा । ऐसे में एक फिल्मी गाना जो कुछ माह पहले ही आई थी। "आ जाओ ना " गायक अरिजित सिंह द्वारा मुखरित यह गीत बहुत सुंदर है । जीतने सुन्दर इसके बोल है उतने ही सुन्दर इस गीत के भाव। लेकिन गाने की शुरूआत  में नायिका कहती  है कि "ये फॅमिली रिलेसनसिप रिस्तेदारी, मुझसे नहीं होगा ये सब उक्त कथन पर गंभीरता पूर्वक विचार करने पर दो बात सामने आती है । ये इसीलिए क्योंकि आज की पीढ़ी, टीवी- फिल्म और वेबसेरीज़ से ही सबकुछ सीख रही है और साहित्य उनकी पहुँच से दूर होता जा रहा है।

पहली ये कि ये जो वह कह रही है वह हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति है ही नहीं । उसके कथन से पता चलता है वह पात्र  पश्चिमी विचारों का प्रतिनिधित्व कर रही है और भारतीय नारियों / महिलाओं को दिग्भ्रमित करने का प्रयास है । टीवी-सीरियल में जो धरल्ले से दिखाया जा रहा है वह नहीं है असली तस्वीर । वह बनावटी है, दिखवाती है । जिसपर पूंजीवाद का ग्रहण और प्रभाव है । ऐसे टीवी सीरियलों में आज की महिलाएं उसमें खुद को ढूंढती खुद से सवाल करती है । खुद की तुलना कर खुद को हीन  भावना से ग्रसित पाती है।
भारतीय नारियों में जितना गौरव और आत्म विश्वाश है वह किसी दूसरे देशों में नहीं । औरतों की बर्बादी हुई है तो असामाजिक पुरुषों के कारण और अभद्र रूढ़ता से प्रभावित होने के कारण महिला का भविष्य थोड़ा धीमी रफ्तार से प्रकाशित हो रहा है ।

आज की नारी घर परिवार तो संभालने में निपुण तो है ही  साथ ही साथ वे ऐसे कीर्तिमान स्थापित कर रही है जिसकी कभी कल्पना नहीं की गई थी । भारत की जितनी बैंकिंग कंपनी है लगभग उनसबकी मालिक महिला ही है । रसोई की बात हो या राष्ट्र के हालत के महिला की स्थितियों से अंदाजा लगाया जा सकता है । अन्तरिक्ष हो या वायुयान जिसमें यातायात और सुरक्षा दोनों शामिल है, पर्वतारोहण समेत कई खेलों में महिलाओं ने अपना परचम लहराया है खासकर भारतीय महिला ने विश्व के सारे रिकॉर्ड तोड़ एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया । शिक्षा या पुलिस प्रशासन का क्षेत्र आज महिला से वंचित ना रहा । आज महिला अबला नहीं रही कि किन्तु दुख कि बात ये है कि गर्ल–ट्राफ़्फ़िकिंग कि संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है ।  

दूसरी बात हमारे समाज कि बहने, बेटियाँ को देवी से संबोधित किया जाता है । उसे घर – परिवार कि जिम्मेवारी पुरुषों की अपेक्षाकृत महिला को पहले सिखलायी जाती है । वह इसका निर्वाहन बड़े कुशलता के साथ सिखाती है और संभालती है । हमारे समाज की पूरी बागडोर, हमारे देश की मान – प्रतिस्था, हमारे धर्म आस्था की नींव, हमारे रिस्ते नाते की डोर, हमारी संस्कृति और विचार, हमारे दैनिक कार्य  चाहे छोटे से छोटा क्यों ना हो । एक महिला या बहन ही उस केंद्र में होती है । अतः यह कहना सही होगा कि बहनें परिवारों को जोड़ती तोड़ती नहीं ।
इसके विपरीत कुछ हो रहा है तो समाज को परिवार को अपने विचार पर अपनी स्थिति पर अवश्य चिंतन करना चाहिए । आज हमारा परिवार और पर्यावरण दोनों खतरे में है । जिस तरह से बेटियाँ और वृक्षों की संख्या कम हो रही है वह दिन दूर नहीं जिस दिन हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़  जाएगा।
आज का दौर जहां रिस्ते, परिवार, समाज में एक विखराव सा प्रतीत होता है । लोग परिवार का मतलब सिर्फ मिया बीबी बच्चे तक ही समझते हैं । जो हमारी संस्कृति है ही नहीं । हम पर दुष्प्रचार का प्रभाव पड़ा है और हमने अपनी विचार धारा को भुला दिया है ।

हम तो पूरे विश्व को एक परिवार समझने वाले पूर्वजो की संताने हैं । हमारे लिए प्यार एक क्षुद्र भावना मात्र नहीं है बल्कि यह हमारे लिए प्यार, प्रेम, स्नेह, लगाव, भक्ति आदि ना जाने प्रेम के कितने रंग हैं, कितने प्रकार हैं । हम इसकी गिनती नहीं कर सकते । हम हिन्दुत्ववादी लोग ना सिर्फ अपने परिवारों में सिर्फ प्रेम ढूंढते या पाते हैं वरन पशु पक्षी यहाँ तक निर्जीव वस्तुओं तक में हम प्रेम और ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करते हैं।
जब हम हिंदुओं  का हृदय इतना विशाल है तो हममें सम्पूर्ण जगत को सही मार्ग दर्शन देने की काबिलियत भी है। फिर हम उनकी क्षुद्र मानसिकता / धनलोलुपता अपने समाज और देश और व्यक्ति पर हावी क्यों होने दें । हमें अपनी विचारधारा, अपने धर्म, अपनी मर्यादा, अपने रीतिरिवाज, अपनी सांस्कृतिक परम्परा को जीवित रखना होगा । इसकी रक्षा करनी होगी।


रक्षा बंधन की विशेष शुभकामनाओं के साथ आपका प्यारा  भाई
अभिषेक














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