स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
निवेदित है कुछ पंक्तियाँ---
स्वतंत्र हैं हम सभी,
यह विश्वास कब होगा?
सपूत हैं मातृभूमि के,
यह एहसास कब होगा?
मिली है आजादी जो हमें,
आपसमें सहयोग कब होगा?
मिली है जवानी जो हमें,
इसका उपयोग कब होगा ?
लूटते हुए देश को देख,
हम कबतक चुप बैठेंगे?
बँटते हुए देश को देख,
हम कब तक यूँ ही देखेंगे?
हैं भारतीय युवा हम बाहुबली,
फिर अन्याय कबतक सह पाएंगे?
हैं वीर योद्धा, जो करते रखवाली,
फिर ग़द्दारों के सर कबतक बच पाएंगे?
गरीबी से लड़ाई,
आखिर कब खतम होगी ?
देखो पड़ोसी की चतुराई,
कबतक हमें भरमायेगी ?
गेरुआ में ढोंगी छिपे हैं,
इन काले व्यापारी से, कौन बचाएगा?
धानी धरती, आज भी सूखे हैं,
किसानों को, इनसे कौन बचाएगा ?
बारी हमारी, अब आई,
तो क्यों न हम, जिम्मेदारी लें ?
अब तक जो, की हमने पढ़ाई,
तो क्यों न अब हम, नेताओं की हाजरी लें ?
व्यवस्था नई, तकनीक नए,
भाई ! क्यों न हम बात करें?
जिज्ञासा नई, नवाचार नए,
क्यों न हम, ऐसे हालात करें?
गाँव और ग्लोबलाइजेशन,
इन दोनों को कौन जोड़ेगा ?
बिगड़े हैं जल-वायु के सिचुएशन,
इनलोगों को कौन समझायेगा ?
आजादी के ज़श्न में आज,
पूछे दिल से कुछ ऐसे ही प्रश्न ।
सार्थक होगा दिन जो आज,
फिर मन में जीवन में और जगत में;
लहराएगा तिरंगा प्यारा ,
अति प्रशन्न अति प्रशन्न ।
नमन मेरा, उस कुर्बानी को
नमस्कार है , उस बलिदानी को।
प्रणाम है उस पराक्रमी को
सलाम है उस प्रहरी सेनानी को ।
नत मस्तक हैं हम वीर शहिदों के आगे,
कोटि कोटि वंदन है मातृभूमि के आगे।
लेखक -
अभिषेक कुमार 'अभिनंदन'
15 अगस्त 2018
रचनात्मक संसार
निवेदित है कुछ पंक्तियाँ---
स्वतंत्र हैं हम सभी,
यह विश्वास कब होगा?
सपूत हैं मातृभूमि के,
यह एहसास कब होगा?
मिली है आजादी जो हमें,
आपसमें सहयोग कब होगा?
मिली है जवानी जो हमें,
इसका उपयोग कब होगा ?
लूटते हुए देश को देख,
हम कबतक चुप बैठेंगे?
बँटते हुए देश को देख,
हम कब तक यूँ ही देखेंगे?
हैं भारतीय युवा हम बाहुबली,
फिर अन्याय कबतक सह पाएंगे?
हैं वीर योद्धा, जो करते रखवाली,
फिर ग़द्दारों के सर कबतक बच पाएंगे?
गरीबी से लड़ाई,
आखिर कब खतम होगी ?
देखो पड़ोसी की चतुराई,
कबतक हमें भरमायेगी ?
गेरुआ में ढोंगी छिपे हैं,
इन काले व्यापारी से, कौन बचाएगा?
धानी धरती, आज भी सूखे हैं,
किसानों को, इनसे कौन बचाएगा ?
बारी हमारी, अब आई,
तो क्यों न हम, जिम्मेदारी लें ?
अब तक जो, की हमने पढ़ाई,
तो क्यों न अब हम, नेताओं की हाजरी लें ?
व्यवस्था नई, तकनीक नए,
भाई ! क्यों न हम बात करें?
जिज्ञासा नई, नवाचार नए,
क्यों न हम, ऐसे हालात करें?
गाँव और ग्लोबलाइजेशन,
इन दोनों को कौन जोड़ेगा ?
बिगड़े हैं जल-वायु के सिचुएशन,
इनलोगों को कौन समझायेगा ?
आजादी के ज़श्न में आज,
पूछे दिल से कुछ ऐसे ही प्रश्न ।
सार्थक होगा दिन जो आज,
फिर मन में जीवन में और जगत में;
लहराएगा तिरंगा प्यारा ,
अति प्रशन्न अति प्रशन्न ।
नमन मेरा, उस कुर्बानी को
नमस्कार है , उस बलिदानी को।
प्रणाम है उस पराक्रमी को
सलाम है उस प्रहरी सेनानी को ।
नत मस्तक हैं हम वीर शहिदों के आगे,
कोटि कोटि वंदन है मातृभूमि के आगे।
लेखक -
अभिषेक कुमार 'अभिनंदन'
15 अगस्त 2018
रचनात्मक संसार
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