शनिवार, 27 अगस्त 2016

बाढ़ और सुखाड़ के बीच गुफ्तगू

“बाढ़ के साथ 166 प्रखंडों में सुखाड़” बड़े और मोटे अक्षरों में हिंदुस्तान दैनिक के फर्स्ट पेज पर छपे उक्त हेडिंग लाइन पढ़ कर ना जाने कितने सवाल मन मस्तिष्क में कोंधने लगे.तस्वीरों को देख कर काफी हैरानी हुई. आंकड़ो ने झकझोर कर रख दिया. सोचिए जरा जो इस विकट परिस्तिथियों का सामना कर रहे है उन पर क्या बीतती होगी.सबसे पहले मौजूदा हालात से उपजे कुछ सवाल – बाढ़ और सुखाड़ के लिए कौन जिम्मेवार है? कब निजात पायेगा बिहार ऐसे हालत से? बदतर हालत कब होंगे बेहतर? बाढ़ की विभीषिका और सुखाड़ की समस्या का क्या कोई ठोस समाधान संभव है? क्या ये एक तरह की लापरवाही है या हमारे पास कोई चारा नहीं है आपदाओं को झेलने के सिवा? आपदा प्रबंधन विभाग या उससे जुड़े विभाग के पास कोई योजना है जिससे जनता को राहत मिल सके? या फिर ये हालात सरकार के नाकामयाबी का संकेत है?  ऐसे सवाल किसी को भी हिलाने के, सोचने के लिए पर्याप्त है. आप की क्या राय है?

(आगे पढ़ने से पहले ये मान लें कि आप किसी चाय के ढाबे पर चाय का इंतजार कर रहे है और पास में बैठे एक ग्रुप में गुफ़्तगू चल रही. जिसे आप सहज रूप से सुन पा रहे हैं.)

“भाई! सब लोग पलायन करने के लिए विवश हैं.उनकी जान जोखिम में होने की वजह से वे डरे हुए है.जो कुछ उन्हें अपने बचाव के उपाय सूझ रहे हैं वे कर रहे हैं. अखबारों और सोशल साइट्स पर ऐसे तमाम तस्वीर मिल जायेंगे जो बाढ़- सुखा की विभीषिका को बयां कर रहे हैं. मुझे लगता है बिहार ऐसी विभिषिका झेलने के लिए अभिसप्त तो नहीं.”

“नहीं महाराज. कैसी बात करते हैं. आप द्वापरयुग में तो नहीं जी रहे हैं. दो दी पहले ही जन्माष्टमी मनायी उसी का प्रभाव है आप पर.”

“नहीं.नहीं. आप ही बताए कि ये कैसे हुआ अचानक ?. और सुनकर भी कितना अजीब लगता है. बिहार में बाढ़ भी  और सुखाड़ भी. ये तो वही बात हो गई रात भी है और सूरज भी उगा है. ये भगवान की ही तो लीला है.वे तो कुछ भी कर सकते हैं.”

“कम कम से भगवान पर तो दोष मत दीजिए. ये बाढ़ कि वजह तो पड़ोसी देश नेपाल और पडोशी राज्यों से आये पानी के कारण हुई और कुछ इलाकों में 18 फीसदी कम बारिश होने से ऐसे हालात हुए हैं.”

“ओह. तो ये बात है. मैं तो खामखाँ भगवान को दोष दे रहा था. अच्छा तो ये बताए कि क्या बाढ़ और सुखा की कहानी क्यों दुहराई जा रही है? इसमें किसका दोष है सरकार का या अखवार वालों का?”

“मुझे तो बिल्कुल भी कोई दोषी नज़र नहीं आता. क्युकि सरकार की घोषणा, अनुशंसा,रिपोर्ट,सर्वेक्षण,परिचर्चा,बैठक, प्रस्ताव,ज्ञापन, निर्देशन आदि इत्यादि तो कर ही रही है.हमारे अफसर जमीनी करवाई को छोड़ कर कागज़ी घोड़े दौड़ाने के अभ्यस्त तो हैं ही.अखवार वाले का तो कोई दोष नहीं,ये तो पढ़ने वाले के यादास्त का मामला है.वे जो पढ़ते हैं और शायद सोचते भी हैं कि ये तो पिछले साल वाली घटनाओं का ब्यौरा है सिर्फ डेट चेंज है.”

“आपने ठीक कहा. देखिए आपदा प्रबंधन की बैठक हुई है.साथ ही बिहार ने केंद्र सरकार से सहायता के लिए भी गुहार लगाई है.”

“हाँ. ठीक है पर एक बात समझ में नहीं आता कि हम जानते हैं बाढ़ और सुखाड़ की समस्या साल दर साल भयावह रूप धारण कर रही है. खास कर धान रोपाई के समय. कहीं फसल डूब जाती है तो कहीं सुख जाती है.अब तो जान पर भी आफत है. आखिर साल भर जनता के प्रतिनिधि mla और mp व प्रशासन क्या करती है?क्या उन्हें पता नहीं चलता या खबर लेने की कोशिश नहीं करते कि कौन सा पुल बांध कमजोर है? कहाँ का रेलखंड क्षतिग्रस्त है या होने वाला है.मौसम की भविष्यवाणी के लिए कोई जागरूक है भी की सब राम भरोसे?”

“दरअसल बात है कि हमारी आदत है कि जब  प्यास लगेगा तभी कुआँ खोदेंगे. और हाँ अब तो और आफत है खोदने से भी कहाँ मिलेगा एक तरफ ग्लोबल वार्मिग बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ जल के लेयर्स घटते जा रहे हैं.”

(अब आपके सामने चाय प्रस्तुत है. चाय के मजे के साथ उनकी बातों पर गौर करना ना भूलें)

“भाई! जो हुआ सो हुआ. अब जो हो रहा है हमारा ध्यान उसपर होना चाहिए. हमें सोचना चाहिए कि किस प्रकार हम बाढ़ और सुखा पीड़ितों की मदद कर सकते है?सुखा से निपटने के लिए तो लम्बी अवधि के कार्यक्रम बनाने की जरुरत है. किन्तु बाढ़ के कारण जो समस्या पैदा हुई है उसे तत्काल समाधान करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो जान माल को काफ़ी नुकसान होगा.”

“नुकसान! जरुर होगा और होकर रहेगा.ये होना ही चाहिए और जो हो रहा है वो पहले से सुनिश्चित है.”

“आप कैसी बात कर रहे हैं.आप को उन पीड़ितों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं.”

“हाँ.मुझे कोई हमदर्दी नहीं.जरा आप ही बताए कि आप कितने सहिष्णु हैं? आप कितने दयावान हैं ?”

“ये क्या.भाई! आप तो मुझसे लड़ाई करने लगे.”

“नहीं, नहीं, भाई साब! मैं आप से क्यों लडूंगा. मैं तो दरअसल ये कहना चाह रहा हूँ कि जब हम लोगों ने वृक्षों और जलवायु के प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई तो प्रकृति को हमलोगों के प्रति कितनी हमदर्दी होगी.जब उसपर हमने अत्याचार किया है तो वह हमपर कहर बरसायेगी ही.कभी बाढ़ का रूप लेकर.कभी सुखा की विभीषिका बनकर.”

“हम्म्म्म. हमें जो है ना. समाज में एक नै क्रांति लानी होगी. जलवायु परिवर्तन के प्रति हम सभी लोगों को जागरूक होना होगा.”

“हाँ. हुई थी ना दो दिवसीय बैठक.भारतीय कृषि अनुसन्धान परिसद के संरक्षण में.”

(शायद आपकी चाय ख़त्म हो गई होगी और जाने को सोच रहे होगें पर बात तो पूरी सुन लीजिए)

“मत कीजिए चर्चा इस बारें में. चर्चा- परिचर्चा करते करते टीवी वालों ने दिमाग का दही कर दिया है. मैं पुछता हूँ कहाँ थे भाई अबतक. क्या कर रहे थे.कभी आप सबने जमीनी स्तर पर आकर देखा सुना कि वास्तव में क्या परेशानी है.बहुत आसान है ac हॉल में जो जी आये बोल दिया.हंशी मजाक और बेकार बहस पर जाया करना. बहुत आसान है. सिंचाई, बिज, उर्बरक आदि मामले में किसानों को क्या क्या समस्या झेलनी पड़ती है.इन बातो में कहाँ किसी को रूचि है?,उन्हें इंटरेस्ट तो अपनी झूठी प्रसंशा करने में होता है?. उन्हें अपने ऑफिस की राजनीति में ज्यादा मजा आता है.वो परेशान हैं कि उन्हें क्यों पदोन्नति चाहिए या फिर किसानों के समस्या को किस तरह हल किया जाये. खैर वो प्लाट पर जाने से तो शायद इसलिए भी डरते हैं कि गाँव जाने वाले जितने भी रास्ते है वहां रास्ते तय नहीं करने होते है बल्कि गड्ढे और खाई से गुजरना पड़ता है.जिसे वे झेलना नहीं चाहते.तो जाएँ भी तो कैसे?”
“मैं इस बात से सहमत हूँ. यहाँ कौन ऐसा आदमी होगा जो अपनी सलामती नहीं चाहता है.भला कौन जाये अपनी हड्डी पसली तोडवाने.इस बात पर आपको यकीन ना हो तो आप खुद आजमा सकते हैं.कुछ को छोड़ कर बिहार के किसी भी जिला के 40-50 km दूर गाँव चले जाइए.शरीर के सारे पुर्जे खुल जायेंगे.  इतना कुछ झेल ने बाबजुद ग्रामीण इलाकों में इन दिनों कहर टूट पड़ा है.शायद रोड ठीक रहता तो राहत सामग्री पहुँचाने में मदद मिलती. जिले के कई जगह तेज हवा और वर्षा की वजह से पेड़ के उखड़ने व झोपड़ियों के उजड़ने की घटनाओं से सब हलकान महसूस कर रहे है.आवागमन तो बाधित है ही, बिजली आपूर्ति भी प्रभावित हो गई है.”
“वैसे कुछ संगठन और ग्रुप के लोग बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आये हैं इतने मात्र से काम नहीं चलेगा. आपको, हमको और सबको आगे आना होगा और सब मिलकर जो भी मौजूदा व संभावित समस्याएं उनके समाधान के लिए हाथ बंटाना पड़ेगा. कुछ नहीं तो आत्म संतुष्टि के लिए जरुर. साथ ही साथ मदर टेरेसा (जन्म दिन August 26, 1910) को याद करते हुए.”



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