मंगलवार, 30 अगस्त 2016

खेल क्रांति और महिला जागृति का नया दौर

“रियो की रानियों को राष्ट्रपति से खेल रत्न” सचमुच ये बहुत गौरव का क्षण है. मैं समझता हूँ कि ये बहुत बड़ा संकेत है खेल क्रांति के आगाज का. रियो की रानियों ने बता दिया है, सिद्ध कर दिया है कि अब खेल आन्दोलन हो कर रहेगा कियोंकि खेल से जुडी हमारे देश और राज्य में जो भी परिस्थितियां और मानसिकता है उससे हमें आजाद होना होगा.पैसों और संसाधनों की कमी हम कतई नहीं झेल सकते और ना ही खेल से कोई समझौता कर सकते हैं. हमें कितना भी रोकना चाहोगे हम नहीं रुकेंगे.हम जी जान से देश के लिए खेलते रहेंगे और भारत में जो मेडलों का सुखा है, बाढ़ ला देंगे. कुछ ऐसे ही ओजपूर्ण प्रेरणादायी बातें उनके आत्मविश्वास और सफलता से झलकती है.
गत सोमवार को खेल दिवस के अवसर पर माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रीय भवन में चार खिलाडीयों पी वी सिन्धु, साक्षी मलिक,दीपा करमाकर, जीतू राय को देश के सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गाँधी खेलरत्न से सम्मानित किया.  इसके अलावा अर्जुन पुरस्कार,द्रोणाचार्य अवार्ड, राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार और मौलाना अबुल कलाम आजाद ट्रॉफी प्रदान की.
यहाँ गौर करने वाली बातें हैं कि चारों खिलाड़ी जिन्होंने अलग अलग खेल जैसे बैडमिंटन,कुस्ती,जिमनास्टिक,निशानेबाजी में पदक जीत कर हमारे देश का परचम लहराया है. अगर हम इस दशक को महिलाओं का है कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इसकी जागरूकता तो उसी समय से लगातार बढ़ती जा रही थी जिस वक्त डॉ प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनी थीं. पंचायत चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी,खासकर बिहार में छात्राओं को पढाई और खेल में प्रोत्साहन के लिए साइकिल और लैपटॉप वितरण किए गए. जिसके दूरगामी परिणाम को देखते हुए ऐसे कई काम किए गए.मेट्रिक की परीक्षा में छात्रों की अपेक्षा छात्राओं ने उम्मीद से ज्यादा अच्छा अंक प्राप्त किए.राज्य और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई क्षेत्रों में जैसे 18 जून 2016 को IAF प्रथम महिला फाइटर के पद पर अवनी, भावना और मोहना का नियुक्त होना. अगर फिल्मों की बात करें तो अब फ़िल्मकार महिला प्रधान फिल्म निर्माण करने में जोखिम उठाने से नहीं डरते. यही कारण है पिछले कुछ समय से कई फ़िल्में रिलीज़ हुई जो विशेष रूप से मुख्य पात्र के रूप में नायिका हैं. उन फिल्मों की लिस्ट में कुछ नाम इस प्रकार हैं- मेरिकोम, कांची, कहानी, बाजीराव मस्तानी,सुल्तान, दृश्यम,पिकू, NH10, तनु वेड्स मनु, मसान, नीरजा,एंग्री इंडियन गॉडेस और आने वाली फ़िल्में अकिरा और दंगल. ये सभी ऐसी फ़िल्में हैं जिसमें महिलाओं के के किरदार प्रतिनिधित्व का जयघोष करते हैं. चेतन भगत की नई किताब जो आने वाली है वह भी महिला के सशक्तिकरण का नया चहेरा दिखने वाला होगा.
इस लेख के अंत में मैं उन तमाम खेल कोच को सलाम करता हूँ जिन्होंने तमाम कठिनाइयों को कुचलते हुए खिलाड़ियों की एक नई पौध तैयार कर रहे हैं जिसकी हल्की सी कोपलें दिखाई देने लगी है. मुझे अभी भी पुलेला गोपीचंद और पी.वी. सिन्धु का  इंटरव्यू याद है जो 8- 9 माह पहले अखबारों में छपा था.पढ़ कर आश्चर्य और गर्व का अनुभव हुआ था यह जान कर कि वे कितने परिश्रम करते हैं कैसे प्रैक्टिस करते हैं, और उस दौरान किन किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है. उनकी मेहनत रंग लायी फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना बांकी है. और भी कई खेल हैं. जिसमें अधिक से अधिक खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण एवं सुविधाएँ दिए जाने की जरुरत है.

-   --- अभिषेक कुमार



सोमवार, 29 अगस्त 2016

फिल्मों की बातें-मोहेनजोदरो.



मोहेनजोदरो.इस फिल्म के बारें में उसी वक्त कहना चाह रहा था जब देखा था.release के एक दिन बाद ही. पर फुर्सत मिले तब तो. मुझे तो बहुत अच्छी लगी थी. आपको? बहुत दिनों के बाद कोई ऐसी फिल्म देखने को मिला जो एक अलग दुनिया में ले चले. कुछ ऐसी बातों से रूबरू करें ऐसी फिल्म बहुत कम होती है.इस फिल्म हर एक चीज जैसे- कलाकारों का चयन(हृतिक रोसन, पूजा हेगरे),उनकी अदाकारी, डांस और संवाद बहुत ही सुन्दर था.अगर पूजा हेगरे की जगह की फेमस अभिनेत्री को लिया जाता तो शायद उतना इफेक्टिव नहीं लगता जितना एक नए चेहरे की महत्ता लगती है. नायिका की जो गेटअप है कोउस्तुम है वो काफी ध्यान आकर्षित करता है.फिल्म के संगीत और गाने तो बेहद ही रूमानी है. इनके गीतों में एक तरफ उनके उस समय के शहर का गुणगान है, तो दूसरी तरफ सिन्धु नदी की पूजा प्रार्थना की गई है. और एक रोमांटिक गीत भी है जिसे शब्द(बोल) बड़े प्यारे हैं.

पास आके भी क्यों मौन है तू,

ये तो कह दे मेरी कौन है तू.
बोलते हैं नयन मौन हूँ मैं,
अपने नैनों से सुन कौन हूँ मैं.
लोकेशन और साज सज्जा पर काफी काम किया गया है. दरअसल इस फिल्म के निर्देशक आसुतोष गोवरीकर ने बहुत ही रिसर्च कर एपिक-एडवेंचर रोमांटिक फिल्म का रूप दिया है. ये बहुत बड़ी सफलता है जिसे नीरस dacumantary फिल्म जैसा नहीं होने दिया. पर कमाई में ये फिल्म कोई कीर्तिमान स्थापित नहीं कर पाई. पर मेरा ये मानना है कि सिर्फ पैसे से किसी की गुवात्ता मापना ठीक नहीं.  
ये बड़ी फिल्म है.इसका दायरा विशाल है. और इस फिल्म में ar रहमान ने जो संगीत दिया वो अद्भुत है. किसी भी फिल्म की रूह संगीत होती है बैकग्राउंड म्यूजिक होती है. हमारे डेली लाइफ में यही तो कमी रह जाती है की यहाँ कोई बैकग्राउंड म्यूजिक नहीं होता. खैर,
इस फिल्म की कहानी की बात करें तो एक लाइन में ये एक साहसी युवा सरमन की कहानी है जो एक छोटे से गावं अमरी से मोहनजोदड़ो व्यापार करने जाता है. वहां वह लालची और अत्याचारी शासकों के कुकृत्यों से अवगत होता है, जहाँ वो क्रोधित हो जाता है और लौटने का निर्णय करता है पर वही कुछ वैसा ही होता है जो हर एक फिल्म में होता आया है और होता रहेगा, कहने का मतलब आप समझ ही गए होंगे सरमन को एक सुन्दर सी चानी नामक लड़की से प्यार हो जाता है. और वो इस पाने के लिए मोंजा (वहां का होने वाला शासक और चानी का होने वाला पति) से लड़ता है. उस वक्त कहानी और दिलचस्प मोड़ लेलेती है जब सरमन पता चलता है उसके पूर्वज
मोहनजोदड़ो के शासक थे तो ये लड़ाई और बड़ी हो जाती. पूरी जनता का सरमन प्रतिनिधि बन जाता है और वो इस अत्याचारी शासक से उन्हें मुक्ति दिलने का संकल्प लेता है. वही दूसरी ओर एक और प्राकृतिक आपदा का सन्देश मिल जाता है की जो बांध सिन्धु नदी पर सोने के लालच में बनाई गई है वह ध्वस्त होने वाला है.
फिर पूरा शहर खाली कराया गया, नाव का पुल बना कर सारी जनता की रक्षा हुई पर मोहेंन्जोदारो पूरा शहर सदा के लिए जमींदोज हो गया.इस प्रकार मोहें जोदारो सोशल स्ट्रक्चर और सिस्टम, जजमेंट  और रूल्स प्रथा और परंपरा, आस्था और अन्धविश्वाश, साहस और पराक्रम, प्रकृति और जलवायु के बारें में बात करती है. एक और बात जो मुझे निजी तौर पर आकर्षित करती जो स्वप्न और कल्पना की बातें है.बखूबी देखने को मिली.

अगर आपने देखा है तो बहुत अच्छा और नहीं देखा तो जरुर देखिए. और मेरी बातें आपको कैसी लगी जरुर बताएं. 

शनिवार, 27 अगस्त 2016

बाढ़ और सुखाड़ के बीच गुफ्तगू

“बाढ़ के साथ 166 प्रखंडों में सुखाड़” बड़े और मोटे अक्षरों में हिंदुस्तान दैनिक के फर्स्ट पेज पर छपे उक्त हेडिंग लाइन पढ़ कर ना जाने कितने सवाल मन मस्तिष्क में कोंधने लगे.तस्वीरों को देख कर काफी हैरानी हुई. आंकड़ो ने झकझोर कर रख दिया. सोचिए जरा जो इस विकट परिस्तिथियों का सामना कर रहे है उन पर क्या बीतती होगी.सबसे पहले मौजूदा हालात से उपजे कुछ सवाल – बाढ़ और सुखाड़ के लिए कौन जिम्मेवार है? कब निजात पायेगा बिहार ऐसे हालत से? बदतर हालत कब होंगे बेहतर? बाढ़ की विभीषिका और सुखाड़ की समस्या का क्या कोई ठोस समाधान संभव है? क्या ये एक तरह की लापरवाही है या हमारे पास कोई चारा नहीं है आपदाओं को झेलने के सिवा? आपदा प्रबंधन विभाग या उससे जुड़े विभाग के पास कोई योजना है जिससे जनता को राहत मिल सके? या फिर ये हालात सरकार के नाकामयाबी का संकेत है?  ऐसे सवाल किसी को भी हिलाने के, सोचने के लिए पर्याप्त है. आप की क्या राय है?

(आगे पढ़ने से पहले ये मान लें कि आप किसी चाय के ढाबे पर चाय का इंतजार कर रहे है और पास में बैठे एक ग्रुप में गुफ़्तगू चल रही. जिसे आप सहज रूप से सुन पा रहे हैं.)

“भाई! सब लोग पलायन करने के लिए विवश हैं.उनकी जान जोखिम में होने की वजह से वे डरे हुए है.जो कुछ उन्हें अपने बचाव के उपाय सूझ रहे हैं वे कर रहे हैं. अखबारों और सोशल साइट्स पर ऐसे तमाम तस्वीर मिल जायेंगे जो बाढ़- सुखा की विभीषिका को बयां कर रहे हैं. मुझे लगता है बिहार ऐसी विभिषिका झेलने के लिए अभिसप्त तो नहीं.”

“नहीं महाराज. कैसी बात करते हैं. आप द्वापरयुग में तो नहीं जी रहे हैं. दो दी पहले ही जन्माष्टमी मनायी उसी का प्रभाव है आप पर.”

“नहीं.नहीं. आप ही बताए कि ये कैसे हुआ अचानक ?. और सुनकर भी कितना अजीब लगता है. बिहार में बाढ़ भी  और सुखाड़ भी. ये तो वही बात हो गई रात भी है और सूरज भी उगा है. ये भगवान की ही तो लीला है.वे तो कुछ भी कर सकते हैं.”

“कम कम से भगवान पर तो दोष मत दीजिए. ये बाढ़ कि वजह तो पड़ोसी देश नेपाल और पडोशी राज्यों से आये पानी के कारण हुई और कुछ इलाकों में 18 फीसदी कम बारिश होने से ऐसे हालात हुए हैं.”

“ओह. तो ये बात है. मैं तो खामखाँ भगवान को दोष दे रहा था. अच्छा तो ये बताए कि क्या बाढ़ और सुखा की कहानी क्यों दुहराई जा रही है? इसमें किसका दोष है सरकार का या अखवार वालों का?”

“मुझे तो बिल्कुल भी कोई दोषी नज़र नहीं आता. क्युकि सरकार की घोषणा, अनुशंसा,रिपोर्ट,सर्वेक्षण,परिचर्चा,बैठक, प्रस्ताव,ज्ञापन, निर्देशन आदि इत्यादि तो कर ही रही है.हमारे अफसर जमीनी करवाई को छोड़ कर कागज़ी घोड़े दौड़ाने के अभ्यस्त तो हैं ही.अखवार वाले का तो कोई दोष नहीं,ये तो पढ़ने वाले के यादास्त का मामला है.वे जो पढ़ते हैं और शायद सोचते भी हैं कि ये तो पिछले साल वाली घटनाओं का ब्यौरा है सिर्फ डेट चेंज है.”

“आपने ठीक कहा. देखिए आपदा प्रबंधन की बैठक हुई है.साथ ही बिहार ने केंद्र सरकार से सहायता के लिए भी गुहार लगाई है.”

“हाँ. ठीक है पर एक बात समझ में नहीं आता कि हम जानते हैं बाढ़ और सुखाड़ की समस्या साल दर साल भयावह रूप धारण कर रही है. खास कर धान रोपाई के समय. कहीं फसल डूब जाती है तो कहीं सुख जाती है.अब तो जान पर भी आफत है. आखिर साल भर जनता के प्रतिनिधि mla और mp व प्रशासन क्या करती है?क्या उन्हें पता नहीं चलता या खबर लेने की कोशिश नहीं करते कि कौन सा पुल बांध कमजोर है? कहाँ का रेलखंड क्षतिग्रस्त है या होने वाला है.मौसम की भविष्यवाणी के लिए कोई जागरूक है भी की सब राम भरोसे?”

“दरअसल बात है कि हमारी आदत है कि जब  प्यास लगेगा तभी कुआँ खोदेंगे. और हाँ अब तो और आफत है खोदने से भी कहाँ मिलेगा एक तरफ ग्लोबल वार्मिग बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ जल के लेयर्स घटते जा रहे हैं.”

(अब आपके सामने चाय प्रस्तुत है. चाय के मजे के साथ उनकी बातों पर गौर करना ना भूलें)

“भाई! जो हुआ सो हुआ. अब जो हो रहा है हमारा ध्यान उसपर होना चाहिए. हमें सोचना चाहिए कि किस प्रकार हम बाढ़ और सुखा पीड़ितों की मदद कर सकते है?सुखा से निपटने के लिए तो लम्बी अवधि के कार्यक्रम बनाने की जरुरत है. किन्तु बाढ़ के कारण जो समस्या पैदा हुई है उसे तत्काल समाधान करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो जान माल को काफ़ी नुकसान होगा.”

“नुकसान! जरुर होगा और होकर रहेगा.ये होना ही चाहिए और जो हो रहा है वो पहले से सुनिश्चित है.”

“आप कैसी बात कर रहे हैं.आप को उन पीड़ितों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं.”

“हाँ.मुझे कोई हमदर्दी नहीं.जरा आप ही बताए कि आप कितने सहिष्णु हैं? आप कितने दयावान हैं ?”

“ये क्या.भाई! आप तो मुझसे लड़ाई करने लगे.”

“नहीं, नहीं, भाई साब! मैं आप से क्यों लडूंगा. मैं तो दरअसल ये कहना चाह रहा हूँ कि जब हम लोगों ने वृक्षों और जलवायु के प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई तो प्रकृति को हमलोगों के प्रति कितनी हमदर्दी होगी.जब उसपर हमने अत्याचार किया है तो वह हमपर कहर बरसायेगी ही.कभी बाढ़ का रूप लेकर.कभी सुखा की विभीषिका बनकर.”

“हम्म्म्म. हमें जो है ना. समाज में एक नै क्रांति लानी होगी. जलवायु परिवर्तन के प्रति हम सभी लोगों को जागरूक होना होगा.”

“हाँ. हुई थी ना दो दिवसीय बैठक.भारतीय कृषि अनुसन्धान परिसद के संरक्षण में.”

(शायद आपकी चाय ख़त्म हो गई होगी और जाने को सोच रहे होगें पर बात तो पूरी सुन लीजिए)

“मत कीजिए चर्चा इस बारें में. चर्चा- परिचर्चा करते करते टीवी वालों ने दिमाग का दही कर दिया है. मैं पुछता हूँ कहाँ थे भाई अबतक. क्या कर रहे थे.कभी आप सबने जमीनी स्तर पर आकर देखा सुना कि वास्तव में क्या परेशानी है.बहुत आसान है ac हॉल में जो जी आये बोल दिया.हंशी मजाक और बेकार बहस पर जाया करना. बहुत आसान है. सिंचाई, बिज, उर्बरक आदि मामले में किसानों को क्या क्या समस्या झेलनी पड़ती है.इन बातो में कहाँ किसी को रूचि है?,उन्हें इंटरेस्ट तो अपनी झूठी प्रसंशा करने में होता है?. उन्हें अपने ऑफिस की राजनीति में ज्यादा मजा आता है.वो परेशान हैं कि उन्हें क्यों पदोन्नति चाहिए या फिर किसानों के समस्या को किस तरह हल किया जाये. खैर वो प्लाट पर जाने से तो शायद इसलिए भी डरते हैं कि गाँव जाने वाले जितने भी रास्ते है वहां रास्ते तय नहीं करने होते है बल्कि गड्ढे और खाई से गुजरना पड़ता है.जिसे वे झेलना नहीं चाहते.तो जाएँ भी तो कैसे?”
“मैं इस बात से सहमत हूँ. यहाँ कौन ऐसा आदमी होगा जो अपनी सलामती नहीं चाहता है.भला कौन जाये अपनी हड्डी पसली तोडवाने.इस बात पर आपको यकीन ना हो तो आप खुद आजमा सकते हैं.कुछ को छोड़ कर बिहार के किसी भी जिला के 40-50 km दूर गाँव चले जाइए.शरीर के सारे पुर्जे खुल जायेंगे.  इतना कुछ झेल ने बाबजुद ग्रामीण इलाकों में इन दिनों कहर टूट पड़ा है.शायद रोड ठीक रहता तो राहत सामग्री पहुँचाने में मदद मिलती. जिले के कई जगह तेज हवा और वर्षा की वजह से पेड़ के उखड़ने व झोपड़ियों के उजड़ने की घटनाओं से सब हलकान महसूस कर रहे है.आवागमन तो बाधित है ही, बिजली आपूर्ति भी प्रभावित हो गई है.”
“वैसे कुछ संगठन और ग्रुप के लोग बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए आगे आये हैं इतने मात्र से काम नहीं चलेगा. आपको, हमको और सबको आगे आना होगा और सब मिलकर जो भी मौजूदा व संभावित समस्याएं उनके समाधान के लिए हाथ बंटाना पड़ेगा. कुछ नहीं तो आत्म संतुष्टि के लिए जरुर. साथ ही साथ मदर टेरेसा (जन्म दिन August 26, 1910) को याद करते हुए.”



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C-7a: Pedagogy of social science [ B.Ed First Year ]

1. माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आपके द्वारा चुने गए विषय का क्षेत्र क्या है ? उदाहरण सहित व्याख्या करें। माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए हम...