रविवार, 10 अप्रैल 2016

पनामा लिक्स के बहाने अपनी बात

पनामा लिक्स ने जो काले धन का सनसनीखेज खुलासा किया है. इसमें जो भी नाम सामने आये हैं वे बेहद चौकाने वाले है.इससे तो यही स्पष्ट होता है.जितने लोग पैसों के ढेर पर हैं, वे कहीं  ना कहीं धोखाधडी – जालसाजी और दूसरे गलत तरीके से आम आदमी का हक़ मरते रहे है. उनके खून चूसते है. आम आदमी ठीक इसके विपरीत व्यवहार कर रहे है. वे उन  तमाम शक्सियत को शोहरतों के सिंहासन पर बैठे देखना चाहते है. वे उनसे प्यार और सम्मान करते हैं, क्योंकि आम लोगों को शायद पता नहीं चलता की वास्तिविकता क्या है,हमारे सिस्टम में क्या हो रहा? इसके कई कारण हो सकते हैं. बहुत सारे लोगो को लोकतंत्र या राजनीति में जागरूकता की कमी है. जागरूकता के कमी दो कारण है.पहला जो लोग अशिक्षित है, वे जानने-समझने की चेष्टा नहीं करते है, वे बस दो वक्त की रोजी-रोटी कमाने तक ही सोच सोच पाते है. वे जानते है कि हम गरीब है और गरीब ही रहेंगे. दूसरा जों वर्ग पढ़ा-लिखा है, वो भी भली-भांति जानते हैं लोकतंत्र में कहाँ, क्या हो रहा है,कहाँ धांधली हो रही है. पर ये वर्ग ना मुंह खोलते हैं,ना सामने आते हैं. रेडियो, टीवी देख लिए बस काम ख़तम. ऐसे लोग ये सोचकर चलते है,कि हमारे सोचने और कहने पर क्या फर्क पड़ता है, हम वोट भी जिसे देंगे उसकी तो सरकार बनने वाली नहीं क्योंकि पढ़े-लिखे और जागरूक लोगों से कही अधिक जनसँख्या गरीब और अशिक्षितों की है. जो पिछड़े लोग हैं,जो जाती-पति के नाम पर बाँट दिए गए है.वे बेबस है,उनलोगों को वोट देनेके लिए जो अपनी प्रसिद्धि का झूठे प्रचार का सहारा  लिया. पिछड़े तबके जो राजनीति के दांव-पेंच से कोशो दूर हैं,वे नहीं जानते की ये हवा स्वच्छ छवि वालों ने फैलाई है, इस षड्यंत्र के पीछे छिपे जब अपने नेताओं के बारे में उन्हें ठीक से पता नहीं है,कि वे कितना पढ़े लिखे हैं, कितनी बार जेल गए हैं, उनपर कितने मुकदमे चल रहे हैं, उन्होंने क्या-क्या समाज-सेवा किए हैं ?
       पनामा लिक्स क्या है? इस बारे में ज्यादातर लोगों को क्या और कितना मालूम होगा?वैसे भी हमें टीवी
चैनल वालों की फिजूल की बहस सुनने से फुरसत मिले, तब तो वे ज्वलंत मुद्दा उठाएँगे. कभी-कभी गंभीर विषयों की चर्चा सामने होती भी तो ना जाने कब ट्रैक चेंज हो जाये, उन महाराथियो का पता नहीं. अंततोगत्वा समय बर्बादी के अलावे परिणाम कुछ भी नहीं निकलता है. अब हममें से ज्यादातर लोग जो कभी-कभी
अख़बार पलट लेते हैं, तो ना जाने कितने सारे सवाल सिर पार मंडराने लगते है? जैसे क्या पनामा लिक्स ने जो दावे किये है,क्या पूरी तरह वे सच हैं ? पनामा लिक्स कौन सी संस्थान के दवरा संचालित होता है, इस अनुसन्धान में कौन-कौन से लोग जुड़े हुए हैं. ऐसे सवाल इसलिए नहीं कि हमें उनके दावे पर शक है.इसलिए अनुसन्धान के बाद उन्हें धन्यवाद दिया जा सके और उन्हें और इसी तरह के अनुसधान भविष्य में भी जारी रखे. उन्हें इस महान कार्य के लिए सभी आम जनता की तरफ से आभार प्रकट किया जाये.
     मान लिया जाये कि पनामा लिक्स के दावे झूठे हुए तो भी कोई हानि की गुंजाइश नहीं. क्योंकि इसी बहाने तो कम से कम हमारे देश में काले धन व भ्रस्टाचार का दिखावी अनुसन्धान तो होगा. कुछ लापरवाही और गैरजिम्मेदारी के हालत में सजगता और जागरूकता लाने में मदद तो मिलेगे ..
         क्या हमारे देश में कभी काले धन वापस आ पाएंगे? क्या अभी जो भ्रष्टाचार हो रहे हैं, जो आम लोगों का नुकसान हो रहा है,क्या उसका भरपाई कभी हो पायगी. बीच में तो लोकपाल को लेकर भी काफी हो-हल्ला हुआ था. इस हल्ले में कुछ ने अपना पल्ला झाड़ लिया,तो किसी ने शोहरत बटोर लिया. पर आम जनता वहीँ की वहीँ. ना तो विकास हुआ ना काला धन वापस. ऊपर रोज़ की मारा-मारी, कही वे पुल गिरने से दब रहे हैं, तो कहीं घरों और फसलों में आग लगने से मर रहे हैं.
    आखिर कहाँ हमारी व्यवस्था में कमी है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? विकसित राष्ट्र का जो सपने सदियों से देखते आये है,क्या हम उसके लिए तैयार है? क्या कोई हमने रोडमैप बनाया है,कोई ऐसी व्यवस्था है जो ट्रांसपरेंसी को कायम रख पाए? शायद इसका जवाब नहीं! इन सबके  मूल में एक ही चीज़ है, वह है स्वच्छ लीडर और  स्पस्ट लक्ष्य की कमी .जितनी जल्दी हो सके हम सही नेता चुने या सही नेता बने .......!


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