रविवार, 10 अप्रैल 2016

बिहार में शराब बन्दी पर चर्चा

दो हफ्ते से शराब बन्दी को लेकर अखबार,टीवीचैनल और सोशल साईट पर जोरो से चर्चा हो रही है. गल्ली-मुहल्ला ,चौक-चौराहा, सड़क,संसद ,गाँव,शहर ,बस्ती ,कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ शराब बन्दी की बातें नहीं हो रही है. जितने लोग उतनी तरह की बातें और हो भी क्यों ना...! कुछ बातें तो होनी ही थीं और फिर होती ही रहती है.यहाँ तो गप्पे हो रही है .
   कई तरह की बातें,कहीं गरम कहीं नरम, तो कोई पॉजिटिव तो कोई नकारात्मक तर्क दिए जा रहा हैं.कोई शराब बन्दी से खुश है, तो कोई बौखलाए हुए हैं. कोई सरकार की तारीफ में मगन है, तो कोई सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहा है. जो भी हो, उन्हें दो भागो में बांट सकते हैं. शराब बन्दी के पहले की बाते और शराब बन्दी का कानून लागू होने के बाद की बातें. इन तमाम तरह की खबरों में बातें कम शिकायतें और शरारतें ज्यादा उभर कर सामने आ रहे हैं. मैं शिकायतओं और शरारतों के मुगलातों से हटकर शराब बन्दी होने से लोगो पर क्या असर हुआ है. उन पर बात करना चाहता हूँ क्योंकि ये ऐसा असर है, जिसकी कल्पनाएँ शायद सरकार चलाने वालों ने भी नहीं सोची होगी.
      हर दिन सुनने को मिल रहा है,फलां जगह शराब पीने से दो युवक की मौत हो गई. शराब की कमी कारण कई शराबियों के हाथ-पैर सुन्न हो गए हैं. ना जाने कितने शराब-प्रेमियों को पागलखानों में भर्ती करवाना पड़ रहा है. हद तो तब हो गई जब मैंने ये सुना की शराब के कुछ शौक़ीन इस नशे के को खोज रहे हैं. जो इनकी नशे को पूरा करे .इस खोज में वो कभी फिनायल ,कभी साबुन तो कभी पोलिश क्रीम को अपना निशाना बनाया,....!पर इन्हें जब संतुष्टि नहीं मिली तो बाबा रामदेव प्रोडक्ट्स स्टोर पर कोई नशीली हर्बल शैम्पू की डिमांड कर डाला. शायद वे अब भी उसी पूरक के अनुसंधान में लगे होंगे. शायद अपने सुना होगा की “ना मामू से काना मामू अच्छा” . इसी सोच के तहत ताड़ी बेचने वालो के पास शराबीयों की संख्या बढ़ गई है. भूल बस मीडिया वाले भी वहाँ पहुँच गए और अगले दिन ही ताड़ी वालों के नाम वायरल हो गया.परिणाम स्वरुप ताड़ी स्टॉक पर भी ताला लटक गया.
           अब जरा आइए सोशल साईट पर,पहले वातसप्प पर चलते है....,यहाँ कई तरह के आपको विडियो ,चुटकुले मिल जांयेंगे .जिससे शराब बन्दी किस तरह से सबके सिर पर हावी है, पता चल जायेगा. कई ऐसे फोटो भी वायरल है,जंहा रोड-रोलर से शराब से भरी बोतल को नष्ट किया जा रहे हैं. शराब की बोतल की अर्थी निकली जा रही है,पर यह जानकर बड़ी हैरानी हुई कि शराब बेचने वाले whatsapp के जरिये शराब ज्यादा कीमत पर होम डिलीवरी की सेवा उपलब्ध करने के तैयारी में लगे हुए हैं. मनुष्य की प्रकृति रही है कि वह नकारात्मक चीजों की ओर जल्दी खिंचा चला जाता है.जिस चीजों की उसे मनाही के आदेश या सलाह दिए जाए वह उसी चीजों को करने की जिद करता है. अब इस जड़ में जीत किसकी होती है..?ये देखने वाली बात है. शराबीयों की या प्रशासन की! वैसे पिछले दिनों ही प्रशासन पर ऊँगली उठाई गए थे की प्रशासन के लोग भी शराब पीने के आदी होते है.तो दुसरे दिन ही पूरे प्रशासन और पुलिस महकमे में शराब ना पीने का संकल्प लेकर अपनी स्वच्छ निष्ठा का प्रमाण प्रस्तुत किया. किन्तु डर तो ये अब भी है की जैसे पिज़्ज़ा बॉय होम डिलीवरी करने में एक्सपर्ट होते हैं  ,कहीं उसी तरह शराब डिलीवरी करने वाले भी ना बन जाये क्योंकि इन सब लडकों को पता है कि ट्रैफिक रूल ब्रेक करने की समस्या का समाधान 10 से100 रुपया में हो जाता है. वैसे ही शराब ढ़ोने के लिए ट्रैफिक पुलिस के जेब में छोटा बोतल डाल दिया तो समझो सारी मुश्किलों से छुटकारा जा.फेसबुक ट्विटर पर भी बहुत सारे प्रशंसा के स्वर गूंज रहे हैं. शराब बन्दी को तो कोई अनुकरणीय बता रहा है. कोई आम जनता को सलाम कर रहा है तो कोई महिलाओं के जोर-शोर से इस आन्दोलन में जुटने के लिए आभार व्यक्त कर रहा है.
        पिछले शाम को मैं मार्केट में कुछ सामान खरीदने के लिए मोलभाव कर रहा था ,कि एक मित्र से मुलाकात हो गया, उन्होंने मुझे छेड़ते हुए कहा कि सब तुम ही खरीद लोगे कि मेरे लिए भी खुछ रहने दोगे.मैं तुरंत ही उनके ओर मुखातिब हो कर हँसते हुए बोला की महाराज...!जेब में पैसे रहेंगे तब तो खरीदूंगा ना, मार्केट तो मोल-भाव के शौक को पूरा करने चला आता हूँ. फिर दो तीन लोग और मिल गए और शुरू हो गए शराब बन्दी को लेकर खींचातानी .उन्हीं में से एक भाई साहब, वेश-भूषा से पढ़े-लिखे और शक्ल से होशियार भी दिख रहे थे. उनका कहना था की जो आप लोग शराब बन्दी को लेकर इतना शोर मचा रहे हैं,ये कुछ नहीं है. सरकार जनता के आँखों में धूल झोकने का काम कर रही है. ऐसे कई तरह के कानून आये और कई गए, कोई पालन होता है क्या? “चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात” बस दो दिन रुक और जायिए. सब दुकान खुल जाएँगे. तब सरकार के नाम का भजन जपते रहिएगा.बीच में किसी ने उन्हें टोकते हुए कहा, क्या सरकार को शराब से फायदा नहीं पहुँचता था? फिर दुसरे प्रतिद्वंदी ने मोर्चा सम्हाला. महाराज...,शराब ही क्यों, जितनी भी नशीली चीज़ हैं, तम्बाकू, खैनी ,गुटखा सब पर जो टैक्स आता है, उसका आप अनुमान भी नहीं लगा सकते है, और बात करते हैं.....! सरकार सिर्फ ढोंग रचा रही है,इस ढोंग का पर्दाफाश होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. इधर ही देख लीजिए ऐलान किया गया था, कि  शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दिया गया है, इसका कानून भी पास हो गया है,लेकिन दूसरे ही दिन शराब विक्रताओ की संविदा पर बहाली की नोटिस निकल आया. इतनी बातें सुनते ही दुसरे लोग भी फार्म में आ गए और शुरू हो गए. देखिए...! देखिए जरा कोर्ट कहचरी में जाकर क्या हालत है. सरकार उस तरफ ध्यान तक नहीं देंगी, जहाँ हजारो-लाखो केस बीस सालों से अधर में लटके हैं. सरकार अधूरे पुल-पुलिया,सड़क,रेल जैसे महत्वपूर्ण काम पर ध्यान नहीं देंगी. हजारो-हज़ार मजदूर का पलायन हो रहा है. दुसरे राज्य जाने की विवसता सरकार के समझ से परे है. कोई स्कूल, कॉलेज की स्थिति ठीक नहीं है, सारी शिक्षा व्यवस्था चौपट है? सरकार को तो बस इस तरह के शराब बन्दी से मिल रही प्रशंसा से फूली नहीं शमां रही है. केंद्र सरकार के आरोप प्रत्यारोप से लगी अपनी मुस्कराते हुऐ तस्वीरों को अखबारों में देखकर मगन हो रहे है.इस आत्ममुग्धता से किसी भी सरकार को बचकर रहना चाहिए! तीसरे भाई साहब से भी नहीं रहा गया. वे भी अपनी लम्बे-चौरे,कद-काठी और एक्स्ट्रा बजन वाले शरीर को लिए हांफते हुए स्वर में बड़ी मजबूत किन्तु विरोध पूर्ण बातें कहीं. उनका कहना था, ये चौक देख रहे है ना, पहले यहाँ देर रात तक महफिल लगी रहती थी. लोगों का यंहा आना-जाना लगा रहता था.  किन्तु अब 6-7 बजते ही सारा बाज़ार वीरान-सा लगने लगता है. पहले मार्केट में चहल-पहल बनी रहती थी. बाज़ार में ऐसा लगता है,की मंदी छा गई है.मीट-मछली की दुकान हो या होटल सब मजे में थे. बिक्री सीधे डाउन हो गई. झाल-मुढ़ी ,कचहरी-छोले वाले से पूछो, तो कहेगा की शराब बन्दी ने वाट लगा दी है, भाई मेरे ....!अब बिसलेरी या केनले जैसी ब्रांडेड वाटर की खपत काम हो गई है. भाई शराब के साथ चखना- पानी चाहिए की नहीं...! हम तो कहते है की जिसको पीना है वो पिए जिसको नहीं पीना है वो नहीं पिए इसमें कम से कम सरकार को तो नहीं आना चाहिए था.....!
   इतने में माहौल इतना गरम हो चूका था की मैंने टॉपिक चेंज करने की चेष्टा की किन्तु असफल रहा. मैंने भीषण गरमी के इस मौसम में कहा, बिजली की कटौती कब तक जरी रहेगी. दूसरे भाई ने चुटकी लेते हुए कहा जब तक बिहार में बिजली की चोरी जारी रहेगी .पर वो भाई साहब शराब बन्दी को ही तुल दिए जा रहे थे.रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.
    एक मिनट भाई साहब! मैंने अपनी जेब स्मार्ट-फ़ोन निकलते हुए हेलो कहा. उन्होंने कहा, कॉल है! बीबी का होगा!(हँसते हुए).चलता हूँ भाई मिलते है अगले दिन कहकर मैं वहाँ से खिसक गया. पर जैसे ही फ़ोन का स्क्रीन ऑन किया तो मुस्कराए बिना ना रह सका. वाटसप पर जो शराब बन्दी का एक मेसेज शो कर रहा था.

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पनामा लिक्स के बहाने अपनी बात

पनामा लिक्स ने जो काले धन का सनसनीखेज खुलासा किया है. इसमें जो भी नाम सामने आये हैं वे बेहद चौकाने वाले है.इससे तो यही स्पष्ट होता है.जितने लोग पैसों के ढेर पर हैं, वे कहीं  ना कहीं धोखाधडी – जालसाजी और दूसरे गलत तरीके से आम आदमी का हक़ मरते रहे है. उनके खून चूसते है. आम आदमी ठीक इसके विपरीत व्यवहार कर रहे है. वे उन  तमाम शक्सियत को शोहरतों के सिंहासन पर बैठे देखना चाहते है. वे उनसे प्यार और सम्मान करते हैं, क्योंकि आम लोगों को शायद पता नहीं चलता की वास्तिविकता क्या है,हमारे सिस्टम में क्या हो रहा? इसके कई कारण हो सकते हैं. बहुत सारे लोगो को लोकतंत्र या राजनीति में जागरूकता की कमी है. जागरूकता के कमी दो कारण है.पहला जो लोग अशिक्षित है, वे जानने-समझने की चेष्टा नहीं करते है, वे बस दो वक्त की रोजी-रोटी कमाने तक ही सोच सोच पाते है. वे जानते है कि हम गरीब है और गरीब ही रहेंगे. दूसरा जों वर्ग पढ़ा-लिखा है, वो भी भली-भांति जानते हैं लोकतंत्र में कहाँ, क्या हो रहा है,कहाँ धांधली हो रही है. पर ये वर्ग ना मुंह खोलते हैं,ना सामने आते हैं. रेडियो, टीवी देख लिए बस काम ख़तम. ऐसे लोग ये सोचकर चलते है,कि हमारे सोचने और कहने पर क्या फर्क पड़ता है, हम वोट भी जिसे देंगे उसकी तो सरकार बनने वाली नहीं क्योंकि पढ़े-लिखे और जागरूक लोगों से कही अधिक जनसँख्या गरीब और अशिक्षितों की है. जो पिछड़े लोग हैं,जो जाती-पति के नाम पर बाँट दिए गए है.वे बेबस है,उनलोगों को वोट देनेके लिए जो अपनी प्रसिद्धि का झूठे प्रचार का सहारा  लिया. पिछड़े तबके जो राजनीति के दांव-पेंच से कोशो दूर हैं,वे नहीं जानते की ये हवा स्वच्छ छवि वालों ने फैलाई है, इस षड्यंत्र के पीछे छिपे जब अपने नेताओं के बारे में उन्हें ठीक से पता नहीं है,कि वे कितना पढ़े लिखे हैं, कितनी बार जेल गए हैं, उनपर कितने मुकदमे चल रहे हैं, उन्होंने क्या-क्या समाज-सेवा किए हैं ?
       पनामा लिक्स क्या है? इस बारे में ज्यादातर लोगों को क्या और कितना मालूम होगा?वैसे भी हमें टीवी
चैनल वालों की फिजूल की बहस सुनने से फुरसत मिले, तब तो वे ज्वलंत मुद्दा उठाएँगे. कभी-कभी गंभीर विषयों की चर्चा सामने होती भी तो ना जाने कब ट्रैक चेंज हो जाये, उन महाराथियो का पता नहीं. अंततोगत्वा समय बर्बादी के अलावे परिणाम कुछ भी नहीं निकलता है. अब हममें से ज्यादातर लोग जो कभी-कभी
अख़बार पलट लेते हैं, तो ना जाने कितने सारे सवाल सिर पार मंडराने लगते है? जैसे क्या पनामा लिक्स ने जो दावे किये है,क्या पूरी तरह वे सच हैं ? पनामा लिक्स कौन सी संस्थान के दवरा संचालित होता है, इस अनुसन्धान में कौन-कौन से लोग जुड़े हुए हैं. ऐसे सवाल इसलिए नहीं कि हमें उनके दावे पर शक है.इसलिए अनुसन्धान के बाद उन्हें धन्यवाद दिया जा सके और उन्हें और इसी तरह के अनुसधान भविष्य में भी जारी रखे. उन्हें इस महान कार्य के लिए सभी आम जनता की तरफ से आभार प्रकट किया जाये.
     मान लिया जाये कि पनामा लिक्स के दावे झूठे हुए तो भी कोई हानि की गुंजाइश नहीं. क्योंकि इसी बहाने तो कम से कम हमारे देश में काले धन व भ्रस्टाचार का दिखावी अनुसन्धान तो होगा. कुछ लापरवाही और गैरजिम्मेदारी के हालत में सजगता और जागरूकता लाने में मदद तो मिलेगे ..
         क्या हमारे देश में कभी काले धन वापस आ पाएंगे? क्या अभी जो भ्रष्टाचार हो रहे हैं, जो आम लोगों का नुकसान हो रहा है,क्या उसका भरपाई कभी हो पायगी. बीच में तो लोकपाल को लेकर भी काफी हो-हल्ला हुआ था. इस हल्ले में कुछ ने अपना पल्ला झाड़ लिया,तो किसी ने शोहरत बटोर लिया. पर आम जनता वहीँ की वहीँ. ना तो विकास हुआ ना काला धन वापस. ऊपर रोज़ की मारा-मारी, कही वे पुल गिरने से दब रहे हैं, तो कहीं घरों और फसलों में आग लगने से मर रहे हैं.
    आखिर कहाँ हमारी व्यवस्था में कमी है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? विकसित राष्ट्र का जो सपने सदियों से देखते आये है,क्या हम उसके लिए तैयार है? क्या कोई हमने रोडमैप बनाया है,कोई ऐसी व्यवस्था है जो ट्रांसपरेंसी को कायम रख पाए? शायद इसका जवाब नहीं! इन सबके  मूल में एक ही चीज़ है, वह है स्वच्छ लीडर और  स्पस्ट लक्ष्य की कमी .जितनी जल्दी हो सके हम सही नेता चुने या सही नेता बने .......!


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C-7a: Pedagogy of social science [ B.Ed First Year ]

1. माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आपके द्वारा चुने गए विषय का क्षेत्र क्या है ? उदाहरण सहित व्याख्या करें। माध्यमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए हम...