टाइगर हिल की महफ़िल
गहरा
नीला आसमान,
लहरा
रहा जैसे आँचल .
तारा
जो टिमटिमा रहा,
लग
रहा और भी करीब आ रहा.
स्प्रिंगनुमा
ये रास्ते,
कहते
जिओ हँसते- हँसते .
गम
का ना हो कोई पता,
प्रकृति
से प्रेम करके तो देख ले.
इन
वादियों की हवाओं में,
हो
जा तू कहीं लापता.
ये
टाइगर हिल,
जहाँ
लगी है महफ़िल.
अब
मिलने ही वाली है मंजिल.
जिसके
लिए की गई,
ये
यात्रा मुश्किल.
क्षितिज
पर खिचीं हुई,
लाल
लकीर,
रौशनी
जिसकी और तेज,
हो
रही है.
वो
कलाकार है या जादूगर,
जो
भी हो;
है
वो बड़ा माहिर.
लग
रहा जैसे,
आधी
अँगूठी रखी हो.
और
बीच का नगीना,
चमक
रहा.
है
सामने कंचनजंघा,
ये
पर्वत विशाल.
अभी
सफेद चादर ओढ़े था.
जो
कुछ ही पल में,
हो
गया लाल.
दिव्य, औलोकिक,
दृश्य
है ये.
परमात्मा
का स्वरूप,
अदृश्य
है ये.
शायद
स्वर्ग में,
ऐसी
ही सभा होती होगी.
जैसे
पर्वतों की श्रृंखलाएं,
चारों
ओर फैली हुई.
बीच
में बादलों का,
बना
हुआ है फर्श.
जो
रुई के अम्बार जैसा,
दिख
रहा.
या
धुआं फिघलता जा रहा.
ये
स्वर्गिक वातावरण,
दुर्लभ
हैं ऐसे क्षण.
सूरज
को उगते देखा है,
पर
सूर्योदय का किया ना कभी,
ऐसा
दर्शन.
जैसे-
जैसे सूर्य किरणें,
फ़ैल
रही है.
रंग
और रूप दोनों,
बदल
रही है.
इस
बदलाव से, पर्वतों की तस्वीर;
और
उभरती जा रही .
यहाँ
आकर लगा कि,
मै
जी गया.
स्वप्न
और हकीकत का भेद,
मन
से मिट सा गया.
जो
आज मैंने इस दृश्य को,
हृदयंगम
कर पाया.
*****
-अभिषेक कुमार
Email-abhinandan246@gmail.com
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