दौड़िए
क्योंकि यही एक विकल्प है।
“ दौड़ता हुआ घोड़ा और चलता हुआ आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता ’’ आपने कई बार सुना होगा । आइए इसे थोड़ा और सही तरीके से कहते हैं। “ घोड़े की तरह दौड़ता हुआ आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता। ”
दौड़ना ही जीवन
है। दौड़ना यानि गतिमान रहना। गति है , मोशन है तभी तक जीवन है। ठहर गए तो मृत्यु है। जब तक हमारे तन में खून दौड़ रहा है
सांसें आ-जा रहीं हैं। तभी
तक आप जिंदा हैं। इसलिए जिंदा रहना है तो दौड़िए। स्वस्थ रहना है तो दौड़िए। अमीर बनना है तो दौड़िए। स्वास्थ्य और समय, दोनों हमारे लिए धन के समान है,या कहें धन से कहीं ज्यादा मूल्यवान है। एक व्यक्ति जो
दौड़ता है तो समझिए वह पैसे कमा रहा है क्योंकि उसके पैसे, जो दवा पर खर्च हो रहे थे; वह पैसा अब बच रहा है। दौड़ने से, हमारी कार्यक्षमता और सोचने की क्षमता का अद्भुत विकास
होता है। चाहे कोई भी क्षेत्र हो, हम जीवन में तभी सफल हो सकते हैं; जब हम शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हों। हम जीवन का वास्तविक आनंद तभी ले सकते हैं जब
तक कि हमारा तन और मन दोनों स्वस्थ हों।
आधुनिक कार्य शैली
और डेली रूटीन ने हमें बुरी तरह से प्रभावित किया । दूषित वातावरण और मिलावटी /
प्लास्टिक युक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करने से प्रतिदिन हम इनके दुष्परिणाम से
जूझते जा रहे हैं। सारा दिन हम बैठे हुए बिता देते हैं। ऐसे हालात में हर दूसरा
व्यक्ति मोटापे का शिकार होता जा रहा है। मोटापा सभी रोगों कि जड़ है। मोटापा से ही
सभी खतरनाक बीमारियों को आमंत्रण मिलता है जैसे डाईबीटीज़, ब्लड–प्रेशर, हार्ट अटेक, ब्रेन हमरेज, मिर्गी, हड्डी व जोड़ों में दर्द आदि।
कहा जाता है
हमारा शरीर मंदिर के समान है किन्तु अब हमारा शरीर बीमारियों का घर के समान हो गया
है। ऐसे घर को खंडहर में तब्दील होने में देर नहीं लगते हैं। अतः सतर्क हो जायें।
बस ऐसा समझिए कि आपने दौड़ना शुरू नहीं किया तो मौत, आप का शिकार कर लेगी। या फिर शोले फिल्म का वो सीन याद करें। जिसमें गब्बर के हाथों की बन्दूक चल जाती है
जैसे ही बसंती के कदम रुकते है। बीमारियाँ भी इसी ताक में रहती हैं कि हम गलती
करें और उन्हें अटैक करने का मौका मिले। अगर आप इन बातों को नहीं समझ रहे तो फिर
बस इतना जान लिजिए कि आप बीमारियों के चंगुल से कभी नहीं निकल पाएंगे। अगर आपने
दौड़ना शुरू नहीं किया तो यदा कदा हीनता और मज़ाक का सामना करना पड़ सकता है। अगर आपने
दौड़ना शुरू नहीं किया तो आपके सपने, आपके लक्ष्य कभी पूरे नहीं होंगे। कामयाबी तभी आपके पास
आती जब आप में आकर्षण हों। आज का युग तीव्र प्रतियोगिता का युग है। जहां रफ्तार ही
मायने रखता है। कामयाबी चाहिए तो दौड़िए। कहीं आप पीछे ना रह जायें, इसलिए दौड़िए। स्वयं से प्यार करते हैं तो दौड़िए। स्वयं का जानना है तो
दौड़िए । स्वयं को जानना चाहते हैं तो दौड़िए। स्वयं को जीताना चाहते हैं तो दौड़िए।
दौड़ना एक मंत्र है जिसकी पुनरुक्ति से आप लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। दौड़ना
ही जीवन लक्ष्य है। यह संघर्ष को
पूर्ण रूप से परिभाषित करने में सक्षम है। दौड़ना ही खेल है। दौड़ना ही संस्कृति है। दौड़ना ही वह उपाय है जिससे हम खुद को, समाज को और विश्व को बचा सकते
हैं।
आज नदियाँ, पर्वत, जंगल, वायु सारे संसाधन अपने मूल
रूप से परिवर्तित/ विलुप्त/
बर्बाद और बेकार हो रहे हैं। अगर हम सब प्रतिदिन
मात्र एक आध घंटे दौड़ें तो सब कुछ बचा सकते हैं। दौड़कर हम पूरी मानवता को महान संदेश दे सकते हैं। हम भाई-चारा और एक स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा दे सकते हैं। हम स्वयं को ऊपर उठा सकते हैं, चाहे हम किसी भी समस्या से घिरे हों। चाहे हमारी आर्थिक, भौगोलिक और बुनियादी चीजें असमान हों। हम दौड़कर अपने साथियों, माताओं, बहनों एवं तमाम
शहर वासियों को जागरूक कर सकते हैं। बस मौका मिले तो चूकिए मत। नींद खुले तो फिर
सोयिए मत। उठिए और दौड़ लगाइए। अपनी साँसों को गुनगुनाने दीजिए – “कुछ करिए कुछ करिए”- (चक दे इंडिया)
जिन्दगी बहुत
छोटी है बस थोड़े से मौके हैं। जी जान से दौड़िए। बस दौड़ पड़िए। डर के आगे जीत है और
जीत के आगे असली जिन्दगी। जीने का वास्तविक लुत्फ लेना है तो दौड़िए । अगर लिया है
सफलता का संकल्प आपने तो सोचिए मत। दौड़िए! क्योंकि यही एक मात्र विकल्प है।
आइए इसकी शुरुआत
हम खुद से करें। 8 अप्रैल 2018 को भागलपुर में हो रहे मिनी मैराथन में हिस्सा लेकर
खुद को चुनौती दे, खुद को साबित करें।
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